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उत्तर प्रदेश

डूबते गांव को बचाने के लिए SDM,ने खुद मिट्टी ढोकर रोक दी कटान

डूबते गांव को बचाने के लिए SDM,ने खुद मिट्टी ढोकर रोक दी कटान
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बलिया की बैरिया तहसील। यहां गंगा-घाघरा के पानी ने उफान मारा तो दुबेछपरा का रिंग बांध दरकने लगा। कटान होने से आसपास के गांव पानी में समाने लगे। गांव वाले हाथ-बांधे खड़े थे। दिल धड़कने लगा-अब क्या होगा। सिर पर हाथ रखकर सब उदास थे। अचानक एसडीएम अरविंद कुमार की गाड़ी गांव में दाखिल हुई। गाडी़ से उतरते ही देखा गांव वाले मुंह लटकाए उदास बैठे हैं। सिर्फ बांध कटान से आने वाले पानी को देख रहे हैं। गांव वालों को हताश देख सोचे यही हाल रहा तो पूरा गांव डूब जाएगा। बोले चलो मेरे साथ चलो। गांव वाले पीछे-पीछे चलते हैं। फिर एसडीएम बांध के पास प्रशासन से मंगाई जियो बैग(मिट्टी की बोरियां) सिर पर उठाकर चल पड़ते हैं बांध की तरफ। ऐसे ही दो घंटे तक एसडीएम ने खुद सिर पर बोरियां ढोईं तो गांव वाले भी शर्मिंदा हो गए और उनका जमीर जागते ही जोश चढ़ गया। सभी बोरियां ढोते गए। धीरे-धीरे बांध की कटान रोकने में सफलता मिली। यह कहानी है कि कैसे एक एसडीएम ने हनुमान बनकर गांव को तबाही से बचा लिया।

कटान तेज होने पर भागने लगे थे मजदूर

दरअसल गंगा और घाघरा में पानी का दबाव तेज होने पर दुबेछपरा बांध से कटान तेज हो चली। पहले से इस कटान को रोकने में मजदूर जियो बैग डालने में जुटे थे। मगर, पानी का बहाव तेज होने पर डरकर मजदूर भागने लगे। तब तक एसडीएम पहुंच चुके थे। उन्होंने सोच लिया कि अगर गांव वाले हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे और मजदूर भाग गए तो बांध के आसपास के गांव पानी में समाकर तबाह हो जाएंगे। बस उन्होंने खुद बोरियां उठानी शुरू कर दीं तो गांव वाले भी जोश में आ गए।

गांव वालों ने कहा-साहब हम आपका अहसान कैसे चुकाएं

दो घंटे तक खुद सिर पर बोरियां ढोकर बांध को टूटने से बचाने वाले एसडीएम की पहल से गांव वाले गदगद रहे। जब एसडीएम जाने लगे तो गांव वालों ने एकजुट होकर कहा कि साहब हम तो आपका अहसान नहीं चुका सकते। आप नहीं होते तो गांव डूब जाता। इस पर एसडीएम ने कहा कि-आप लोगों को केवल यह बताना था कि एकजुट होकर कोई प्रयास करने से हम अपने गांव की हर मुसीबत को टाल सकते हैं।

फोटो-एसडीएम ने खुद बोरियां उठाईं तो पीछे-पीछे गांव वाले भी बोरे ढोने लगे

एसडीएम से प्रेरणा लेकर पूरे गांव डटे रहे लोग

एसडीएम ने जब गांव की भलाई के लिए अपनी अफसरियत को किनारे रखकर मजदूर भी बनना गवारा किया तो गांव के लोगों का जमीर जाग गया। उन्होंने सिर्फ प्रशासन से उपलब्ध मजदूरों के भरोसे न बैठने का फैसला किया। इसके बाद बांध के आस-पास गांव के लोग एक जुट होकर रात से लेकर सुबह तक मोर्चा खोले रहे। जिससे दुबेछपरा बांध की हालत ठीक हो सकी।

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