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उत्तर प्रदेश

कारागार मंत्री के क्रांतिकारी कदम, 121 वर्ष पुराने जेल रुल्स के नियम में बड़ा बदलाव








लखनऊ : उत्तर प्रदेश के कारागार मंत्री, बलवंत सिंह रामूवालिया ने कहा जेले सुधार गृह है नरक की नगरी नही। पैरोल का आवेदन भीख माॅगने का आवेदन नही। इसलिए पैरोल के आवेदन पर डी0एम0 और एस0एस0पी0 की संस्तुति प्रकिया में संशोधन करते हुए शासनादेश जारी कर दिया है कि अगर पैरोल आवदेन पर डी0एम0 और एस0एस0पी0 15 दिन के अन्दर न भेजने पर यह उन दोनों की तरफ से कोई ऐतराज नही यह मान कर पैरोल मंजूरी कर दी जाया करेगी। यह क्रांतिकारी कदम 121 वर्ष पुराने जेल रुल्स के नियम में बहुत बड़ा बदलाव है।



 



जहाॅ पहले मुलाकात हफ्तें में 2 दिन व 2 घण्टों की होती थी वहीं अब हफ्ते में हफ्ते में 4 दिन व हफ्ते में 16 घण्टे का शासनादेश भी जारी कर दिया गया है।



 



बंदी के परिवार में आकस्मिक मृत्यु होने पर यह देखा गया है कि कई जिलाधिकारी व पुलिस गार्ड मिलने तक बंदी मृतक के संस्कार में पहॅुच ही नही पाता है। इसमें बंदी के दिल की जबरदस्त पीड़ा मान कर उसके अन्दर आयु भर के लिए दुख की आग का धुआॅ निकलने और दिल जलने को देखकर मैं गम्भीरता से सोच रहा हूॅ कि ऐसे मृत्यु के केसों में जेल अधीक्षक को ही 5 दिनों के लिए बंदी को पैरोल दे देेने की इजाजत क्यों न दे दी जाए। महाराष्ट्र में प्रावधान भी है कि बंदी के परिवार में किसी की मृत्यु होंने पर जेल अधीक्षक के द्वारा 5 दिनों की पैरोल की स्वीकृति दी जाती। उसी तर्ज पर उत्तर प्रदेश की जेलों में लागू की जाने की तैयारी की जा रही है। जिसमें बंदी अपने परिवार के सदस्य के अंतिम संस्कार व त्रयोदशी संस्कार में शामिल हो सके।



 



मैं सभी अधिकारियों और प्रधान बंदीरक्षक व रक्षकों के स्वाभीमान के लिए हमेशा तत्पर हूॅ। देखा होगा जहाॅ बरेली में एक बंदी की खुदकुशी के मामले में 4 कर्मचारियों को सस्पेड़ कर दिया गया था। जिसमें एक जेलर, एक डिप्टी जेलर, दो बंदीरक्षक थे। मैंने खुद बरेली जाकर मामले की जाॅच करने के बाद चारों कर्मचारियों को बहाल किया था। हम अधिकारियों से भी जबरदस्त उम्मीद करते है कि वो बंदियों को ऐसा व्यवहार दे कि कभी भी उत्पीड़न की शिकायत न हो।

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