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बजट 2018 विशेष: क्या वाकई बजट किसानों के हित में है?

बजट 2018 विशेष: क्या वाकई बजट किसानों के हित में है?
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बजट 2018 में सरकार ने किसानों के एक सपना दिखाया है। इस बात की चर्चा है कि किसानों के कई योजनाओं का ऐलान किया गया है और इसके लिए काफी बजट आवंटन किया गया है। वित्त मंत्री अरूण जेटली ने कहा है कि सभी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलेगा और समर्थन मूल्य को बढ़ाकर 1.5 गुना कर दिया गया है। जेटली ने कहा कि किसानों को लागत का डेढ़ गुना मिलेगा। खरीफ का समर्थन मूल्य उत्पादन लागत से डेढ़ गुना होगा।
किसानों के लिए यह बजट कितने उम्मीदें जगाता है? इस सवाल पर अमर उजाला डॉट कॉम के संपादक संजय अभिज्ञान ने दो विशेषज्ञों अमर उजाल के सलाहकार संपादक विनोद अग्निहोत्री और किसान संघर्ष समिति संगठन के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ सुनीलम से चर्चा की।
संजय अभिज्ञान - हम आपसे जानना चाहते हैं कि इस बजट से किसानों को क्या मिला?
डॉ सुनीलम - खोदा पहाड़ और निकली चुहिया। किसानों को जो सबसे बड़ी उम्मीद थी वो कर्ज मुक्ति की थी। पूरे देश में अलग अलग राज्य में किसानों का बहुत बड़ा आंदोलन चल रहा है। जिन राज्यों में चुनाव हो रहे हैं वहां चुनाव लड़नेवाली पार्टियां इस मुद्दे पर दावा कर रही हैं और चुनाव जीत रही है। यूपी में योगी जी ने दावा किया और सरकार बन गई, पंजाब में दावा कर कांग्रेस ने सरकार बना ली। महाराष्ट्र में किसानों का आंदोलन चला और 35 हजार करोड़ की कर्ज मुक्ति हो गई। राजस्थान में भी ऐसा आंदोलन हुआ और वहां 20 हजार करोड़ रुपये का समझौता हुआ। चारों तरफ यह बात थी कि किसानों के साथ जो ऐतिहासिक अन्याय हुआ है यानि उसकी लागत का मूल्य उसे कभी नहीं दिया गया।
बजट में समर्थन मूल्य बढ़ाने और लागत से डेढ़ गुना देने की घोषणा हुई है। जो इसका अंदर का सच नहीं जानते वो कह रहे हैं कि किसानों को तो डेढ़ गुना मिल गया इससे अच्छी क्या बात हो सकती है। यह वैसी ही बात हो गई जैसे राष्ट्रपति जी को 5 लाख रुपये वेतन मिलेगा और किसान को साढ़े छह लाख रुपये मिलेगा।
वास्तविकता यह है कि किसानों की औसत आय 1700 रुपये प्रति माह है। उनके एक दिन की आय करीब 42 रुपये है। इसलिए पिछले 20 सालों में साढ़े तीन लाख किसानों ने आत्महत्या की है। सवाल यह है कि क्या सरकार की मौजूदा बजट उस स्थिति को बदलेगी? तो जवाब यह है कि जैसा मैंने सुना वित्त मंत्री जी ने कहा है कि, 'हम अभी दे रहे हैं वो भी डेढ़ गुना है और खरीफ की खरीद पर भी डेढ़ गुना समर्थन मूल्य देंगे।' यानि अभी जो 'दे रहे हैं' कह रहे हैं उसकी वास्तविकता बताना चाहता हूं।
मैं पिछले 20 सालों से मध्य प्रदेश में मुलताई इलाके में हर साल 20 दिनों तक 200 गांवों का दौरा करता हूं। इस बार मैंने दौरा किया तो पाया कि मक्के का समर्थन मूल्य 1425 है लेकिन किसानों को 600 रुपये मिल रहे हैं। वहां की मुख्य फसल है सोयाबीन जिसका समर्थन मूल्य का रेट है 3050 रुपये और किसानों को 1500 रुपये मिल रहा है।
