"बेचैन बंदर"
BY Anonymous1 Feb 2018 11:45 AM GMT

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Anonymous1 Feb 2018 11:45 AM GMT
रसायन विज्ञान की प्रयोगशाला में जब कोई विद्यार्थी परखनली में नीले-पीले रसायन मिलाकर वह प्राप्त कर लेता है जो उसकी पुस्तक में निर्देशित हो तो उस वक्त उसके चेहरे पर गौर किजिए ! वह खुद को वैज्ञानिक से कम नहीं समझता. जीवविज्ञान की प्रयोगशाला में मेढ़क चीर कर उसके अंगों को उसके नाम की झंडियाँ लगाकर निकलने वाले विद्यार्थी के अन्दर डाक्टर का हावभाव आ जाता है..वह खुद में एक डाक्टर देखने लगता है.
दरअसल ज्ञानात्मक पक्ष एवं जीवन में विज्ञान की इतनी महत्वपूर्ण दावेदारी है कि इसकी बोधगम्यता के साथ व्यक्ति की दृष्टि ही बदल जाती है...उसके सोचने, समझने और जीने का नजरिया ही बदल जाता है।
यदि मैं यह लिखूँ कि विज्ञान हमारे जीवन में वरदान है। आज यह दुनिया जहाँ खड़ी है उसके पीछे सबसे बड़ा योगदान, विज्ञान का है। विज्ञान हमारा सबसे बड़ा सेवक है. चिकित्सा से लेकर संचार तक यह हमारा सबसे निष्ठावान सहचर है। आप जिधर चाहें उधर अपनी निगाहें उठाकर देख लें. परत दर परत विज्ञान हमको सलाम करेगा.. सच है न! वैसे मैं कतई भी विज्ञान की जीवन में उपयोगिता और महत्व पर निबन्ध नहीं लिखने जा रहा लेकिन बात जब विज्ञान की उठेगी तो उनके आगवानी और इज्ज़त बख्शी में इतना तो लिखना ही पड़ेगा।
विद्यालय में प्रवेश के साथ ही प्रत्येक अभिभावकों की यह इच्छा होती है कि उसके बच्चे विज्ञान विषयों में कमाल करें. अधिकतम अर्जित करें। आज भी विज्ञान संवर्ग के विद्यार्थी कुछ विशेष दृष्टि से अवश्य देखें जाते हैं। यह धारणा है कि विज्ञान एक कठिन विषय है। कठिन भले न हो लेकिन यह एक सुव्यवस्थित ज्ञान है। इसमें कुतर्क की गुंजाइश न के बराबर है.. यहां भावनाओं की कोई जगह नहीं यहाँ तथ्य और सिद्धांत चलते हैं। यहाँ शब्दों की हेराफेरी नहीं चलती...इसको पढ़ने के बाद हँसी नहीं आती.. विस्मित और चमत्कृत होने वाली बात अवश्य होती है..
आज फेसबुक पर प्रत्येक विषय पर लिखने एवं अपनी अभिव्यक्ति करने वालों की एक बड़ी संख्या है.. लोग बेहतर प्रयास कर रहे हैं एवं उनको पढ़ने, महसूस और प्रोत्साहन करने वालों की भी बड़ी संख्या है। वैसे आप गौर करें तो अन्य विषयों पर लेखन की तुलना में विज्ञान पर लिखने वाले कम हैं। उसकी एक बड़ी वजह.. विज्ञान खुद में हस्तक्षेप का मौका कम देता है इसकी खुद की एक शब्दावली है इसलिए यह इन शब्दों में विकल्प शब्दों की कलाकारी करने पर लेखक के हाथ पकड़ लेता है.. यह ज्ञान की सुस्पष्टता के साथ सुव्यवस्थित अध्ययन की मांग करता है इसलिए विज्ञान पर लिखने वाले कम हैं। लेकिन उन कम नामों से एक नाम विजय सिंह ठकुराई का है जिन्होंने अपने फेसबुक लेखन में न केवल विज्ञान विषय को अपना दोस्त बनाया बल्कि अपने बेहद ही सरल एवं सहज भाषा में विज्ञान के जटिल से जटिल प्रश्नों को अपनी लेखन क्षमता से पाठकों के लिये सहज और सरल बनाया। आज विजय सिंह ठकुराई विज्ञान लेखन के माध्यम से फेसबुक पर जाना पहचाना चेहरा होने के साथ चहेते शख्सियत भी हैं।
मित्रों इन दिनों विजय जी कुछ "बेचैन" चल रहे हैं. ऐसा नहीं कि उनकी बेचैनी गैरवाजिब है दरअसल वह अपने पाठकों के लिये विज्ञान विषय पर उनकी जिज्ञासाओं, को तृप्त करने एवं विज्ञान के अनछुए एवं रोचक पहलुओं पर अपनी बेहतरीन एवं बहुप्रतीक्षित पुस्तक "बेचैन बंदर" के प्रकाशन में व्यस्त हैं। पुस्तक की बुकिंग प्रारंभ हो गई है और फरवरी माह में उनकी बेचैन बंदर आपकी विज्ञान की बेचैनियों और जिज्ञासाओं को शान्त करने आ रहा है।
पूर्व से ही विजय जी अपने अद्भुत ज्ञान एवं लेखन से चमत्कृत करते रहे हैं इसलिए मैं खुद भी उन्हें पढ़ने के लिये बेचैन हूँ.. और साथ में यह हमारा दायित्व भी है कि हम उनके इस उत्कृष्ट कृति को लोगों तक पहुंचाएं..उनके इस स्वप्न को आकाश तक ले जायें.
मित्रों, जुड़े विजय सिंह ठकुराय एवं उनकी बेहतरीन कृति #बेचैन_बन्दर से
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रिवेश प्रताप सिंह
गोरखपुर
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