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उत्तर प्रदेश

आजाद हिंद फौज के बेमिसाल तोपची थे कोमल यादव

आजाद हिंद फौज के बेमिसाल तोपची थे कोमल यादव
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सिंगापुर में ही नेताजी का भाषण सुनकर वह काफी प्रभावित हुए। उन्होंने तबेला बेच दिया। इन रुपयों को नेताजी को सौंप वह आजादी के लड़ाई में कूद गए। उनकी ताकत देखकर नेताजी ने उन्हें अपना तोपची बन लिया। बड़हलगंज के छपरा गांव निवासी नायक यादव के पुत्र बाढ़ू, श्यामदेव और कोमल अच्छे पहलवान थे।
तीनों भाई आस-पास होने वाले दंगलों में जाते थे और पलक झपकते अपने हम उम्र पहलवानों को धूल चटा देते थे। 28 साल की उम्र में कोमल यादव अपने भाई श्यामदेव के साथ वर्मा गए। वहां से दोनों भाई सिंगापुर चले गए और नौकरी शुरू कर दी। दोनों भाइयों ने कुछ दिन नौकरी करने के बाद अलग-अलग तबेला खोल लिया। वे गाय-भैंस पालकर दूध निकालते थे और उसे बेचकर अच्छी कमाई करते थे। उन्हीं दिनों नेताजी सुभाष चंद्र बोस सिंगापुर में थे। वह देश की आजादी के लिए फौज तैयार कर रहे थे।
एक सुबह कोमल यादव एक दुकान पर दूध पहुंचाकर लौट रहे थे। एक स्थान पर नेताजी का भाषण चल रहा था। तेज बारिश में हजारों की भीड़ उन्हें सुन रही थी। एक व्यक्ति ने नेताजी के ऊपर छाता लगाना चाहा तो उन्होंने उसे यह कहते हुए रोक दिया कि वही अकेले नहीं इतने लोग भीग रहे हैं। नेताजी के शब्दों ने कोमल पर जादू कर दिया। वे तबेले पर पहुंचे और ग्राहक बुलाकर उसे बेच दिए। जो रुपये मिले उसे उन्होंने नेताजी के हाथ पर रख दिया और उनके द्वारा चलाए जा रहे कैम्प में शामिल हो गए।
कोमल यादव कैम्प में अन्य युवाओं से कुश्ती लड़ते थे तो जीत जाते थे। नेताजी ने उनकी ताकत और साहस देखकर उन्हें अपना तोपची बना लिया। देश आजाद हो गया और वह बैंकाक चले गए। वहां उन्होंने करही गांव निवासी चौथी यादव की पुत्री लाची देवी से विवाह कर लिया। उन्हें चार पुत्र और चार पुत्रियां हुईं। बाद में वह पत्नी के साथ अपने ससुराल आ गए। यहां वर्ष 2010 में 108 साल की उम्र में दम तोड़ दिया।
पीठ पर लादकर तोप ले जाते थे कोमल
कोमल के बड़े पुत्र रामजीत यादव मंगलवार को 'हिन्दुस्तान' से बातचीत में भावुक हो गए। उन्होंने पिता की बताई बातों को याद करते हुए कहा कि तब आजाद हिंद फौज 25 तोपची थे। सभी तोप खोलना और उसे सेट करना जानते थे। नेताजी के निर्देश पर वे सभी पीठ पर लादकर तय स्थान पर तोप लेकर जाते थे।
जुगनू पकड़कर उसकी रोशनी में तोप की रेंज मिलाते थे
कोमल यादव ने बताया था कि रात में वे लोग जुगनू पकड़ते थे। तोप सेट करने के बाद जुगनू से निकलने वाली रोशनी में रेंज मिलाते थे। सबके खाने-पीने की व्यवस्था नेताजी के तैयार किए गए लोग करते थे।
कोमल के नाम से जानी जाती गांव की सड़क
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कोमल यादव के नाम पर उनके गांव कोना सोनबरसा-करही मार्ग का नाम रखा गया है। इसके अलावा कोई अन्य व्यवस्था नहीं की गई है। कोमल यादव के पुत्र रामजीत बताते हैं कि कुछ लोगों ने शहर में उनकी मूर्ति लगवाने को कहा था लेकिन अब तक नहीं लगा।
पेंशन भी नहीं पाए कोमल यादव
रामजीत यादव बताते हैं कि वर्ष 1968 में उनके पिता करही गांव ससुराल आए थे। उन्होंने बड़हलगंज क्षेत्र के नउअर गांव निवासी एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी को अपने कागजात दिए ताकि उन्हें भी पेंशन आदि की सुविधा मिले। कागजात देने के बाद वह बैंकाक लौट गए। दस वर्ष बाद जब वह दुबारा यहां लौटे तब तक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की मौत हो चुकी थी। कागजात भी गायब थे।
पिता के नाम पर रामजीत खुद बनवाएंगे पार्क
करही गांव निवासी रामजीत बताते हैं कि वह अपने पिता के साथ बैंकाक से यहां आ गए थे। वे दोनों यहीं बस गए। जब उनके पिता थे तो पांच साल का बीजा मिल जाता था और वे भी बैंकाक चले जाते थे। उनके पिता के निधन के बाद अब छह माह का ही बीजा मिल पाता है। उन्होंने ठान ली है कि शासन और प्रशासन ने भले ही उनके पिता के नाम पर कुछ नहीं किया, वे खुद पार्क बनवाएंगे। उसमें पिता की मूर्ति भी लगवाएंगे।
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