क्या सरकारी नौकरी आय कमाने एवं बढ़ाने का साधन मात्र है
BY Anonymous19 Feb 2018 1:17 AM GMT

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Anonymous19 Feb 2018 1:17 AM GMT
कैसा लगेगा आपको अगर आप किसी सरकारी पद पर बैठे इंसान से ये अपेक्षा लेकर जाए कि वो आपकी समस्या सुने और उसका निस्तारण करे लेकिन वो आपको दो टूक शब्दों में ये कह दे , भाई मै यहाँ अपने उत्थान के लिए बैठा हू , मुझे इस पद का लाभ लेने दो , मेरी आर्थिक स्थिति में सुधार होने दो , मेरा परिवार बेहद संपन्न था मुझे इस पद पर भेजने के लिए उन्होंने लाखो रुपये खर्च किये है मुझे उस इन्वेस्टमेंट की सूद समेत वसूली करने दो , ये मेरे व्यापार का पद है अगर आपसे मुझे कोई लाभ मिलता है तो ऐसी स्थिति में ही मै आपको कोई सेवा दे सकता हू.....
ऐसे में आपका जवाब क्या होगा ? वास्तव में सरकारी नौकरियों के प्रति भारतीयों की इसी धारणा ने तंत्र में भ्रष्टाचार को जन्म दिया है जिसके तहत सरकारी नौकरी कोई जिम्मेदारी का पद नहीं है बल्कि निजी उद्यमियों की तरह ही आय कमाने एवं बढ़ाने का साधन है, इसे भारतीय जनमानस की मध्ययुगीन सोच कहे या राजन्तंत्र में कई सदियों तक जीने का असर जिसके तहत सरकार एक राजा है तथा सरकारी नौकर राजा के सामंत , जनता भी उनसे राजा एवं सामंत जैसे व्यवहार की अपेक्षा करती है तथा सरकार एवं सरकारी नौकर भी इसी विचारधारा से प्रेरित होकर जनता के साथ राजा और सामंतो जैसा व्यवहार करते है, मेरे लिहाज से ऐसी धारणा वाली व्यवस्था को लोकतान्त्रिक राजतन्त्र ही कहा जायेगा...
इस मामले में हमें विकसित देशो से सीखने में तनिक भी गुरेज अथवा शर्म नहीं करनी चाहिए...
जहा सरकारी नौकर सिर्फ सरकारी नौकर है जिनकी जनता के प्रति जिम्मेदारी एवं जवाबदेही बनती है वो किसी लोकतान्त्रिक राजा के सामंत नहीं है...
जिनकी जी हुजूरी जनता को बजानी पड़े , न ही सरकारी नौकरी के पद वहा आय जेनेरेट करने एवं आर्थिक स्थिति सुधारने का साधन है , वहा ऐसे जद्दोजहद में उलझे लोग निजी क्षेत्र अथवा व्यापार में अपना सिक्का चलाते है सरकारी नौकरियों में नहीं...
भारत में भ्रष्टाचार की एक बड़ी वजह यही है कि यहाँ राजनेता ,सरकारी नौकर एक व्यापारी के भांति पेश आते है न कि देश के जिम्मेदार नागरिक के भांति जिनकी नजर में अमुक पद की गरिमा एवं जिम्मेदारी है ! भ्रष्टाचार से निपटने के लिए भारतीय समाज को एक बड़े पैमाने पर आत्ममंथन की जरुरत है !
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