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उत्तर प्रदेश

आजम के पेश न होने पर सुप्रीम कोर्ट नाराज

आजम के पेश न होने पर सुप्रीम कोर्ट नाराज
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सुप्रीम कोर्ट ने सनसनीखेज बुलंदशहर सामूहिक बलात्कार कांड से संबंधित मामले में उत्तर प्रदेश के मंत्री आजम खां द्वारा अपने वकील के माध्यम से शीर्ष अदालत में पेश नहीं होने पर आज अप्रसन्नता जाहिर की। अदालत ने केंद्रीय जांच ब्यूरो को निर्देश दिया कि समाजवादी पार्टी के इस नेता पर नए सिरे से नोटिस की तामील की जाए। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाले पीठ ने अपने आदेश में कहा- हमारी सुविचारित राय में प्रतिवादी नंबर दो (खां) को यहां पेश होना चाहिए था क्योंकि उनके खिलाफ प्रत्यक्ष आरोप है। इस तथ्य के मद्देनजर हम केंद्रीय जांच ब्यूरो को निर्देश देते हैं कि प्रतिवादी नंबर दो को नोटिस की तामील की जाए।

शीर्ष अदालत ने सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि उत्तर प्रदेश के मंत्री पर नोटिस की तामील के लिए नोटिस के साथ इस मामले के रिकार्ड की प्रति जांच ब्यूरो को मुहैया कराई जाए। कोर्ट ने कहा कि ऐसा लगता है कि खान ने यह सब अपनी निजी हैसियत में कहा था। सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी उस वक्त की जब जांच ब्यूरो की ओर से अतिरिक्त सालिसीटर जनरल मनिंदर सिंह ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार के माध्यम से खां पर नोटिस तामील की जा सकती है क्योंकि वह राज्य मंत्रिमंडल का हिस्सा हैं। इस बीच, न्यायालय ने पीड़ित के पिता की ओर से पेश वकील किसलय पांडे को इस मामले में अतिरिक्त दस्तावेज दाखिल करने की अनुमति देते हुए इसकी सुनवाई 25 अक्तूबर के लिए निर्धारित कर दी।

यह जघन्य घटना 29 जुलाई की रात में हुई थी जब राजमार्ग पर लुटेरों के एक गिरोह ने नोएडा स्थित इस परिवार की कार रोक ली थी और कार में सवार मां और उसकी पुत्री को वाहन से खींच कर उन पर यौन हमला किया था। सुप्रीम कोर्ट ने 29 अगस्त को इस मामले में जांच ब्यूरो की जांच पर रोक लगाते हुए खां की इस विवादास्पद टिप्पणी की संज्ञान लिया था कि सामूहिक बलात्कार का मामला एक राजनीतिक साजिश है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी जानना चाहा था कि क्या शासन को इस तरह के जघन्य अपराधों के बारे में ऐसी टिप्पणी करने से उच्च पदों पर आसीन व्यक्तियों को रोकना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने आठ सितंबर को अपने पहले के आदेश में सुधार करते हुए इस मामले की सीबीआइ जांच पर लगी रोक हटा दी थी और जांच एजंसी से कहा था कि वह कानून के मुताबिक कार्यवाही करे। जांच ब्यूरो ने इस मामले की जांच पर लगाई गई रोक के आदेश में सुधार का अदालत से अनुरोध किया था। जांच ब्यूरो का कहना था कि जांच पर रोक से इस मामले में महत्त्वपूर्ण साक्ष्य गायब हो सकते हैं और छह आरोपी जमानत ले सकते हैं।

शुरुआत में उत्तर प्रदेश पुलिस ने इस मामले में 30 जुलाई को भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराआें के तहत प्राथमिकी दर्ज की थी, लेकिन जांच ब्यूरो ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के अंतरिम आदेश के आलोक में 18 अगस्त को नए सिरे से मामला दर्ज किया था। सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले ऐसे जघन्य मामलों की निष्पक्ष जांच के संदर्भ में अभिव्यक्ति की आजादी और उच्च पदों पर आसीन व्यक्तियों के ऐसे बयानों के संभावित असर के बारे में कुछ कानूनी सवाल तैयार करने के साथ ही वरिष्ठ अधिवक्ता एफएस नरीमन को इस मामले में न्याय मित्र नियुक्त किया था।

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