ब्राह्मण वोट बैंक पर कांग्रेस की कड़ी नज़र

लखनऊ: राजनीतिक पार्टियां कितने भी विकास के दावे पर चुनाव लड़ने की बात कर लें लेकिन हकीकत यही है कि सभी पार्टियों को चुनाव की बिसात में बाजी जीतने का रास्ता जातीय समीकरण की ढाई चाल बढ़ाकर ही दिखता है. टिकट बंटवारे में सभी पार्टियां उम्मीदवार के जातीय प्रभाव को देखते हुए ही जीत का समीकरण बनाती हैं. यूपी विधानसभा चुनाव के दिन जैसे जैसे करीब आ रहे है वैसे वैसे सभी पार्टियों में हलचल बढ़ रही हैं. कांग्रेस ने यूपी को फतेह करने के लिए अपने सबसे पुराने वोट बैंक ब्राह्मण समुदाय की और रुख किया हैं. कांग्रेस ने प्रशांत किशोर की इसी रणनीति के तहत शीला दीक्षित को दीक्षित को यूपी सीएम का उम्मीदवार घोषित किया है. अब टिकट बंटवारें में भी कांग्रेस करीब 100 ब्राह्मण उम्मीदवारों को टिकट देगी.
ब्राह्मणों पर क्यों है नज़र
ब्राह्मण समुदाय कांग्रेस का सबसे पूराना वोट बैंक रहा हैं लेकिन अल्पसंख्यकों और पिछड़ों की तरफ ज्यादा उदारवादी होने से उसका ये पांरपरिक वोट छिटका हैं. ब्राह्मण अभी बीजेपी का वोटर समझा जाता है. जिसे छीन कर कांग्रेस पीएम मोदी और अमित शाह को बिहार के बाद यूपी में भी करारा झटका देने चाहते हैं. 2007 में ब्राह्मण वोटर ने मायावती को खुलकर समर्थन दिया था जिसके चलते मायावती की बीएसपी ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनायी थी.
अल्पसंख्यक और पिछड़ी जाति पर सबकी नजर
कांग्रेस अब तक अल्पसंख्यक और पिछड़ी जातियों पर ज्यादा ध्यान देती रही हैं. लेकिन पिछले कई चुनावों में यह दोनों समुदाय एसपी और बीएसपी के साथ खड़े रहे हैं. एसपी की जीत का फॉर्मूला मुस्लिम-यादव फैक्टर है जबकि दलित वोट बैंक पर मायावती की पैठ मजबूत हैं. इसी के चलते कांग्रेस इस बार ब्राह्मण वोटर्स को अपनी और खींचने की कोशिश कर रही है.
ब्राह्मण वोट बंटने से बीजेपी को खतरा
ब्राह्मण वोट बंटने से सबसे ज्यादा नुकसान बीजेपी को होगा. यह समुदाय कई चुनावों से बीजेपी से बंधा है. कांग्रेस सत्ता में ना भी आए और अगर वह बीजेपी को रोकने में कामयाब होती है तो यह किसी जीत से कम नहीं होगा. जितिन प्रसाद ने अपनी रैली में भी कहा कि यूपी में सभी पार्टियां 27 साल से ब्राह्मणों की अनदेखी कर रही है. साथ ही चुनौती ये है कि इतने ब्राह्मणों को टिकट देती है तो वे उनके वोट भी ले आए.