अमर प्रभाव भी डालेगा चुनाव में असर

अमर को लेकर पार्टी दो खेमों में बंटी हैं। अखिलेश व राम गोपाल उनके विरोधी माने जाते हैं तो मुलायम और शिवपाल अमर के सबसे बड़े पैरोकार हैं। मुलायम ने राम गोपाल व अखिलेश के विरोध को दरकिनार कर अमर को सीधे राष्ट्रीय महासचिव मनोनीत कर जिस तरह से पार्टी में एंट्री दी, उससे साफ हो गया कि विधानसभा चुनाव में अमर की भूमिका काफी अहम रहने वाली है। यह बात दीगर है कि सपा के कई ठाकुर नेता इससे खुश नहीं है। एमएलसी यशवंत सिंह ने तो साफ कह भी दिया कि वह अमर सिंह को नेता नहीं मानते और अमर सिंह ठाकुरों की नुमाइंदगी नहीं करते। पार्टी के एक धड़े का मानना है कि अमर सिंह के आने से फायदा कम नुकसान ज्यादा होने जा रहा है। मंत्रिमंडल विस्तार में जहां अति पिछडे़ वर्ग के शंख लाल मांझी ल नरेंद्र वर्मा को तवज्जो मिली वहीं, राज्यमंत्री पप्पू निषाद को मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। पप्पू निषाद की बर्खास्तगी से निषाद व मल्लाह बिरादरी नाराज भी बताई जा रही है। संतुलन साधने के चक्कर में कहीं असंतुलन भी हो गया जिसका असर चुनाव में सपा की छवि पर पड़ सकता है। कांग्रेस, भाजपा और बसपा जहां चुनावी मोड में नजर आ रहे हैं, वहीं सपा अभी 'अंदरूनी कलह' से ही नहीं उबर पा रही है। मुलायम के दखल के बाद ही सपा में बन चुके अलग-अलग सत्ता प्रतिष्ठान अब एक साथ खड़े होने की कोशिश करते भले नजर आ रहे हों पर चिंगारी अभी पूरी तरह बुझी नहीं है। ऐसे में 'मेकओवर' की मुहिम कितना रंग लाएगी यह एक बड़ा सवाल अभी बना हुआ है। मंत्रिमंडल के आठवें विस्तार पर नजर डालें तो अगले विधानसभा चुनाव की चिंता साफ दिखती है। सपा करीब 33 फीसदी अति पिछड़ों, 18 फीसदी मुसलमानों और 10 फीसदी ब्राह्मणों को गोलबंद करके सत्ता में वापसी की कोशिश में लगी है लेकिन जिस कांग्रेस, भाजपा व बसपा इन जातियों को अपने पाले में खड़ा करने की मुहिम में जुटे हैं उसे देखते हुए सपा का यह दांव बहुत ज्यादा कारगर होने के आसार नहीं नजर आ रहे हैं। अखिलेश ने अपने मंत्रिमंडल में मुसलमानों को अब तक का सबसे ज्यादा प्रतिनिधित्व देते हुए 12 मंत्री बनाए हैं तो हालिया विस्तार के बाद कैबिनेट में ब्राह्मणों की संख्या सात हो गई है। स्पष्ट है कि सपा की नजर अब मुसलमानों और ब्राह्मणों पर है। समाजवादी पार्टी की 'छवि सुधार' मुहिम में दागी सबसे बड़ा सिरदर्द साबित हो सकते हैं। भ्रष्टाचार और हाईकोर्ट द्वारा खनन घोटाले की सीबीआई जांच के आदेश के बाद बर्खास्त गायत्री प्रजापति की ऊपरी दबाव में जिस तरह से कैबिनेट में 'सम्मानजनक' वापसी हुई, उससे आम वोटरों में अच्छा संदेश नहीं गया है। अपनी कारगुजारियों के चलते पंडित सिंह भी चर्चा में रहते आए हैं। कैलाश चौरसिया, राममूर्ति सिंह वर्मा समेत आधा दर्जन से ज्यादा ऐसे मंत्री टीम अखिलेश में अभी भी बने हुए हैं, जिन पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। इसे लेकर चुनाव में विपक्ष सपा को घेरने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ेगा। 'दागी' गायत्री प्रजापति की पहले बर्खास्तगी और फिर 15 दिन के भीतर दोबारा ताजपोशी जैसे कदम 'छवि' सुधारने की मंशा पर सवाल भी खड़े कर रहे हैं। मगर यह भी तय है कि हाल के सियासी घटनाक्रम और 'घर' के झगड़े की छाया का असर चुनाव पर पड़ेगा ही। सत्ताधारी दल के सामने इससे पार पाने और 'परिवार ' में एकजुटता का संदेश देने की बड़ी चुनौती भी है। सपा में शीर्ष से लेकर नीचे तक के नेता व कार्यकर्ता भी मानते हैं कि समाजवादी कुनबे में मचे घमासान का सियासी तौर पर पार्टी को भारी नुकसान हुआ है। पार्टी को लेकर लोगों के बीच नकारात्मक संदेश गया है। इस 'झगड़े' ने सरकार की छवि सुधारने की अखिलेश की मुहिम को भी तगड़ा 'झटका' दिया है। अब डैमेज कंट्रोल के तहत इलाकाई, जातिगत व व्यक्तिगत समीकरणों के दुरुस्त करने के साथ-साथ खेमों बंट चुके पार्टी के लोगों को संतुष्ट करके छवि सुधारने की पहल की जा रही है। इसका सपा को इसका बहुत ज्यादा फायदा होगा इसमें संदेह है।