Janta Ki Awaz
उत्तर प्रदेश

सरकारी रिपोर्ट: मोदी सरकार में लगातार कम हो रहीं नौ‍करियां, ज्‍यादा मार महिलाओं पर

सरकारी रिपोर्ट: मोदी सरकार में लगातार कम हो रहीं नौ‍करियां, ज्‍यादा मार महिलाओं पर
X

भारत के लेबर ब्यूरो द्वारा जारी सालाना हाउसहोल्ड सर्वे के आंकड़ों के अनुसार देश में बेरोजगारी दर पिछले पांच सालों के सर्वोच्च स्तर पर है। लेबर ब्यूरो द्वारा जारी 2015-16 के आंकड़ों के अनुसार देश में बेरोजगारी की दर पांच प्रतिशत पहुंच चुकी है। वित्त वर्ष 2015-16 की पहली तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था में 7.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। जबकि 2014-15 की पहली तिमाही में विकास दर 7.9 प्रतिशत थी। ब्यूरो द्वारा दिए गए आंकड़ों के अनुसार भारत में बेरोजगारी दर वित्त वर्ष 2013-14 में 4.9 प्रतिशत, 2012-13 में 4.7 प्रतिशत और 2011-12 में 3.8 प्रतिशत थी। नए आंकड़ों के अनुसार महिलाएं देश में बेरोजगारी की ज्यादा शिकार हैं। 2013-14 में महिला बेरोजगारी की दर 7.7 प्रतिशत थी जो 2015-16 में बढ़कर 8.7 प्रतिशत हो गई।

पांचवी सालाना रोजगार-बेरोजगारी सर्वे रिपोर्ट के अनुसार पिछले दो सालों में गांवों में बेरोजगारी बढ़ी है जबकि शहरी इलाकों में इसमें थोड़ा सुधार आया है। ग्रामीण इलाकों में 2013-14 के 4.7 प्रतिशत से 2015-16 में बढ़कर 5.1 प्रतिशत हो गई है। जबकि शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी की दर 2013-14 के 5.5 प्रतिशत से घटकर 2015-16 में 4.7 प्रतिशत हो गई है। इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन डेवलपमेंट के प्रोफेसर अमिताभ कुंडू ने कहा, "ये चिंता की बात है, खासकर महिलाओं में बढ़ती बेरोजगारी। सरकार को ध्यान देना होगा कि केवल विकास पर ध्यान केंद्रित करने से समस्या हल नहीं होगी।" प्रोफेसर कुंडू ने कहा कि ये आंकड़े छोटे सैंपल साइज पर आधारित हैं लेकिन दूसरे सूचकांक भी देश में बढ़ती बेरोजगारी की तरफ संकेत करते हैं।

रिपोर्ट के अनुसार 2015-16 में भारत के कामगार आबादी में केवल 47.8 प्रतिशत के पास नौकरी थी। जबकि दो साल पहले कामगार आबादी में 49.9 प्रतिशत लोगों के पास नौकरी थी। इस सर्वे में रोजगार से जुड़े राज्यवार आंकड़े नहीं उपलब्ध कराए गए हैं। रिपोर्ट के अनुसार केंद्र सरकार की रोजगार योजनाओं का भी इस दौरान अपेक्षित लाभ नहीं हुआ है। मसलन, महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत 2015-16 में 21.9 प्रतिशत परिवारों को काम मिला। जबकि 2013-14 में इस योजना के तहत 24.1 प्रतिशत परिवारों को काम मिला था।

सर्वे में ये बात भी सामने आई कि देश में स्व-रोजगार करने वालों और वेतनमान पर नौकरी करने वालों की संख्या घटी है। वहीं अनुबंध (कॉन्ट्रैक्ट) पर काम करने वालों की तादाद में बढ़ोतरी हुई है। प्रोफेसर कुंडू के अनुसार स्व-रोजगार और सरकार द्वारा नियोजित नौकरियों में आने वाली कमी चिंताजनक है। सर्वे के अनुसार स्नातक और परास्नातक शिक्षा प्राप्त युवाओं-युवतियों को उनकी शिक्षा और कौशल के अनुरूप नौकरी नहीं मिलना भी बेरोजगारी बढ़ने की एक प्रमुख वजह है।

Next Story
Share it