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उत्तर प्रदेश

मतभेद न भुलाए तो 2017 के चुनाव में सपा के लिए होगी दिक्कत

मतभेद न भुलाए तो 2017 के चुनाव में सपा के लिए होगी दिक्कत
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लखनऊ : 16वीं विधानसभा में अखिलेश यादव की मंत्रिपरिषद के संभवत: आखिरी विस्तार से जो भी सियासी संदेश गया हो, लेकिन 2017 की उम्मीदों को कायम रखने के लिए असली परीक्षा सपा के शीर्ष नेतृत्व यानी मुलायम सिंह परिवार की है।

सपा नेताओं को अलग-अलग ढपली बजाने के बजाय एकजुटता दिखानी होगी। पूरे परिवार को एक मंच पर आना होगा। ऐसा नहीं हुआ तो दिक्कतें बढ़नी तय है। सपा में घमासान की शुरुआत 12 सितंबर को दो मंत्रियों गायत्री प्रजापति और राजकिशोर सिंह को मंत्री पद से बर्खास्त करने से हुई थी। अगले दिन मुख्य सचिव दीपक सिंघल और सपा के प्रदेश अध्यक्ष पद से अखिलेश यादव की विदाई हो गई। प्रतिक्रिया में सीएम ने शिवपाल सिंह यादव के सभी महत्वपूर्ण विभाग छीन लिए। दो मंत्रियों की बर्खास्तगी से शुरू हुआ विवाद पखवाड़े भर बाद मंत्रियों के शपथ ग्रहण से काफी हद तक निपट गया है। गायत्री प्रजापति की कैबिनेट में वापसी हो गई है। पूर्व में बर्खास्त मनोज कुमार पांडेय और शिवाकांत ओझा भी लौट आए हैं। चुनावी समीकरण को ध्यान में रखकर आधा दर्जन मंत्रियों का प्रमोशन किया गया है। मंत्रिपरिषद विस्तार के बाद मुलायम ने अखिलेश और शिवपाल के साथ लगभग आधा घंटा बातचीत की है। सपा मुखिया के दिल्ली जाने से पहले हुई इस बातचीत में मंत्रियों के विभागों में बंटवारे पर चर्चा हुई है या पार्टी में एकजुटता की कोशिशें, यह तो नहीं मालूम मगर इतना तय है कि आगे की तरफ देखे और बढ़े बिना सपा के लिए मंजिल तक पहुंचना आसान नहीं होगा। सपा में शीर्ष नेतृत्व का मतलब है, समाजवादी परिवार यानी मुलायम सिंह का परिवार। देश के इस सबसे बड़े सियासी कुनबे की पहली पंक्ति के नेताओं में मुलायम के अलावा अखिलेश, शिवपाल और रामगोपाल हैं। गाजीपुर में उम्मीद से ज्यादा उमड़ी भीड़ यदि सपा कैबिनेट विस्तार का सियासी लाभ उठाना चाहती है तो उसे पहली पंक्ति के नेताओं की एकता दिखानी होगी, शीर्ष सपा नेताओं को एक मंच पर आना होगा। इसी से सफलता का सूत्र निकल सकता है। अभी तो सभी नेता अपनी-अपनी ढॉली, अपना-अपना राग अलाप रहे हैं। शीर्ष नेतृत्व सीधे तौर पर दो खेमों में बंटा दिख रहा है। अखिलेश के साथ रामगोपाल हैं तो शिवपाल को मुलायम का संरक्षण प्राप्त है। इस विवाद का साया निचले स्तर तक पहुंच गया है। दूसरी पीढ़ी के नेता भी आरोप-प्रत्यारोप में लगे हैं। सपा महासचिव रामगोपाल यादव ने सोमवार को दिल्ली से सैफई की यात्रा में खूब शक्ति प्रदर्शन किया। इसके सूत्रधार उनके भांजे और सपा से निष्कासित एमएलसी अरविंद प्रताप यादव रहे। रामगोपाल ने यह कहते हुए अरविंद की पीठ थपथपाई कि वह बड़े नेता के तौर पर उभर रहे हैं। उन्होंने निष्कासन की कार्रवाई को गलत बताया और अखिलेश की तरफदारी की। सपा नेताओं को इस तरह के शक्ति प्रदर्शन और सार्वजनिक मंचों पर आरोप-प्रत्यारोपों से बचना होगा। सोमवार को मंत्रिमंडल विस्तार से पहले अखिलेश ने गाजीपुर में कई उद्घाटन और शिलान्यास के बाद सभा को संबोधित किया। इसमें भीड़ की तादाद उम्मीद से ज्यादा रही। जाहिर है, पारिवारिक घमासान की खबरों के बीच अखिलेश को जनता ने मुस्कुराने का अवसर दिया है। इससे उनका उत्साह बढा होगा, लेकिन 2017 का लक्ष्य भेदने के लिए यह पर्याप्त नहीं है? उनके सामने पार्टी और परिवार की एकजुटता बरकरार रखने की चुनौतियां है। सपा ही नहीं विरोधियों की नजरें भी इस समय मुलायम सिंह यादव पर टिकी है। उनका लंबा राजनीतिक अनुभव है। तमाम संकटों से पार्टी को उबारा है, लेकिन उन्हें परिवार के झगड़े का इस रूप में पहली बार सामना करना पड़ा रहा है। मंत्रिपरिषद के विस्तार में सबसे ऊपर मुलायम की सिफारिश रही, लेकिन अखिलेश और शिवपाल की पसंद का भी ख्याल रखा। एक तरह से सरकार के स्तर का काम उन्होंने निपटा दिया, अब चुनौती पार्टी के मामलों को पटरी पर लाने की है।
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