शिवपाल के बारे वह सबकुछ जो आप जानना चाहते हैं

ये बस संयोग ही हो सकता है कि राजनीति में चाचा शिवपाल का पाला हमेशा भतीजे अखिलेश यादव से ही पड़ता रहा है. हर बार उन्हें अखिलेश से हार मिलती रही है. समाजवाद की विचारधारा और साइकिल के निशान के साथ मुलायम सिंह यादव ने 1992 में जब समाजवादी पार्टी बनाई तब परिवार में हर उस व्यक्ति को जगह दी जो राजनीति कर सकता था.
तब अखिलेश यादव तो समाजवादी पार्टी का चेहरा नहीं थे लेकिन शिवपाल यादव तब से मुलायम सिंह की अंगुली पकड़कर चलते आ रहे हैं. जब मुलायम राजनीति में राममनोहर लोहिया की विचारधारा पर राजनीति में खुद भी संघर्ष कर रहे थे और शिवपाल को भी राजनीति के सबक सिखा रहे थे.
आज राजनीतिक तजुर्बे में शिवपाल किसी से कम नहीं. शिवपाल सिंह यादव 20 साल से यूपी विधानसभा के सदस्य हैं. मुलायम की सरकारों में मंत्री रहे. जब मुलायम ने देश की राजनीति के लिए दिल्ली का रुख किया तो मायावती की सरकार के वक्त विपक्ष के नेता बने. अखिलेश सरकार में भी 9 अहम विभाग संभाल रहे हैं शिवपाल. यूपी समाजवादी पार्टी के भी अध्यक्ष रहे.
शिवपाल, मुलायम से 16 साल छोटे हैं. छोटे औऱ बड़े भाई का हर धर्म, हर फर्ज निभाया दोनों भाइय़ों ने लेकिन बेटे के आगे मुलायम हारते रहे. भाई शिवपाल को आगे नहीं कर पाए. 2012 में जब समाजवादी पार्टी ने मायावती को हराकर सत्ता हासिल की जब मुलायम के सामने दो सवाल थे. या तो खुद मुख्यमंत्री बनें या यूपी की गद्दी अपने बेटे अखिलेश यादव को सौंपकर खुद देश के प्रधानमंत्री बनने की तैयारी करें.
मुलायम ने दूसरा विकल्प चुना. गद्दी अखिलेश को सौंपी. तब शिवपाल कुछ बोल नहीं पाए थे. कैसे बोलते भतीजे की ताजपोशी के खिलाफ. शिवपाल ने हालात से समझौता किया. बेटे के आगे छोटे भाई को आगे न करने की बड़े भाई की मजबूरी समझ ली. जो काम अखिलेश ने सौंपा, वो किया, जो काम मुलायम ने दिया वो भी करते रहे.
लेकिन मन मारकर राजनीति और रिश्तेदारी निभाना कब तक चलता. अखिलेश ने जब खुद को समाजवादी पार्टी का चेहरा मानकर चाचा के फैसलों पर वीटो लगाना शुरू कर दिया. तो चाचा भी रिश्ते की मर्यादा में बंधे न रह पाए और भतीजा भी अपनी मर्जी का मालिक हो गया.