गोरखपुर व फूलपुर में आसान नहीं विपक्षी एकता की राह
BY Anonymous11 Feb 2018 11:04 AM GMT

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Anonymous11 Feb 2018 11:04 AM GMT
लोकसभा चुनाव- 2019 से एक साल पहले गोरखपुर व फूलपुर संसदीय सीटों पर होने वाले उपचुनाव में विपक्षी एकता की कोशिश हो रही है लेकिन यह परवान चढ़ेगी, इसमें संदेह है।
विरोधी दलों की एका की राह में चुनौतियां कम नहीं हैं। प्रदेश की सियासत के दो मुख्य खिलाड़ी सपा-बसपा अभी एक साथ दिखने को तैयार नहीं लगते।
बसपा यदि उपचुनाव नहीं लड़ेगी तो भी किसी खास दल का समर्थन नहीं करेगी। ऐसे में विधानसभा चुनावों के नतीजों से सबक लेते हुए सपा और कांग्रेस के संयुक्त प्रत्याशी उतारने की संभावना भी क्षीण हो जाएगी।
पहले लोकसभा और फिर 2017 का विधानसभा चुनाव हारने के बाद सपा और बसपा ने भाजपा का मुकाबला करने के लिए भविष्य में चुनावी गठबंधन के संकेत दिए थे। इस इशारे को दोनों दलों का नेतृत्व दोहराता रहा है।
सियासी हल्कों में गोरखपुर व फूलपुर उपचुनाव में विपक्षी एकता की झलक दिखने की उम्मीदें लगाई जा रही हैं। वजह, ये दोनों सीट सीएम योगी आदित्यनाथ व डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के इस्तीफों से रिक्त हुई है।
इन पर भाजपा की घेराबंदी करके विपक्षी दल जनता के मिजाज में बदलाव का दावा कर सकते हैं। सपा-बसपा में अब पहले जैसी तल्खी नहीं है।
दोनों के मुख्य निशाने पर भाजपा है। उनके बीच निचले स्तर पर बातचीत भी हुई है लेकिन पार्टी सूत्रों के मुताबिक बसपा सुप्रीमो से एका के मुद्दे पर हरी झंडी नहीं मिली है।
इसलिए मजबूरी है गठबंधन
भाजपा व उसके सहयोगी दलों ने 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रदेश की 73 सीटों पर जीत हासिल की थी। बसपा का तो खाता भी नहीं खुल सका था। 2017 के विधानसभा चुनाव में भी मतदाताओं से भाजपा का रंग नहीं उतरा। उसे 325 सीटें मिलीं।
विरोधी दलों का वोट प्रतिशत दोनों ही चुनाव में भाजपा से इतना कम रहा कि उनके लिए अलग-अलग चुनाव लड़कर भाजपा का विजय रथ रोक पाना आसान नहीं है। भाजपा विरोधी मतों का बंटवारा हुआ तो उसकी राह फिर आसान हो जाएगी। भाजपा को चुनौती पेश करने के लिए विपक्ष की एकता ही बड़ा हथियार मानी जा रही है।
पहले तय हो, कौन कितनी सीट लेगा
एक बसपा नेता के मुताबिक मायावती गठबंधन की राजनीति के साइड इफेक्ट जानती हैं। जल्दबाजी में गठबंधन की घोषणा तो कर दी जाती है लेकिन चुनावों के समय सीटों के बंटवारे पर बात बिगड़ जाती है।
शायद यही वजह है कि मायावती कह चुकी हैं कि वह भाजपा के खिलाफ गठबंधन के विरोध में नहीं है लेकिन इससे पहले लोकसभा चुनाव में सीट बंटवारे पर फैसला होना चाहिए। वह चाहती हैं कि पहले यह तय हो कि 2019 में गठबंधन किया जाए तो कौन कितनी और कौन सी सीट पर लड़ेगा।
उपचुनाव को लेकर हालांकि बसपा ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं लेकिन वह इससे किनारा कर सकती है। चूंकि अभी गठबंधन के लिए प्रारंभिक बातचीत भी नहीं हुई है इसलिए बसपा किसी दल का समर्थन करने से परहेज करेगी।
सपा-कांग्रेस की दोस्ती दांव पर
विधानसभा चुनाव मिलकर लड़ चुके सपा और कांग्रेस गोरखपुर व फूलपुर में शायद ही नजदीक आएं। राजनीति के जानकार मानते हैं कि यदि बसपा ने गठबंधन को हरी झंडी नहीं दी तो सपा व कांग्रेस अपने-अपने प्रत्याशी उतारेंगे। ऐसे में उनकी दोस्ती दांव पर लग जाएगी। यूं भी कानपुर देहात की सिकन्दरा सीट पर हुए विधानसभा उपचुनाव में दोनों की राह जुदा थी।
इस कारण भी गठबंधन में बाधा
विपक्ष के कई नेता सीबीआई जांच में फंसे हैं। इनके नेताओं का कहना है कि विपक्षी दल गठबंधन की तरफ बढ़े तो उन पर जांच एजेंसियों का शिकंजा कस सकता है। इससे बचने के लिए भी गठबंधन की कोशिशें परवान नहीं चढ़ रही हैं। संभव है कि लोकसभा चुनाव नजदीक आने पर विपक्षी एकता कोई आकार ले। पिछले दिनों सपा, बसपा, कांग्रेस, रालोद जैसे दलों ने गठबंधन के संकेत दिए हैं।
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