रोमांचित कर देने वाली है PoK में सर्जिकल स्ट्राइक अंजाम देने वाले पैरा एसएफ के जवानों की कहानी

भारतीय सेना ने पाक अधिकृत कश्मीर में आतंकी ठिकानों पर सर्जिकल स्ट्राइक की। सेना की पैराशूट स्पेशल फोर्सेज ने इस ऑपरेशन को अंजाम दिया। पैराशूट स्पेशल फोर्सेज को पैरा एसएफ के नाम से भी जाना जाता है। 28-29 सितंबर की रात को हुए ऑपरेशन में ये जवान पीओके में दाखिल हुए और चुपचाप अपना काम कर लौट आए। इस दौरान भारतीय सेना के इन जवानों में से किसी को चोट नहीं आर्इ। सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम देने वाली पैरा एसएफ को दुनिया के सबसे खतरनाक सुरक्षा बलों में से एक माना जाता है। यह पैराशूट रेजीमेंट की विशेष बटालियन है। इसे स्पेशल ऑपरेशन के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसे आतंकी हमलों को रोकने और स्पेशल डायरेक्ट एक्शन ऑपरेशन के लिए बनाया गया है।ये दुनिया की सबसे पुरानी हवाई रेजीमेंट में से एक है। इसका गठन 1941 में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान किया गया था। उस दौरान 50 इंडियन पैराशूट ब्रिगेड का गठन किया गया। बाद में 1965 और 1999 के युद्धों में इसने कई बड़े ऑपरेशन को अंजाम दिया।
पैरा एसएफ के जवान हवा, पानी और जमीन किसी भी रास्ते से दुश्मन के ठिकाने में घुसने में सक्षम होते हैं। ये जवान हर साल रूस, इस्राइल, अमेरिका जैसे देशों की सेनाओं के साथ अभ्यास करते हैं। ये सबसे लंबी और मुश्किल होती है। पैरा एसएफ को ऑपरेशंस को जल्द से जल्द खत्म करने के लिए भेजा जाता है। इन्हें जल्द से जल्द काम को अंजाम देने और कम से कम नुकसान के लिए ब्रीफ किया जाता है। पैरा एसएफ के लिए जवानों को चुनने की प्रक्रिया भी काफी कठिन है। सेना के तीनों अंगों थल, वायु और नौसेना से हर साल 18 से 23 साल तक के जवान अपनी मर्जी से पैरा एसएफ के लिए अप्लाई करते हैं। पैरा एसएफ में जाने से पहले पैराट्रूपर के लिए क्वालिफाई करना होता है। पैरा एसएफ के लिए 10 हजार जवानों में से एक को चुना जाता है। 75 फीसदी जवान इसकी ट्रेनिंग को पूरा नहीं कर पाते हैं और बीच में ही छोड़ देते हैं।
पैरा एसएफ के लिए चुने जाने पर एक जवान को साढ़े तीन साल की ट्रेनिंग दी जाती है। इसमें ऑफिसर सलेक्शन रेट केवल 12-15 प्रतिशत है। वहीं जवानों के लिए यह प्रतिशत थोड़ा सा ज्यादा होता है। ट्रेनिंग के दौरान एडवांस्ड राइफल से लेकर चाकू और डंडे से लेकर पेन तक से हमला करना सिखाया जाता है। पैरा एसएफ के ज्यादातर ऑपरेशन विषम परिस्थितियों में होते हैं। इस कारण से इन्हें घने जंगलों, बर्फीले ठंडे पानी के बीच अभ्यस्त किया जाता है। साथ ही कम से कम 50 बार 33500 फीट की ऊंचाई से कूदने की ट्रेनिंग दी जाती है। पैरा एसएफ के पास एडवांस वेपन होते हैं। इनमें ट्रेवर-एम असॉल्ट राइफल्स, एम4एवन कार्बाइन, एमपीआई-केएमएस72, एसवीडी ड्रेगनोव आईडब्ल्यूआई गलिल स्नाइपर एस जैसी हाईटेक राइफल, बेरेटा और उजी जैसी पिस्तौलें होती हैं। इन जवानों के पास मरून कैप होती हैं इसलिए इन्हें मरून बेरेट्स भी कहा जाता है।
ऑपरेशन को लेकर इनकी दक्षता सितम्बर 2013 में सांबा में आर्मी पोस्ट पर हमले के बाद की कार्रवाई से भी आंकी जा सकती है। सांबा में हमले के बाद पैरा एसएफ ने केवल चार घंटे में ऑपरेशन खत्म कर दिया। इस दौरान उन्होंने तीन आतंकी मारे। पिछले साल म्यांमार में भी पैरा एसएफ ने ही ऑपरेशन को अंजाम दिया था। उस समय भी सेना का एक भी जवान घायल नहीं हुआ था। पैराशूट रेजीमेंट में दो बटालियन होती है। एक होती है पैराशूट फोर्स और दूसरी पैरा एसएफ। प्रत्येक बटालियन में 600-700 सैनिक होते हैं।