आप आदमी पार्टी पर मंडरा रहा एक और बड़ा खतरा, अन्य 27 MLA पर लटक रही तलवार

आम आदमी पार्टी (आप) के बीस विधायकों की सदस्यता रद्द होने की हालत में भी दिल्ली सरकार की सेहत पर बेशक सीधा असर नहीं पड़ने जा रहा है, लेकिन इससे पार्टी की बुनियाद कमजोर हो सकती है। खासतौर से मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल व वरिष्ठ नेता कुमार विश्वास के बीच चल रहे मतभेद से विश्वास समर्थक विधायक मुखर हो सकते हैं। वहीं, केजरीवाल की मनमानी का हवाला देते हुए उनके समर्थक कार्यकर्ताओं के भी विश्वास के हक में उठ खड़े होने की आंशका जताई जा रही है। दरअसल, 2015 के विधान सभा चुनावों में दिल्ली में आप ने क्लीन स्वीप करते हुए 70 में से 67 सीटें जीती थीं। प्रचंड बहुमत से बनी सरकार के अगले पांच साल तक डिगने की उस वक्त कोई आंशका भी नहीं थी। यही वजह रही कि आप के संस्थापक सदस्यों योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण समेत एक धड़े के आप से बाहर होने के बाद भी सरकार पहले की तरह चलती रही। इससे पार्टी के भीतर तोड़-फोड़ की गुंजाइश नहीं बनी। राज्य सभा चुनाव से पहले कुमार विश्वास का विरोध भी प्रचंड बहुमत के तले दबा रहा। हालांकि चुनाव के बाद से अब तक पंकज पुष्कर, कपिल मिश्रा समेत पांच विधायक पार्टी से खफा भी हुए। रद्भाजौरी गार्डन से उपचुनाव के चलते यह सीट आप के हाथ से निकल गई यानि आप में 66 विधायक रह गए।
अगर अब 20 विधायकों की सदस्यता रद्द होती है तो सरकार गिरने की कोई आंशका न होने के बाद भी पार्टी का अंदरूनी संघर्ष तीखा हो सकता है। इसमेें कुमार विश्वास खेमे का संजीवनी मिल सकती है।
जानकार बताते हैं कि इसके बाद आप विधायकों की संख्या 46 पर सिमट जाएगी। अगर इसमें पार्टी के भीतर मौजूद 5 बागी विधायकों को निकाल दिया जो तो संख्या 41 पर पहुंच जाएगी।
इसमें से कुछ विधायकों का कुमार विश्वास के प्रति रुख नरम है। ऐसे में अभी तक शांत रहा विश्वास खेमा मुखर हो सकता है। कपिल मिश्रा ने शुक्रवार को यह कहकर इशारा भी कर दिया कि सिर्फ केजरीवाल की मनमानी से विधायकों पर गाज गिर रही है।
राष्ट्रपति का फैसला आने के बाद आगे इस मसले को तूल दिया जा सकता है। संभावना इस बात की भी है कि कुमार विश्वास खेमा 17 उन विधायकों को भी अपने हक में करने की कोशिश करे, जिनकी सदस्यता पर रोगी कल्याण समिति मामले में तलवार लटकी हुई है।
27 विधायकों का मामला भी आयोग में लंबित
दिलचस्प यह कि अस्पतालों में रोगी कल्याण समिति के अध्यक्ष के तौर पर विधायकों को नियुक्त किए जाने का एक मामला चुनाव आयोग में लंबित है। इसमें 10 संसदीय सचिवों समेत 27 विधायक शामिल हैं। इस मामले में पार्टी का स्पष्टीकरण था कि इनकी नियुक्ति नियम के अनुसार की गई है।
पहले की सरकारों की तरह अस्पतालों की कमेटियों में विधायकों को रखा गया है। इसे लाभ का पद बताते हुए विभोर आनंद नामक एक वकील ने 2016 में आयोग में शिकायत की थी। मामला तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पास पहुंचा था।
राष्ट्रपति ने इसे जांच-पड़ताल के लिए चुनाव आयोग के पास भेज दिया था। अभी इस मामले में फैसला आना बाकी है। अगर इस मामले में आयोग आप विधायकों के खिलाफ फैसला देता है तो विधान सभा में उनकी संख्या 29 पर सिमट जाएगी। जबकि सरकार चलाने के लिए 36 विधायकों की जरूरत होती है।
आनंद के मुताबिक, सभी 27 विधायक रोगी कल्याण समिति का अध्यक्ष होने के नाते लाभ के पद के दायरे में आते हैं। इसके चलते इन विधायकों की विधानसभा सदस्यता रद्द की जानी चाहिए।
रोगी कल्याण समिति में पहले कोई भी विधायक केवल सदस्य के तौर पर शामिल किया जाता था। आप सरकार ने नियमों के खिलाफ जाकर विधायकों को अध्यक्ष के पद पर आसीन कर दिया।