जब यह बात मैंने बाहर पहुंचाई तो लोगों ने कहा कि सरकार ने भावांतर योजना लागू की हुई है। किसान को कम मूल्य मिलेगा तो सरकार उसका मुआवजा दे देगी। अब इसमें बहुत बड़ा पेंच है जिसे जानना बहुत जरूरी है।
एक हेक्टेयर जमीन पर 60 क्विंटल मक्का की पैदावार होती है। सरकार ने कहा कि वह 19 क्विंटल 54 किलो की खरीदी करेगी। यानि सरकार ने 40 क्विंटल को खरीदने से पहले ही मना कर दिया। अब इस भावांतर योजना में केवल 10 फीसदी किसानों ने ही पंजीकरण कराया जिनकी फसल को सरकार द्वारा खरीदा गया। अब भावांतर योजना के तहत सिर्फ 200 रुपये दिया गया। यानि किसान का 1425 रुपये का मक्का 800 रुपये में बिक गया।
यानि किसान की फसल का आज का न्यूनतम समर्थन मूल्य उसे नहीं मिल रहा है। सरकार को यह बजट में यह ऐलान करना चाहिए था कि किसान की उपज का एक-एक दाना सरकार लागत के डेढ़ गुना मूल्य पर खरीदेगी।
'14.5 लाख करोड़ रुपये आंकड़ों की बाजीगरी है'
विनोद अग्रिहोत्री - वित्त मंत्री जी ने कहा है कि सरकार ने किसानों के लिए 14.5 लाख करोड़ रुपये बजट का आवंटन किया है। इतिहास में शायद ही कभी किसानों के लिए बजट में इतनी बड़ी धन राशि का आवंटन किया गया हो। इसके बावजूद आप कह रहे हैं कि किसानों के लिए कुछ नहीं किया गया है, यह बात समझ नहीं आ रही।
सरकार कह रही है कि 2022 तक किसान की आमदनी दोगुनी कर देंगे। अब शिकायत कहां रह जाती है?
डॉ सुनीलम - विशेषज्ञ बता रहे हैं कि 14.5 लाख करोड़ रुपये के इस आंकड़े में 11 लाख करोड़ रुपये तो सिर्फ कर्ज के लिए है, असल में किसान कल्याण के लिए तो सिर्फ 46 हजार करोड़ रुपये हैं। यानि किसान को जो आप कर्ज देंगे उसे वापस चुकाना है। आप उसे कुछ अपनी तरफ से नहीं दे रहे हैं। दोनों को जोड़कर इस आंकड़े को 14.5 लाख करोड़ रुपये बना दिया गया है। देश का बजट 24 करोड़ का है उसमें से किसानों के लिए 14.5 लाख करोड़ का आवंटन बता रहे हैं।
वास्तविकता में आज तक किसानों को बजट का 2 से 3 फीसदी हिस्सा मिलता है। दरअसल पेश किया गया आंकड़ा लोगों के साथ एक धोखा है। लोगों को लग रहा है कि मध्यम वर्ग को कुछ नहीं मिला और किसानों को सब कुछ मिल गया दरअसल यह एक धोखा है।
उदाहरण के लिए प्रधानमंत्री ने फसल बीमा योजना का ऐलान किया कि वह एक क्रांतिकारी योजना है। लेकिन जिन 200 गांवों में मैंने दौरा किया वहां 2014 के बाद से एक भी किसान को यह पैसा नहीं मिला। और यही हाल पूरे मध्यप्रदेश की है। मतलब सरकार की घोषणा सिर्फ कागज तक होती है और जमीनी स्तर पर उसका लाभ किसानों को नहीं मिल पाता है।
विनोद अग्निहोत्री - सरकार की नीयत ठीक है लेकिन अमल में गड़बड़ी हो सकती है।
