अनंत चतुर्दशी – व्रत पूजा विधि : प्रेम शंकर मिश्र
BY Suryakant Pathak3 Sep 2017 10:38 AM GMT

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Suryakant Pathak3 Sep 2017 10:38 AM GMT
भादों यानि भाद्रपद मास के व्रत व त्यौहारों में एक व्रत इस माह की शुक्ल चतुर्दशी को मनाया जाता है। जिसे अनंत चतुर्दशी कहा जाता है। इस दिन अनंत यानि भगवान श्री हरि यानि भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। साथ ही सूत या रेशम के धागे को चौदह गांठे लगाकर लाल कुमकुम से रंग कर पूरे विधि विधान से पूजा कर अपनी कलाई पर बांधा जाता है। इस धागे को अनंत कहा जाता है जिसे भगवान विष्णु का स्वरूप भी माना जाता है। मान्यता है कि यह अनंत रक्षासूत्र का काम करता है। भगवान श्री हरि अनंत चतुर्दशी का उपवास करने वाले उपासक के दुखों को दूर करते हैं और उसके घर में धन धान्य से संपन्नता लाकर उसकी विपन्नता को समाप्त कर देते हैं। इस वर्ष अनंत चतुर्दशी का पर्व 5 सितंबर को है।
अनंत चतुर्दशी व्रत का महत्व
इस व्रत के रखने से व्रती के समस्त कष्ट मिट जाते हैं। लेकिन इसका महत्व सिर्फ इतना भर नहीं है बल्कि भगवान श्री गणेश को दस दिनों तक अपने घर में रखकर उनका आज ही के दिन विसर्जन भी किया जाता है। हिंदू ही नहीं जैन धर्म के अनुयायियों के लिये भी इस दिन का खास महत्व होता है। जैन धर्म के दशलक्षण पर्व का समापन भी शोभायात्राएं निकालकर भगवान का जलाभिषेक कर इसी दिन किया जाता है।
अनंत चतुर्दशी की व्रत कथा
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार प्राचीन समय में सुमंत नाम के एक ऋषि हुआ करते थे उनकी पत्नी का नाम था दीक्षा। कुछ समय के पश्चात दीक्षा ने एक सुंदर कन्या को जन्म दिया जिसका नाम रखा गया सुशीला। लेकिन होनी का खेल कुछ ही समय के पश्चात सुशीला के सिर से मां का साया उठ गया। अब ऋषि को बच्ची के लालन-पालन की चिंता होने लगी तो उन्होंने दूसरा विवाह करने का निर्णय लिया। उनकी दूसरी पत्नी और सुशीला की सौतेली मां का नाम कर्कशा था। वह अपने नाम की तरह ही स्वभाव से भी कर्कश थी। जैसे तैसे प्रभु कृपा से सुशीला बड़ी होने लगी और वह दिन भी आया जब ऋषि सुमंत को उसके विवाह की चिंता सताने लगी। काफी प्रयासों के पश्चात कौण्डिन्य ऋषि से सुशीला का विवाह संपन्न हुआ। लेकिन यहां भी सुशीला को दरिद्रता का ही सामना करना पड़ा। उन्हें जंगलों में भटकना पड़ रहा था। एक दिन उन्होंने देखा कि कुछ लोग अनंत भगवान की पूजा कर रहे हैं और हाथ में अनंत रक्षासूत्र भी बांध रहे हैं। सुशीला ने उनसे अनंत भगवान की उपासना के व्रत के महत्व को जानकर पूजा का विधि विधान पूछा और उसका पालन करते हुए अनंत रक्षासूत्र अपनी कलाई पर भी बांध लिया। देखते ही देखते उनके दिन फिरने लगे। कौण्डिन्य ऋषि में अंहकार आ गया कि यह सब उन्होंने अपनी मेहनत से निर्मित किया है काफी हद तक सही भी था प्रयास तो बहुत किया था। अगले ही वर्ष ठीक अनंत चतुर्दशी की बात है सुशीला अनंत भगवान का शुक्रिया कर उनकी पूजा आराधना कर अनंत रक्षासूत्र को बांध कर घर लौटी तो कौण्डिन्य को उसके हाथ में बंधा वह अनंत धागा दिखाई दिया और उसके बारे में पूछा। सुशीला ने खुशी-खुशी बताया कि अनंत भगवान की आराधना कर यह रक्षासूत्र बंधवाया है इसके पश्चात ही हमारे दिन बहुरे हैं। इस पर कौण्डिन्य खुद को अपमानित महसूस करने लगे कि उनकी मेहनत का श्रेय सुशीला अपनी पूजा को दे रही है। उन्होंने उस धागे को उतरवा दिया। इससे अनंत भगवान रूष्ट हो गये और देखते ही देखते कौण्डिन्य अर्श से फर्श पर आ गिरे। तब एक विद्वान ऋषि ने उन्हें उनके किये का अहसास करवाया और कौण्डिन्य को अपने कृत्य का पश्चाताप करने की कही। लगातार चौदह वर्षों तक उन्होंने अनंत चतुर्दशी का उपवास रखा उसके पश्चात भगवान श्री हरि प्रसन्न हुए और कौण्डिन्य व सुशीला फिर से सुखपूर्वक रहने लगे।
मान्यता है कि पांडवों ने भी अपने कष्ट के दिनों (वनवास) में अनंत चतुर्दशी के व्रत को किया था जिसके पश्चात उन्होंने कौरवों पर विजय हासिल की।
यहीं नहीं सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र के दिन भी इस व्रत के पश्चात बहुरे थे।
अनंत चतुर्दशी व्रत पूजा विधि
इस व्रत में यमुना नदी, भगवान शेषनाग और भगवान श्री हरि की पूजा करने का विधान बताया जाता है। कलश को मां यमुना का स्वरूप मानते हुए उसकी स्थापना की जाती है साथ ही शेषनाग के रूप में दुर्वा रखी जाती है, कुश से निर्मित अनंत की स्थापना भी की जाती है तो सूत या रेशम के धागे को लाल कुमकुम को भी अनंत स्वरूप मानकर रक्षासूत्र के तौर पर उसे कलाई में बांधा जाता है। अनंत चतुर्दशी पर भगवान श्री गणेश का आह्वान कर उनकी पूजा भी अवश्य करनी चाहिये।
अनंत चतुर्दशी व्रत तिथि व पूजा मुहूर्त
व्रत तिथि – 5 सितंबर 2017
अनंत चतुर्दशी पूजा मुहूर्त – 06:04 से 12:41 (5 सितंबर 2017)
चतुर्दशी तिथि आरंभ – 12:14 (4 सितंबर 2017)
चतुर्दशी तिथि समाप्त -12:41 (5 सितंबर 2017)
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