प्रियंका गांधी: पर्दे के पीछे की रणनीतिकार
BY Anonymous15 Feb 2018 9:58 AM GMT

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Anonymous15 Feb 2018 9:58 AM GMT
प्रियंका गांधी का नाम इन दिनों चर्चा के केंद्र में है. इलाहाबाद की जिला कांग्रेस कमेटी ने यहां से प्रियंका को प्रत्याशी बनाने का प्रस्ताव पार्टी हाईकमान को भेजा है. आखिरी फैसला तो पार्टी हाईकमान को ही लेना है. लेकिन कांग्रेस में प्रियंका गांधी को पसंद करने वालों की कमी नहीं है. सोनिया गांधी के सक्रिय राजनीति से दूर होने और राहुल गांधी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद से एक बार फिर प्रियंका को सक्रिय राजनीति में लाने की मांग उठने लगी है. शायद ही कोई चुनाव हो, जब प्रियंका को प्रत्याशी के तौर पर उतारने की मांग कांग्रेस में न उठी हो. लेकिन हर बार प्रियंका खुद इसे नकार चुकी हैं. अब फूलपुर उपचुनाव को लेकर मांग उठी है.
पर्दे के पीछे की रणनीतिकार
वैसे राजनीतिक सक्रियता की बात करें तो प्रियंका ने खुद को अमेठी और रायबरेली तक ही सीमित कर रखा है. लेकिन पर्दे के पीछे वह एक कुशल रणनीतिकार के तौर पर भी जानी जाती हैं. इसकी बानगी पिछले यूपी विधानसभा चुनाव में देखने को मिली. माना जाता है कि 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन में प्रियंका गांधी की भूमिका अहम थी. वह कांग्रेस की तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी के दूत की तरह सीधे सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की संपर्क में थीं. हालांकि ये गठबंधन उत्तर प्रदेश की राजनीति में कोई खास प्रदर्शन नहीं कर सका.
'आर्मी चीफ की तरह चुनाव मैनेजमेंट'
यूपी विधानसभा चुनाव में प्रियंका गांधी कांग्रेस की स्टार प्रचारक सूची में भी शामिल थीं. लेकिन उन्होंने रायबरेली और अमेठी में ही चंद सभाओं में हिस्सा लिया. इस दौरान चुनावी रैली में नहीं दिखने पर कांग्रेस के यूपी प्रभारी गुलाम नबी आजाद ने कहा था कि वह चुनाव मैनेजमेंट देख रही हैं. एक तरफ राहुल गांधी और अन्य नेता जनता से सीधा संवाद कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ प्रियंका गांधी आर्मी चीफ की तरह चुनाव मैनेजमेंट देख रही हैं.
अमेठी और रायबरेली में ही रही हैं सक्रिय
प्रियंका गांधी अमेठी और रायबरेली में दशकों से राहुल और सोनिया का चुनावी प्रबंधन संभालती रही हैं. चाहे वह रायबरेली, अमेठी में जनसभा हो, कार्यकर्ताओं के साथ बैठक हो या सांसद प्रतिनिधि के तौर पर जनता से सीधा संवाद हो. वह 2007 से लगातार यहां सक्रिय भूमिका निभाती रही हैं. लेकिन वक्त और हालात तय करेंगे कि प्रियंका हमेशा पर्दे के पीछे से ही रणनीति बनाती रहेंगी या पार्टी के मंच पर भी अपनी सियासी चमक बिखेरेंगी. उनकी तुलना दादी इंदिरा गांधी से हमेशा की जाती है. हालांकि प्रियंका ने अब तक राजनीति में औपचारिक रूप से शुरुआत भी नहीं की है.
कयास तो अब ये भी हैं कि सोनिया गांधी के खराब स्वास्थ्य को देखते हुए 2019 में प्रियंका का नाम रायबरेली से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में सामने आ सकता है. हालांकि प्रियंका हमेशा ही सक्रिय राजनीति में आने की बात से इंकार करती रही हैं. सोनिया गांधी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से दूर होने के दौरान रायबरेली की जनता ने साफ किया था कि यहां से नेहरू गांधी परिवार का ही नेतृत्व उन्हें मंजूर होगा. दरअसल कहा जाने लगा था कि शायद 2019 में सोनिया गांधी चुनाव न लड़ें.
फूलपुर में जीत के लिए 1984 के बाद दूर कांग्रेस
आजादी के बाद जब पंडित जवाहर लाल नेहरू फूलपुर संसदीय सीट पर उतरे तो यह देश की सबसे वीआईपी सीट कही जाने लगी. पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू ने 1952, 1957 और 1962 में इस सीट का प्रतिनिधित्व किया. उनके निधन के बाद उनकी बहन विजया लक्ष्मी पंडित ने 1964 के उपचुनाव और 1967 के आम चुनावों में जीतीं. लेकिन इमरजेंसी के बाद यहां समाजवादी पार्टी का कब्जा हो गया. इसी सीट से जनेश्वर मिश्र सांसद चुने गए.
समाजवादी पार्टी के जंग बहादुर पटेल दो बार चुनाव जीते. 1984 में राम पूजन पटेल कांग्रेस से चुनाव जीते लेकिन इसके बाद इन्होंने पार्टी छोड़ दी और जनता दल से दो बार चुनाव जीते. सपा के बाहुबली नेता रहे अतीक अहमद ने 2004 के लोकसभा चुनाव में यहां से जीत दर्ज की. 2014 के लोकसभा चुनाव में केशव प्रसाद मौर्य ने जीत हासिल की.
जिला महासचिव हसीब अहमद ने कहा कि आज जिला कांग्रेस कमेटी की अहम बैठक हुई. इस बैठक में कई पदाधिकारियों के साथ मैंने खुद जिला अध्यक्ष के सामने एक प्रस्ताव पारित किया. इस प्रस्ताव में फूलपुर उपचुनाव में प्रियंका गांधी को लड़ाने की बात पर सहमति बनी. ताकि कांग्रेस के लिए संजीवनी प्रियंका साबित हो सकें.
प्रियंका गांधी इसलिए क्योंकि फूलपुर की ये सीट जवाहर लाल नेहरू की रही है. प्रस्ताव शीर्ष नेतृत्व को भेज दिया गया है. वहीं इस संबंध में पूर्व प्रदेश प्रवक्ता अभय अवस्थी बाबा कहते हैं कि कार्यकर्ताओं की भावना को ध्यान में रखते हुए ये प्रस्ताव आया है. ये प्रस्ताव अगर कांग्रेस पार्टी स्वीकार कर लेती है तो 2019 के चुनाव का आगाज फूलपुर से हो जाएगा.
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