Janta Ki Awaz
उत्तर प्रदेश

युवा राजनीति के भरोसे की उम्मीद: अखिलेश

युवा राजनीति के भरोसे की उम्मीद: अखिलेश
X

समाजवादी पार्टी को लेकर चल रहे तमाम उठापटक की ख़बरों के बीच अखिलेश यादव का व्यक्तित्व बखूबी निखर कर सामने आया है।एक ऐसा नौजवान मुख्यमंत्री जो लगातार विकास और आम जन की बेहतरी को राजनीति के केंद्र में लाने में सतत संलग्न है। युवा मुख्यमंत्री द्वारा हाल ही में लिए गये कुछ फैसलों ने उनके दृढ़ व्यक्तित्व वाले पक्ष को बखूबी उभारा है.अपराधियों को सपा में शामिल होने से रोकने और मुख्य सचिव सहित कई मंत्रियों की बर्खास्तगी वाले निर्णय इसकी कुछ बानगी है.अखिलेश यादव का राजनैतिक सफरनामा कम उम्र में भी बेहद समृद्ध रहा है.दिल्ली में बारह वर्षों का बतौर सांसद कार्यकाल के दौरान उनका राजनैतिक प्रशिक्षण समाजवादी धारा के तत्कालीन अग्रिम पंक्ति के नेताओं के मार्गदर्शन में हुआ. मुलायम सिंह यादव के पुत्र होने की वजह से जो स्वाभाविक संपर्क और सम्बन्ध उन्हें विरासत में मिले उनको अखिलेश यादव ने सतत मजबूत करते हुए नयी राजनीति विकसित करने का प्रयास किया।
सन 2000 में राजनीति में पदार्पण करने वाले अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी में नौजवानों का नया वोट बैंक तैयार किया।साथ ही यूथ के प्रभारी बनने के बाद उन्होंने जिस तरह संगठित युवाओं की एक फौज तैयार किया वैसा दूसरा नजीर अभी पूरे देश में प्रमुख होकर नही दिखाई पड़ रहा है। सरकार बनने के बाद बेहतर प्रशासनिक संवाद से लेकर समाज के सभी आयु वर्ग के प्रति विनम्र व्यवहार ने अखिलेश की लोकप्रियता को दलगत राजनीति से ऊपर उठा दिया। यूपी की राजनीति में यह पहला ऐसा कार्यकाल है जब विपक्षी दलों के नेता भी किसी मुख्यमंत्री के व्यक्तित्व की सराहना करते हैं। अखिलेश यादव की यही राजनीति उनके राष्ट्रीय राजनीति में बेहतर सम्भावना के रूप में दृष्टिगत होती है। प्रदेश की बागडोर सँभालते हुए अपनी कार्यशैली और दूरदर्शी नेतृत्व से लाखों युवाओं में भरोसा पैदा करने की अदा के विरोधी भी कायल हैं.हालाँकि तमाम फैसलों पर निर्णय-अनिर्णय की स्थिति ने एक स्वतंत्र व्यक्तित्व वाली छवि को कमजोर किया है.अखिलेश यादव अपने राजनैतिक विकसन में इस समस्या का सामना लगातार करते हुए दिख रहे हैं.दिल्ली में वरिष्ठ नेताओं के असमय निधन से बेहतर सुझाव देने वाले लोगों की कमी प्रभावी होती जा रही है।बतौर मुख्यमंत्री स्वाभाविक व्यस्तता की वजह से पार्टी संगठन/सरकार के हित चिंतको का सुझाव मिलने में कठिनाई हो रही है.
छोटे लोहिया जनेश्वर मिश्र,बाबू कपिलदेव सिंह,राम शरण दास,बृजभूषण तिवारी,मोहन सिंह जैसे वैचारिक समाजवादी धारा के प्रतीक पुरुषों के होने से समाजवादी पार्टी के स्थापना काल से ही वैचारिक संकट का संक्रमण नही आने दिया.इन लोगों की रिक्तता के बाद समाजवादी वैचारिकी में राजेन्द्र चौधरी ही समाजवादी सिद्धांत को पार्टी राजनीति में मुक्कमल पहचान दिलाये हुए हैं.पिछले पाँच दशकों से छात्र राजनीति से लेकर राष्ट्रीय राजनीति सहित प्रदेश के समाजवादी धारा की हर प्रमुख घटना से जुड़े रहने वाले राजेन्द्र चौधरी ही हैं,जो चौधरी चरण सिंह के मार्गदर्शन में राजनीति में आये और अनेक उतार-चढ़ाव के बाद सपा सुप्रीमों के साथ सांगठनिक कार्यों को कुशलता से सम्पादित किया.1987 में बतौर सारथी क्रांति रथ यात्रा में उनका योगदान प्रभावी था.पश्चिम में अच्छी साख होने के साथ पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं से जमीनी जुड़ाव सहित बौद्धिक वर्ग के मन में पार्टी के प्रति अच्छी धारणा रखने वालों से उनका संपर्क अखिलेश यादव के लिए लाभकारी है।यह अखिलेश यादव की कुशल राजनीतिक परख का नमूना है जिसमें जहाँ एक ओर प्रतिबद्ध नौजवानों की पूरी टीम है वहीँ दूसरी ओर पुरानी पीढ़ी के समर्पित और अनुभवी सोशलिस्ट राजेन्द्र चौधरी का साथ है.
1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन से पहली बार समाजवादी धारा के नौजवान राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आये.लोहिया-जयप्रकाश से लेकर अगस्त क्रांति के पचहत्तर वर्ष पर सरसरी निगाह डालने पर हर बार नौजवानों का मुखर नेतृत्व ही सामने आया है.सोशलिस्ट परम्परा में असहमति का आधार समय समय पर स्पष्ट होता रहा है.एक बार फिर उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी में नौजवान निशाने पर आ गये है.ऐसे में युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव किस प्रकार सरकार और संगठन में युवाओं के भरोसे को कायम रखते हुए सरकार की वापसी करते हैं यह देखने वाली बात होगी!
मणेन्द्र मिश्रा 'मशाल'
Next Story
Share it