संजय - स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए आयुषमान स्कीम में 10 करोड़ परिवारों को 5 लाख तक मुफ्त इलाज मिलेगा। तो इन 50 करोड़ लोगों में सिर्फ शहरी ही नहीं किसान भी शामिल हैं। किसान सिर्फ खेतीबाड़ी नहीं करता। किसान एक उपभोक्ता भी है, किसान जब अस्पताल में जाता है तो एक रोगी भी है। उस तरह से बजट में बहुत सी कल्याणकारी योजनाएं आई हैं, खासतौर पर स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए, जो बहुत बड़ी घोषणा है।
डॉ सुनीलम - जो फसल बीमा का सच है वही स्वास्थ्य बीमा का सच है। मध्यप्रदेश में एक योजना है जिसके तहत गरीब व्यक्तियों को इलाज के लिए 30 हजार रुपये तक की मदद करती है। उन 200 गांवों में मैंने पाया कि हर गांव में सिर्फ एक या दो लोगों को इसका लाभ मिला। अगर पांच हजार की आबादी वाला बहुत बड़ा गांव है तो चार या पांच लोग इस योजना के लाभार्थी थे। गरीबी रेखा के नीचे रहनेवाले 30 से 40 फीसदी लोगों में से एक फीसदी लोगों को भी इसका फायदा नहीं मिला।
स्वास्थ्य का बजट पहले 51 हजार करोड़ रुपये था उसमें सिर्फ एक हजार करोड़ रुपये बढ़ाया गया है। तो अगर सरकार दावा कर रही है कि एक हजार करोड़ रुपये में 50 करोड़ लोगों का स्वास्थ्य बीमा करा दिया जाएगा तो यह एक फ्रॉड के अलावा कुछ नहीं है।
जिनके पास जमीन नहीं उनके लिए बजट में क्या है?
संजय अभिज्ञान - गांवों में कृषि के अलावा भी कई रोजगार पैदा हो सकते हैं। गांवों में जिनके पास जमीन नहीं हैं वो मजदूरी करने के लिए मजबूर हैं बल्कि आत्महत्याएं बढ़ रही हैं। कृषि क्षेत्र में और क्या हो सकता था, क्या रास्ते थे जिनकी उम्मीद थी और वो नहीं पाए?
विनोद अग्निहोत्री - मत्स्य पालन पर सरकार ने 10 हजार करोड़ रुपये आवंटित किया है। इसी तरह अगर पोल्ट्री, बागवानी, डेयरी, पशु पालन जैसे क्षेत्र हैं जहां रोजगार पैदा होते हैं और लोगों को स्वरोजगार मिलता है, इन दूसरे क्षेत्रों पर ध्यान दिया जाता तो अच्छा होता।
डॉ सुनीलम - इस वक्त देश में पशुपालन क्षेत्र की स्थिति में देखा जाए तो किसान गाय और भैंस पालता है। प्रति लीटर दूध का रेट 10 रुपया गिर गया है। किसान को एक लीटर दूध बेचने पर 15 रुपये मिल रहे हैं और बाजार में पैकेज्ड पानी की एक लीटर की बोतल 20 रुपये में मिलती है। पशु चारे में इस्तेमाल होने वाल खल्ली की कीमत 200 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ गई है। पशुपालक की लागत भी नहीं निकल पा रही रहा। वह घाटे में है इसलिए सोचता है कि अपने पशु को गौशाला में छोड़ दूं क्योंकि आज के समय में वह गाय बेच भी नहीं सकता हैं क्योंकि नए कानून से बिक्री पर रोक लगी हुई है। किसान की पूरी अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो गई है। पहले पैसों की जरूरत पड़ने पर वह अपना एक पशु बेच देता था। अब अगर वह अपने पशु को गौशाला में रखने जाता हैं तो वहां पूरे एक साल का चारा का पैसा पहले ही जमा कराया जाता है। इसलिए आज आवारा पशु बहुत बड़ी समस्या बन गए हैं।
संजय अभिज्ञान - बजट में हम ई-कॉमर्स से जुड़ी योजनाएं देखते हैं। ताजा योजना है ई-नैम। इन योजनाएं का किसानों के लिए कितना महत्व है और क्या यह उन तक पहुंची हैं?
