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डायलिसिस' पर यूपी का स्वास्थ्य महकमा, कैसे पूरा होगा 'मोदीकेयर' का सपना?
BY Anonymous9 Feb 2018 12:36 AM GMT

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Anonymous9 Feb 2018 12:36 AM GMT
केंद्र सरकार ने आम बजट में 10 करोड़ गरीबों के लिए 5 लाख के स्वास्थ्य बीमा की शुरुआत की है. सरकार का दावा है कि इससे 50 करोड़ लोगों को चिकित्सकीय सुविधा का लाभ मिलेगा. इसे 'मोदीकेयर' कहा जा रहा है. लेकिन देश के सबसे बड़े प्रदेश में स्वास्थ्य व्यवस्था 'डायलिसिस' पर है. यूपी में कई मामले ऐसे आए हैं, जिन्होंने न सिर्फ स्वास्थ्य महकमे में गंभीर कमियों को उजागर किया, बल्कि सरकार की भी खूब किरकिरी कराई.
बनारस, गोरखपुर में बीआरडी मेडिकल कॉलेज से लेकर फर्रुखाबाद में आॅक्सीजन सप्लाई को लेकर कई मरीजों की मौत की घटनाएं हो चुकी हैं. सरकार इससे उबर नहीं पा रही थी कि उन्नाव में टॉर्च की रोशनी में मोतियाबिंद के आॅपरेशन के बाद अब यहीं सुई से दर्जनों मरीजों के एचआईवी पॉजिटिव होने के मामले से सरकार बैकफुट पर है. कई मामलों में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तक सरकार को नोटिस दे चुका है.
प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री भी मानते हैं कि स्वास्थ्य महकमे की स्थिति ठीक नहीं है. लेकिन साथ ही ये दावा भी करते हैं कि स्थितियां तेजी से बदल रही हैं. आने वाले वक्त में यूपी के सरकारी अस्पताल प्राइवेट अस्पतालों को टक्कर देंगे. सरकार के इन दावों से इतर कुछ प्रमुख घटनाओं की बात करें तो ताजा मामला उन्नाव से है, यहां 3 फरवरी को बांगरमऊ में खून की जांच के लिए एक कैंप लगाया गया.
यहां ब्लड सैम्पल लेने के बाद जब जांच की गई तो पहली बार मे 46 मरीज HIV पॉजिटिव पाए गए. मामला सामने आने के बाद स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप मच गया. ग्रामीणों का आरोप है कि झोलाछाप डाॅक्टर ने एक ही इंजेक्शन का बार-बार इस्तेमाल करने के कारण कथित तौर पर बार-बार इस्तेमाल करने से करीब 46 लोग संक्रमित हो गए. स्वास्थ्य विभाग ने आरोपी झोलाछाप डाॅक्टर के खिलाफ एफआईआर लिखवाई है.
वैसे उन्नाव में इससे पहले टॉर्च की रोशनी में दर्जनों मोतियाबिंद के आॅपरेशन करने की बात सामने आई थी. मामले में कुछ अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की और जांच बिठाई गई.
जून 2017 में बीएचयू के सर सुंदर लाल अस्पताल में औद्योगिक ऑक्सीजन की वजह से लगभग पचास मरीजों की मौत हो गई. जांच में यह बात सामने आई कि अस्पताल में ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कम्पनी के पास मेडिकल ऑक्सीजन के उत्पादन और वितरण का लाइसेन्स तक नहीं है.
इसके बाद अगस्त, 2017 में गोरखपुर में बीआरडी मेडिकल कॉलेज में आॅक्सीजन की कमी से कई बच्चों की मौत का मामला सामने आया. मामले में खुद सीएम योगी ने मौके पर जाकर निरीक्षण किया. बाद में आॅक्सीजन की कमी की बात को दरकिनार कर दिया गया. लेकिन साथ ही इस मामले में एफआईआर भी दर्ज हुई और अस्पताल प्रशासन से गिरफ्तारियां भी हुई हैं.
गोरखपुर का मामला अभी थमा नहीं था कि सितंबर में फर्रुखाबाद के जिला अस्पताल में आॅक्सीजन की कमी से दर्जनों बच्चों की मौत का मामला सामने आ गया. मजिस्ट्रेट जांच में आॅक्सीजन की कमी को कारण मानकर एफआईआर तक दर्ज करा दी गई. लेकिन यूपी सरकार ने मजिस्ट्रेट जांच को ही संदेह के घेरे में ला खड़ा किया और नए स्तर से जांच कराने की बात सामने आई.
वर्ष 2018 की शुरुआत में बाराबंकी में एक वॉर्ड ब्वाय के सहारे पूरा अस्पताल चलता नजर आया. पता चला कि वॉर्ड ब्वॉय डॉक्टर के साथ ही फार्मासिस्ट की भी नौकरी बाज रहा है. मामले में खबर मीडिया में छपी तो राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी स्वत: संज्ञान लेते हुए यूपी सरकार को नोटिस जारी किया.
हालांकि स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने वाराणसी में कहा कि जब हम सत्ता में आये उस वक्त यूपी की स्वास्थ्य सेवाओं का बुरा हाल था. अब धीरे-धीरे इनमें सुधार हो रहा है. अगले एक साल में काफी हद तक बदलाव देखने को मिलेगा. जिला अस्पतालों को नई तकनीक से लैस किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि एनआरएचएम घोटाला हुआ, उसके बाद से स्वास्थ्य सेवाएं ठीक नहीं हुईं. पूरी तरह से चरमराई व्यवस्था है. पहले भी मैंने कहा था कि व्यवस्था पटरी पर लाना शुरू कर दूं. अब व्यवस्था पटरी पर आना शुरू हो गई है. हम बड़े अस्पतालों में स्थितियां सुधार रहे हैं. आने वाले समय में सरकारी स्वास्थ्य केंद्र प्राइवेट से ज्यादा अच्छे होंगे.
मानवाधिकार आयोग की नोटिसें, उठते सवाल
14 अगस्त 2017: गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में कई बच्चों की मौत में उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस.
27 दिसंबर 2017: उन्नाव में टॉर्च की रोशनी में आंख के दर्जनों आॅपरेशन करने के मामले में प्रदेश के मुख्य सचिव को नोटिस.
3 जनवरी 2018: बाराबंकी में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को वॉर्ड ब्वॉय के सहारे चलाने के मामले में मुख्य सचिव को नोटिस.
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