छिटक गई पिछड़ी जातियों को गोलबंद करने में जुटी सपा
BY Anonymous16 April 2018 2:01 AM GMT

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Anonymous16 April 2018 2:01 AM GMT
सियासत में अति पिछड़ी जातियां सभी राजनीतिक पार्टियों के निशाने पर हैं। उन्हें लुभाने के लिए हर संभव प्रयास किया जा रहा है। बसपा के साथ चुनावी गठबंधन की ओर बढ़ रही समाजवादी पार्टी का ध्यान सोशल इंजीनियरिंग पर है। सबसे ज्यादा ध्यान राज्य की अति पिछड़ी जातियों को अपने पक्ष में करने पर है। रुठे को मान मनौव्वल का दौर भी चलेगा।
सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की नजर अब पार्टी से छिटक कर कहीं और चले गये कुर्मी, सैनी, मौर्या, कुशवाहा, गुर्जर, निषाद, कश्यप, प्रजापति, राजभर, लोध और विश्वकर्मा समेत एक दर्जन से अधिक नेताओं को गोलबंद करने पर टिक गई है। वर्ष 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी की पूरी कोशिश इन जातियों के नेताओं को अपने साथ लाने की होगी।
चुनावी गठबंधन को मजबूत बनाने को लेकर अखिलेश यादव गंभीर हैं। राज्यसभा चुनाव में प्रतिद्वंद्वी भाजपा से मिली मात के बावजूद दोनों दलों के बीच के गठबंधन को बनाए रखना अब सियासी मजबूरी बन गया है। उप चुनाव में बसपा के साथ आने से सपा अति उत्साहित है। इसी क्रम में अपनी पार्टी के प्रति अति पिछड़ी जातियों को अपने पक्ष में करने की कवायद तेज कर दी गई है। इसे लेकर इन समुदाय के नेताओं के साथ पहले दौर की बैठक भी हो चुकी है।
पार्टी सूत्रों के मुताबिक अन्य पिछड़ी जातियों में सबसे मजबूत यादव नेताओं को इसमें नहीं बुलाया गया था। बताया गया कि उनके नेताओं के साथ अलग से बैठक की जाएगी, जिसमें बसपा के साथ गठबंधन धर्म को निभाने और अति पिछड़ी जाति के लोगों का विश्वास जीतने की नसीहत दी जाएगी।
समाजवादी पार्टी ने अपने आला नेताओं के साथ पिछले दिनों एक संगोष्ठी का आयोजन किया, जिसमें भाजपा की मजबूत ताकत और उसकी कमजोरियों का ब्यौरा पेश किया गया। तथ्यों व तर्को पर आधारित प्रस्तुति दी गई, जिसमें समाजवादी पार्टी की पिछले चुनावों में हुई हार की वजह को विस्तार से बताया गया। इसमें पार्टी के मूल आधार पिछड़ी जातियों के बड़े हिस्से का खिसक जाना बताया गया। सपा को सबसे ज्यादा नुकसान अति पिछड़ी जातियों का पार्टी से मोहभंग होना रहा।
अखिलेश यादव की सपा सरकार में अन्य पिछड़ी जातियों में सबसे ताकतवर यादव को छोड़कर बाकी पिछड़ी जातियां हासिये पर पहुंच गई थी। सपा की इसी चूक को भारतीय जनता पार्टी ने लपक लिया और नजरअंदाज हो रही अति पिछड़ी जातियों के नेताओं को एक-एक कर अपनी पार्टी में मिला लिया। नतीजतन, लोकसभा चुनाव के बाद प्रदेश के विधानसभा चुनाव में बसपा और सपा दोनों को भारी नुकसान उठाना पड़ा।
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