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बीजेपी यूपी में कांशीराम के फार्मूले पर, गैर यादव पिछड़ों को जोड़ने के लिए दांव खेल रही
बीजेपी यूपी में ‘बीएसपी’ की राजनीति कर रही है !
अमित शाह कहते हैं हमारा मुकाबला समाजवादी पार्टी से है, लेकिन यूपी में बीजेपी अब ‘बीएसपी’ की राजनीति कर रही है. कांशीराम के फार्मूले पर पार्टी गैर यादव पिछड़ों को जोड़ने के लिए हर दांव आजमाने को तैयार है.
कहते है बीजेपी का दिमाग आरएसएस है. लेकिन यूपी में तो पार्टी कांशीराम के रास्ते पर चल पडी है. अब से बीस बरस पहले बीएसपी के लिए उन्होंने जो प्रयोग किए बीजेपी ने अब उसे अपना गुरु मंत्र मान लिया है. कांशीराम ने दलितों के साथ साथ गैर यादव जातियों को बीएसपी से जोड़ा. कुर्मी, सैनी, शक्य, कुशवाहा, मौर्या, राजभर, निषाद जैसी जातियों के नेताओं को वे साथ लेकर चलते थे.
उन्होंने लोकतंत्र को जातियों का मैनेजमेंट और ऐडजस्टमेंट का प्रयोग बनाया और कामयाब भी रहे. इन्हीं प्रयोगों के दम पर मायावती चार-चार बार यूपी की सीएम बनी और अब फिर चुनावी मैदान में हैं.
अगड़ों की पार्टी मानी जाने वाली बीजेपी इन दिनों पिछड़ों को गोलबंद करने में जुटी है. पार्टी को किसी भी तरह के समझौते से परहेज नहीं है. कोशिश यादवों को छोड़ कर बाकी सभी पिछड़ी जातियों को अपने पाले में करने की है.
पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान सोनेलाल पटेल की पार्टी अपना दाल से चुनावी तालमेल किया था. सोनेलाल भी कांशीराम के साथी थे. कुर्मी समाज में उनकी अच्छी पकड़ थी. अब उनकी बेटी अनुप्रिया पटेल को मोदी सरकार में मंत्री बना दिया गया है. यूपी में नीतीश कुमार के लगातार दौरे हो रहे हैं. कर्मियों में उनके प्रभाव को काम करने के लिए मुलायम ने बैनी प्रसाद वर्मा को राज्यसभा भेज दिया तो अब बीजेपी धीरे धीरे अनुप्रिया को आगे कर रही है. यादवों के बाद पिछड़ों में कुर्मी सबसे पढ़े लिखे और संपन्न माने जाते है.
बीएसपी से मुकाबले के लिए बीजेपी ने अब दुसरे बीएसपी से हाथ मिला लिया है. ये बीएसपी है भारतीय समाज पार्टी. बीस सालों तक कांशीराम के साथी रहे ओमप्रकाश राजभर अब अमित शाह के साथी बन गए है. पंद्रह साल पहले उन्होंने ये पार्टी बनायी थी. पूर्वांचल के आजमगढ़ से लेकर बलिया और बनारस तक हर विधान सभा में हज़ारों राजभर है.
पिछले चुनाव में मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल के साथ मिल कर पार्टी चुनाव लड़ी थी. नौ जुलाई को मऊ में हुई एक जन सभा में खुद अमित शाह ने भारतीय समाज पार्टी से गठबंधन का एलान किया.
केशव मौर्या को यूपी बीजेपी का अध्यक्ष बनाना भी पार्टी की बसपाई रणनीति का ही हिस्सा है. इस पद के कई दावेदार थे. ब्राह्मण से लेकर कुर्मी नेता तक पर चर्चा हुई. लेकिन मुहर लगी केशव प्रसाद मौर्या के नाम पर. आम तौर पर मौर्या, सैनी, शाक्य और कुशवाहा बीएसपी के परंपरागत वोटर माने जाते रहे है. लेकिन पहले बाबू सिंह कुशवाहा और फिर स्वामी प्रसाद मौर्या के बीएसपी से निकलने के बाद अब हालात बदलने लगे है.
मायावती से इस समाज के लोगों का मोह भंग होने लगा है. बीजेपी के केशव मौर्या अब इन्हें ‘अपने’ नेता लगने लगे हैं. बीजेपी के लिए सवर्ण यानि अगडी जातियां बेस वोट बैंक रही है और इस बार पार्टी गैर यादव पिछड़ी जातियों को स्टेपनी वोट बैंक बनाने की रणनीति पर काम कर रही है.
ग्यारह जुलाई से कानपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत प्रचारकों की बैठक हो रही है. यूपी विधान सभा चुनाव को लेकर इस बैठक को महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है. मोहन भागवत समेत संघ के बड़े लोग इस बात पर मंथन करेंगे कि आखिर पिछड़े और दलित समुदाय तक कैसे पहुंचा जाए.
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