डॉ सुनीलम - मैंने ई-नैम का अध्ययन किया है। ई-नैम योजना के तहत किसानों को बस एक कंप्यूटर पकड़ा दिया गया है। किसान को कैसे बेचना है या खरीदना है इस बारे में उन्हें कोई मदद और मूलभूत सुविधाएं नहीं मिल पाती। आपने हर मंडी को 75 लाख रुपये दिए लेकिन उसके साथ किसी इंफ्रास्ट्रक्चर का प्रावधान नहीं किया। आप डिजीटल इंडिया की बात करते हैं। अच्छा है, लेकिन आज स्मार्ट सिटी नहीं स्मार्ट विलेज, स्मार्ट किसान की जरूरत है। आप किसान को प्राथमिकता नहीं दे रहे हैं। किसान की एक एस्योर्ड इनकम होनी चाहिए। अगर राष्ट्रपति को 5 लाख रुपये सैलरी दी जा रही है तो किसान के परिवार के लिए 25 हजार रुपये की आय सुनिश्चित की जानी चाहिए। आपने किसानों को 11 लाख करोड़ रुपये का कर्ज दे दिया है। यानि आपने किसान को और कर्जदार बना दिया। किसान पहले ही कर्ज को बोझ तले दबकर आत्महत्याएं कर रहा था, आपने उसे और कर्ज के तले दबाने का इंतजाम कर दिया है।
यह 5 चीजें हो जाती तो किसान खुश होता
विनोद अग्निहोत्री - माना यह जा रहा है कि चुनावी वर्ष है और सरकार ने गांवों की तरफ खजाने खोले हैं। डॉ सुनीलम आपका क्या विचार है कि बजट में क्या प्रावधान होते जिससे वास्तविक सुधार होता और जमीन पर अमल होता। आलोचना आसाना है, सुझाव भी दीजिए।
डॉ सुनीलम - चुनाव की बात की है तो आज के तीनों चुनाव नतीजों को देखें, तीनों जगह भाजपा हार गई। ग्रामीण जनता ने हरा दिया। पूरे ग्रामीण गुजरात में किसान ने भाजपा को हराने का काम किया। किसान पहले से ही त्रस्त है। फसल बीमा योजना से किसान पहले ही निराश था अब डेढ़ गुना लागत समर्थन मूल्य की योजना से और निराश होने वाला है।
सकारात्मक मुद्दों पर बात करें कि क्या होना चाहिए था। किसान के साथ ऐतिहासिक अन्याय हुआ है। पिछले चार सालों के दौरान सरकार ने सिर्फ 100 कॉरपोरेट के लिए 14 लाख करोड़ की रियायत दी है, तो किसानों पर कुल कर्जा भी इतने के बराबर है। सरकार को पूरे देश के किसानों को उसके कर्ज से मुक्त करना चाहिए था।
मजदूर को 18000 या केंद्र के सरकारी कर्मचारी को 25000 देना सुनिश्चित किया है, क्योंकि आप उनकी जरूरत समझते हैं। ऐसे ही 1700 रुपये की आय वाले किसानों के लिए कुछ करना चाहिए था। डेढ़ गुना समर्थन मूल्य से कम मूल्य पर फसल खरीदने पर जेल जाने का कानून बनाना चाहिए था। क्योंकि यह एक राज्य का मामला नहीं है।
सिंचाई, प्राकृतिक आपदाओं के लिए भी कोई आवंटन नहीं दिया गया है। उसे दिया जाना चाहिए था। भंडारण बड़ी समस्या है। हर पंचायत में एक कोल्ड स्टोरेज बनना चाहिए क्योंकि फसल सड़ जाती है।
सांसद, विधायक की तरह किसानों को पेंशन देना चाहिए। अन्नदाता को कम से कम 5000 रुपये पेंशन देना चाहिए था।
खेती किसानी में पंजाब आदर्श माना जाता है। लेकिन पंजाब में पेस्टिसाइड वाली खेती से हर चौथा व्यक्ति कैंसर से पीड़ित है। यही मॉडल देशभऱ में थोप दिया गया। जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए पैसा आवंटन करना चाहिए था।
किसानों के नजरिये से बजट को कितने नंबर?
