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उत्तर प्रदेश

रमाबाई अंबेडकर मैदान को 22 सितंबर को भीड़ से भरने का एलान कर मौर्य फस गए

लखनऊ : बसपा से बगावत करके अलग सियासी वजूद बनाने में जुटे स्वामी प्रसाद मौर्य का उनका बड़बोलापन भारी साबित हो सकता है। लगभग पांच लाख लोगों की क्षमता वाले रमाबाई अंबेडकर मैदान को 22 सितंबर को भीड़ से भरने का एलान बड़ी चुनौती है। वहीं दो दर्जन से अधिक असंतुष्ट नेताओं में एकजुटता बनाए रखना भी आसान नहीं होगा।

लंबे समय तक बसपा के शीर्ष पदों में रहे स्वामी प्रसाद उन सौभाग्यशाली नेताओं में हैं, जिनके पास ओहदे की हनक बनी रही। कभी प्रदेश अध्यक्ष तो कभी विधानपरिषद में दलनेता, सरकार में महत्वपूर्ण विभागों के कैबिनेट मंत्री और नेता प्रतिपक्ष जैसे दायित्व मौर्य के बने रहे। जिसके चलते उनकी पहचान अलग बनी रही परन्तु यह पहली बार होगा कि उन्हें बसपा की बगैर अपना जनाधार साबित करना होगा।

मौर्य के बगावत करने से बसपा से बाहर किए गए उन तमाम नेताओं को भी आश्रय मिलने की आस जगी जिनको सियासी ठिकाना नहीं मिल पा रहा था। ऐसे ही करीब दो दर्जन पूर्व मंत्री, विधायक व प्रमुख नेताओं को साथ लेकर मौर्य ने एक जुलाई को सीएमएस स्कूल के प्रागंण में अच्छी खासी भीड़ जुटा ली। अब मुश्किल यह है कि मंचासीन सभी नेताओं को विश्वास में लिए बगैर मौर्य का 22 सितंबर को रमाबाई अंबेडकर मैदान में रैली करने की घोषणा बहुतों के गले नहीं उतरी। पूर्वाचल के एक पूर्व विधायक का दावा है कि बिना भारी संसाधनों के रमाबाई मैदान भर पाना नामुमकिन है। जल्दबाजी व अतिउत्साह में की घोषणा मौर्य के गले की फांस बनेगी। रैली फ्लाप रहती है तो मौर्य की स्थिति हीरो से जीरो जैसी होगी। वहीं रैली से पीछे हटे तो भी किरकिरी होगी।

सबका समायोजन सहज नहीं मौर्य के पक्ष में लामबंद दो दर्जन से ज्यादा नेताओं का सम्मानजनक समायोजन तब ही संभव हो जब अलग से फ्रंट या पार्टी बने। मौर्य समर्थक भाजपा के नजदीक होने का शिगूफा छोड़ हुए है। मौर्य भाजपा में जाएंगे तो समायोजन मे मुश्किलें आएगी। सूत्रों का कहना है कि भाजपा नेतृत्व मौर्य के लिए 5-6 से अधिक सीट छोड़ने को राजी नहीं है। ऐसे में मौर्य के लिए सबके लिए टिकट की फरमाइश पूरी करना संभव नहीं होगा। दूसरी ओर मायावती द्वारा भाजपा पर धनबल के जरिए तोड़फोड़ करने का आरोप भी भारी पड़ेगा।



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