देश में अब भी खिलखिला रही है इंसानियत

मुंबई: देश और समाज में अलग-अलग समूहों में बढ़ती असहिष्णुता के बीच रमीज़ शेख और शुक्ला जी की छोटी सी मुलाकात और उस दौरान पनपे सौहार्द के रिश्ते हमारी गंगा-जमुनी तहजीब के अब भी ज़िंदा होने के सबूत हैं.ये मुलाकात बताती है कि देश में अब भी इंसानियत खिलखिला रही है, आपसी मोहब्बत के डोर मजबूती के साथ बंधे हुए हैं.
दरअसल वाकया ये है कि एक हैं शुक्ला जी और दूसरे हैं रमीज़ शेख. शुक्ला जी मुंबई में ऑटो चलाते हैं और उन्होंने एक ऐसे बेमिसाल भाईचारे की नज़ीर पेश की है, जिसकी चर्चा सोशल मीडिया पर जमकर हो रही है और इसके गवाह बने हैं मुंबई के ही रहने वाले रमीज़ शेख़. रमीज़ शेख ने शुक्ला जी के व्यवहार और इंसानियत के बेमिसाल उदाहरण को अपने फेसबुक वाल पर भी शेयर किया है.
रमीज़ शेख के मुताबिक बीते शुक्रवार जब वो जुमे की नमाज़ के लिए अपने ऑफिस से थोड़ी दूरी पर मस्जिद के लिए निकले, लेकिन वो अपना वॉलेट ऑफिस में ही भूल गए. इससे पहले कि उन्हें इस बात की भनक लग पाती वो एक ऑटो में बैठ चुके थे और ऑफिस से दूर निकल आए थे. उन्हें जब इस बात का ख्याल आया तो उन्होंने ऑटो चालक शुक्ला जी से गुज़ारिश की कि वे उन्हें नमाज़ के बाद दोबारा ऑफिस छोड़ दें, क्योंकि वे वॉलेट लेना भूल गए हैं. रमीज़ ने शुक्ला जी को किराये से ज्यादा पैसे देने की पेशकश भी की.
शुक्ला जी ने कहा कि आप भगवान के काम से जा रहे हैं. आप टेंशन न लें…
इसपर ऑटो ड्राइवर शुक्ला जी ने जो जवाब दिया, उसकी मिसाल बहुत कम ही मिलती है. शुक्ला जी ने रमीज से कहा "आप भगवान के काम से जा रहे हैं. आप टेंशन न लें… मैं छोड़ देता हूं आपको… लेकिन मैं वेट नहीं कर पाउंगा… मुझे आगे जाना होगा." इतना सुनकर रमीज़ ऑटो में बेफिक्र बैठे रहे और मस्जिद पहुंच कर अपनी नमाज़ अदा की.
हालांकि, इस वाकये के बाद से ही रमीज को इस बात का बड़ा मलाल है कि वे उस ऑटो चालक को शुक्रिया नहीं कह पाए. मुंबई की ये छोटी सी घटना अपने आप में एक बड़ा संदेश देती है कि समाज में कुछ लोग ऐसे बचे हैं जिनमें आज भी इंसानियत, भाईचारे, इंसान दोस्ती और हिंदू-मुस्लिम एकता की जड़ें मजबूती के साथ कायम हैं.