संजय अभिज्ञान - भारत गावों में बसता है। आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा खेती कर रहा है। राजनीति का यह कैसा विचलन है जिसमें राजनेताओं को किसानों की अवहेलना करने की आजादी मिल जाती है।
विनोद अग्निहोत्री - अर्थव्यवस्था में सभी वर्ग आपस में जुड़े हुए हैं। किसान सबसे बड़ा उपभोक्ता वर्ग है। किसान की आय कम होगी तो इसका असर सब पर पड़ेगा। किसान की अवहेलना किसान नेताओं की वजह से होती है। एक समय में किसान नेताओं की तूती बोलती थी। चौधरी चरण सिंह, चौधरी देवीलाल, बलराम जाखड़ जैसे किसान नेता हुआ करते थे। आज राजनीतिक पार्टियों में किसान नेता नहीं हैं। जो किसान नेता हैं वो कारपोरेट की गोद में बैठ गए हैं। और जो डॉ सुनीलम जैसे किसान नेता जो सड़क पर हैं आंदोलन कर रहे हैं उनका राजनीति में दखल नहीं है।
डॉ सुनीलम - छोटू राम, सहजानंद सरस्वती, नारायण स्वामी, शरद जोशी ऐसे बहुत से किसान नेताओं का नाम जोड़ना चाहता हूं। लेकिन मैं यह कहना चाहता हूं कि सरकारों की विकास की एक दृष्टि हैं कि जब तक आम किसानी और गांव खत्म नहीं होगा तब तक यह देश तरक्की नहीं कर सकता। यह मुख्यधारा की सोच है। अगर इस मुख्यधारा की सोच के साथ सरकार बनती हैं और राजनीतिक पार्टियां काम करती हैं। तो फिर किसान संगठनों की भूमिका हो जाती है कि हम अपनी ताकत कितनी इकट्ठा कर अपना हिस्सा लेने का प्रयास करते हैं। किसानों की स्थिति के लिए सरकारें जिम्मेदार हैं। किसान की तरक्की के बिना देश नहीं बनेगा।
ऐसा पहली बार हुआ है कि 30 राज्यों के 190 किसान संगठन एक साथ आए हैं। किसानों को समझ आ गया है कि अकेले लड़कर वे अपनी किसानी नहीं बचा सकते और हक नहीं पा सकते। हम एकजुटता बनाने का प्रयास कर रहे हैं।
संजय अभिज्ञान - किसानों के नजरिये से बजट को 10 में से कितने नंबर देंगे?
डॉ सुनीलम - जीरो।
विनोद अग्निहोत्री - मैं कम से कम 5 नंबर दूंगा। लेकिन मैं कहूंगा कि वोट देते समय किसान हिंदू मुसलमान हो जाता है।
डॉ सुनीलम - किसान की पहचान पीछे चली जाती है और उसकी राजनीतिक, जातीय या धार्मिक पहचान सामने आ जाती है। यह एक बहुत बड़ी चुनौती है।
संजय अभिज्ञान - चर्चा का निष्कर्ष है कि बजट में किसान के लिए दोनों तरह की खबरें हैं। कुछ अच्छी चीजें भी हैं। लेकिन धरातल पर देखें तो बहुत उम्मीदें नहीं जगतीं। यह विडंबना है राजनीति की कि चुनाव के समय किसान की पहचान किसान की नहीं रहती।
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