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उत्तर प्रदेश

सीबीआई को अनिल यादव के पांच फैसले खटके

सीबीआई को अनिल यादव के पांच फैसले खटके
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सपा शासन में लोक सेवा आयोग में हुईं भर्तियों में हुए भ्रष्टाचार की शुरुआती जांच में ही सीबीआई को पांच निर्णय खटकने लगे हैं। ये निर्णय आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अनिल यादव के कार्यकाल में हुए थे। सीबीआई इन निर्णयों का निहितार्थ समझने की कोशिश कर रही है क्योंकि इसमें उसे कहीं न कहीं सपा शासनकाल के दौरान आयोग में हुई भर्तियों में भ्रष्टाचार की गंध मिल रही है। सीबीआई अफसर जानना चाहते हैं कि इन फैसलों के पीछे आयोग का असल उद्देश्य क्या था?
जुलाई 2013 में आयोग ने भर्ती परीक्षा में तीन स्तर पर आरक्षण लागू करने का फैसला लिया था। हाईकोर्ट की रोक और सरकार की दखल के बाद फैसला वापस हुआ। इस आधार पर तैयार पीसीएस 2011 का परिणाम संशोधित कर दिया गया था।
अक्तूबर 2013 में आयोग ने अनारक्षित वर्ग के चयनित अभ्यर्थियों के नाम के आगे उनकी जाति/वर्ग का उल्लेख न करने का फैसला लिया था। इस पर विवाद हुआ था। प्रतियोगियों ने इस फैसले की आड़ में गड़बड़ी करने के आरोप लगाए थे।
अप्रैल 2015 में आयोग ने फैसला लिया कि अब परिणाम घोषित करते वक्त सफल होने वाले अभ्यर्थी के नाम का उल्लेख नहीं किया जाएगा। सिर्फ रोल नंबर और इनरोलमेन्ट नंबर ही रहेगा। छात्रों ने इसका विरोध किया था।
नंबर देखने में ओटीपी पासवर्ड व्यवस्था तब लागू हुई जब पीसीएस 2011 के परिणाम को आयोग की वेबसाइट से अपलोड कर प्रतियोगियों ने लिखित में कम अंक पाने वाले खास जाति के अभ्य- र्थियों को इंटरव्यू में अधिक नंबर देने का मामला उजागर किया।
परीक्षा संपन्न होने के बाद आयोग पेपर में पूछे गए प्रश्नों की उत्तर कुंजी जारी करने के बाद परीक्षार्थियों की आपत्ति लेता है। लेकिन इसके बाद भी आयोग द्वारा संशोधित उत्तर कुंजी जारी न करने को लेकर भी विवाद हुआ था।
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