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जानें, यूपी के विकास को लेकर क्या है मुख्यमंत्री अखिलेश का विजन

जानें, यूपी के विकास को लेकर क्या है मुख्यमंत्री अखिलेश का विजन
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यूपी के सीएम अखिलेश यादव ने सत्ता और जनता के सपनों को लेकर अपने विचार व्य‌क्त किए।

समय, सत्ता और सपने निरंतर गतिमान रहते हैं। कभी रुकते नहीं। हर पल आपको नई चुनौतियों और जिम्मेदारी का अहसास कराते हैं। हर क्षण आपका इम्तिहान लेते रहते हैं। जरूरत होती है उन चुनौतियों को स्वीकार करते हुए अपनी जिम्मेदारी को निभाने के लिए जुट जाने की। जो समय की नब्ज को पहचान लेता है और अपनी मंजिल तय कर उस पर चल देता है, कामयाबी उसके कदम चूमती है।

इसी तरह सत्ता व्यक्ति को नए प्रतिमान गढऩे का सुअवसर प्रदान करती है, यदि वह इसके मद में आए बिना सकारात्मक तरीके से इसका इस्तेमाल करे। सपने इंसान को जीवन में आगे बढऩे की सीख देते हैं। जरूरत होती है तो बस इन सपनों को साकार करने के लिए खुद को समर्पित कर देने की।

सूरज रोशनी तो दे सकता है पर तरक्की का रास्ता हमें खुद ही चुनना होता है। इस सफर में बहुत संघर्ष होगा। चुनौतियां हर कदम पर परीक्षा लेने को तैयार बैठी होंगी। यह हमें तय करना होता है कि हम इनका सामना कैसे करते हैं? अपने भविष्य को संवारने के लिए कितना मजबूत कदम रखते हैं? साढ़े चार साल के सफर में कई पड़ाव ऐसे भी आए जो विकास की राह में रोड़े बन सकते थे। पर जो सबक मैंने स्कूली दिनों में सीखा था, उन्हें ध्यान में रखकर अपने मकसद में आगे बढ़ता गया।

जब मैंने लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस व और मेट्रो का सपना देखा, तो बड़ा ही चुनौतीपूर्ण व उत्साह से लबरेज लगा। आगे बढ़ा तो चुनौतियां भी दिखने लगीं। सबसे बड़ी चुनौती थी सरकारी खजाने से खर्च होने वाली बड़ी रकम के अधिकतम उपयोग का जो जनता के हित में हो। उसे लाभ पहुंचाने वाला हो। एक्सप्रेस-वे का सपना भी कुछ ऐसा ही रहा।

पीछे मुड़कर देखता हूं तो संतोष मिलता है कि विकास के पथ पर कदम ईमानदारी से बढ़ाए। हालांकि यह भी स्पष्ट है कि इस पथ पर लगातार चलना होगा। मेरा मानना है कि 'डबल द स्पीड टू ट्रिपल द इकोनॉमी'। तरक्की का सफर ठहराव से तय नहीं होता। इसकी प्रक्रिया सतत चलते रहने वाली है। एक मंजिल पूरी हुई तो दूसरी मंजिल का सफर शुरू। यही तो इसकी सबसे बड़ी खूबसूरती है।

मंजिल पाने के लिए हौसले, जज्बे और मेहनत की जरूरत होगी। यही कामयाबी की पहली शर्त है। मंजिल तक पहुंचने के लिए हमें अडऩा होगा, दृढ निश्चय करना होगा। बस यह निश्चय सकारात्मक मकसद के लिए होना चाहिए। हमें किसी भी कदम पर हार नहीं माननी होगी। हौसला रखना होगा। धैर्य रखना होगा। लक्ष्य धीरे-धीरे आसान होता जाएगा। हर परिस्थिति में अपने लक्ष्य पर नजर रखनी होगी। कभी कदम डिगने लगे तो कामयाब लोगों की जिंदगी में झांककर देखें, कोई न कोई राह निकल आएगी।

अब्राहम लिंकन अमेरिका के राष्ट्रपति रहे हैं। उन्हें हर मोड़ पर विफलता का सामना करना पड़ा। बिजनेस किया तो उसमें असफल रहे। राजनीति में उतरे तो हर कदम पर नाकामयाबी मिली। इतनी असफलताओं से किसी का भी हौसला टूट जाए... पर लिंकन डिगे नहीं। हर ठोकर से सीख लेते हुए वे दुनिया के सबसे ताकतवर देश की सर्वोच्च कुर्सी तक पहुंचे और इतिहास में नाम दर्ज कराया। अंत में वे सफल सिर्फ इसलिए हुए क्योंकि उन्होंने हार नहीं मानी, कोशिश नहीं छोड़ी।

आज मैं युवाओं को देखता हूं तो उनकी ऊर्जा मुझे उत्साह से भर देती है। बस जरूरत है तो उनकी ऊर्जा को सही दिशा देने की। अगर ऐसा हो सका तो समाज सकारात्मकता से भर जाएगा। तरक्की के नए सफर पर निकल पड़ेगा। विकास की राह में विरासत को संभालना और साथ लेकर चलने की भी अपनी ही चुनौती है। इस पर सवाल भी खड़े हो सकते हैं... कदम भी डिग सकते हैं। मगर कोशिश विकास की विरासत को बरकरार रखने की ही होनी चाहिए।

विरासत एक जिम्मेदारी का अहसास कराता है तो नए सपने देखने और उन्हें हकीकत में बदलने का हौसला भी प्रदान करता है। बस, समाज को इस विरासत में नयापन दिखना चाहिए। ऐसी नवीनता जो तरक्की के सपनों की सीढ़ी बन सके। फिर देखिएगा... समाज कैसे कामयाबी की उड़ान भरता है।

सत्ता और सपने के बीच सबसे महत्वपूर्ण है वक्त। यह वक्त कड़ी परीक्षा लेता है। हमें जिंदगी के फैसले भी वक्त पर करने होते हैं। वक्त पर चूक गए तो पीछे रहने का खतरा पैदा हो जाता है। आज जिंदगी की रफ्तार तेजी से बढ़ रही है। नए जमाने के साथ हमें कदमताल करना है। तेज चलना वक्त की जरूरत है। इसे हमने समझा। युवाओं के सपनों को उड़ान देने के लिए तकनीक से जोड़ा। लैपटॉप दिया। अब स्मार्ट फोन की बारी है।सवाल तो खूब खड़े किए जाएंगे पर हम इस फोर-जी जनरेशन में पीछे रहने का जोखिम नहीं उठा सकते। इसलिए वक्त के साथ तालमेल बिठाना ही होगा। विकास में हम पिछड़ेपन के टैग के साथ नहीं चल सकते। हमें यकीन है कि तस्वीर जरूर बदलेगी। युवा को आगे बढऩे के लिए माहौल देना होगा, सपने तो वह खुद गढ़ लेगा।

पर, एक बात और जो कहना चाहता हूं, वह यह कि युवाओं को नेतृत्व की जिम्मेदारी उठानी होगी। आज का युवा यह नहीं कहता कि उसे राजनीति में जाना है। व्यवस्था को लेकर राजनीति को कोसने के बजाय युवाओं को इसमें बदलाव का हिस्सा बनना ही होगा।









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