लिपस्टिक अंडर माय बुर्का हिन्दी सिनेमा की सबसे बोल्ड फ़िल्म

हिन्दी सिनेमा पर महिलाओं को केवल वस्तु की तरह उपयोग में लाने का आरोप लगता है, ऐसे में नारीवादी फ़िल्में देखने का अपना ही आनंद है और इन फ़िल्मों में इस सप्ताह रिलीज हुई लिपस्टिक अंडर माय बुर्का से बोल्ड, सुंदर और दमदार फ़िल्म कोई दूसरी नहीं है। भारत ही नहीं, विदेशों में भी प्रशंसा पा रही यह फ़िल्म कई कारणों से बोल्ड है।
शुरूआत में लिपस्टिक अंडर माय बुर्का विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म फेस्टिवल्स में पुरस्कार जीत रही थी, 'नारीवादी' होने के कारण भारत में सेंसर बोर्ड ने इसे प्रतिबंधित किया था। हमारे जैसे पुरूष प्रधान समाज में महिलाओं की सामाजिक अवधारणा को चुनौती देने वाली और महिलाओं की दैहिक इच्छाएं व्यक्त करने वाली इस फ़िल्म को हमारी संस्कृति के लिये हानिकारक माना ही जाना था।
हालांकि, लेखक-निर्देशक अलंकृता श्रीवास्तव की लगन ने अपनी दैहिक इच्छाओं और कल्पनाओं को बेबाकी से व्यक्त करने वाली महिलाओं को प्रदर्शित करने वाली फ़िल्म लिपस्टिक अंडर माय बुर्का को भारतीय दर्शकों के लिये प्रस्तुत करना संभव बनाया।
लिपस्टिक अंडर माय बुर्का भोपाल की चार सामान्य, लेकिन अलग-अलग आयु वर्गों और पृष्ठभूमि की महिलाओं और उनके लैंगिक स्वतंत्रता पाने का दमदार चित्रण है। यह सभी महिलाएं उस खोल को तोड़कर बाहर निकलता चाहती हैं, जो समाज और उनके पुरूषों ने ओढ़ा रखा है।
पहली महिला है उषा बुआ (अत्यंत प्रतिभावान अभिनेत्री रत्ना पाठक शाह द्वारा अभिनित), 50 वर्ष पार कर चुकी एक विधवा, दैहिक इच्छाओं के लिये बहुत वृद्ध। लेकिन किसी को पता नहीं है कि उषा बुआ की कुछ दबी हुई इच्छाएं हैं और उन्हें कामुक उपन्यास पढ़ना पसंद है।
फिर है लीला (बेहतरीन अभिनेत्री अहाना कुम्रा द्वारा अभिनित), एक बोल्ड, स्वच्छंद ब्यूटीशियन, जो अपनी इच्छाओं में खोई रहती है और उसकी शादी उसकी इच्छा से विपरीत उसकी माँ की इच्छा से हुई है।
रेहाना (युवा और प्रतिभावान प्लबिता बोरठाकुर द्वारा अभिनित), एक युवा, शर्मीली लड़की, जो एक रूढ़िवादी मुस्लिम परिवार से आती है। घर से बाहर निकलते समय वह बुर्का पहनती है, लेकिन कॉलेज में जाते ही कूल टीज और डेनिम अपना लेती है।
फिर है शिरीन (कोंकणा सेनशर्मा द्वारा बढ़िया तरीके से अभिनित), तीन बच्चों की माँ, जो कि अपने पति के लिये केवल एक खिलौना है। अपनी शादीशुदा ज़िन्दगी से दूर, शिरीन व्यक्तिगत संतुष्टि के लिये एक कामयाब सेल्स गर्ल बन जाती है, हालांकि वह अपने पति को अपने व्यवसाय के बारे में नहीं बताती है।
इस फ़िल्म के हर किरदार को बखूबी बुना गया है और विभिन्न प्रकारों के पूर्वाग्रहों और बंधनों का सामना वह ऐसे करते हैं, जैसा किसी फ़िल्म में नहीं दिखाया गया है। सुंदर पटकथा वाली इस फ़िल्म में अभिनेत्रियों ने भी चार चांद लगाए हैं। रत्ना पाठक शाह और कोंकणा सेनशर्मा जैसी मंझी हुई अभिनेत्रियों के साथ अहाना और प्लबिता जैसी नई प्रतिभाओं ने अपने किरदार को जीवंत किया है। फ़िल्म ख़त्म होते ही ऐसा लगता है कि यह महिलाएं हमारे जीवन का हिस्सा हैं।
जैसा कि पहले बताया गया है, अलंकृता श्रीवास्तव की लिपस्टिक अंडर माय बुर्का न केवल महिलाओं की अवधारणा का अध्ययन है, बल्कि कई मायनों में बोल्ड भी है। लेखन बोल्ड, फ़िल्मांकन बोल्ड, किरदार बोल्ड और यह प्रयास भी बोल्ड है, जिसकी प्रशंसा की जानी चाहिये। उन्हें और उनकी जिंदादिल अभिनेत्रियों को सलाम, जिन्होंने इस बोल्ड फ़िल्म को पर्दे पर लाने में शर्म नहीं दिखाई। ईश्वर करे, उनके जैसी महिलाएं समाज में और हों।