अडानी के "अच्छे दिन" 200 करोड़ के जुर्माने को किया माफ !
केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय ने अडानी ग्रुप को बड़ी राहत मिली है. मंत्रालय ने Adani Ports & SEZ को राहत देते हुए 200 करोड़ का जुर्माना वापस ले लिया है. Adani Ports & SEZ पर ये जुर्माना यूपीए सरकार के दौरान लगाया गया था और पर्यावरण संबंधी नियमों की अनदेखी पर लगाया गया था जुर्माना .
पर्यावरण मंत्रालय ने Adani Ports & SEZ के waterfront development project को दी गई पर्यावरण क्लियरेंस को भी बढ़ा दिया है. कंपनी का ये प्रोजेक्ट गुजरात के मुंदड़ा में स्थित है और ये पर्यावरण क्लियरेंस कंपनी को 2009 में ही दी गई थी. अडानी ग्रुप की कंपनी पर कई सख्त नियम लागू किए गए थे, जिनमें से ज्यादातर को हाल ही में पर्यावरण मंत्रालय ने हटा लिया था. ये फैसले सितंबर 2015 में किए गए थे और पर्यावरण संबंधी क्लियरेंस अक्टूबर 2016 में दी गई.खबर के मुताबिक, ये फैसले सितंबर 2015 में लिए गए। बिजनेस स्टैंडर्ड का यह भी कहना है कि उनकी ओर से भेजे गए मेल का एनवायरमेंटल मिनिस्ट्री या अडानी ने कोई जवाब नहीं दिया है। इस प्रोजेक्ट के खिलाफ मामला गुजरात हाई कोर्ट में था। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने 2012 में सुनीता नारायण कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी का काम मुंद्रा प्रोजेक्ट की वजह से पर्यावरण को पहुंच रहे नुकसान के आरोपो की जांच करना था। कमेटी ने पाया कि कई नियमों का उल्लंघन किया गया। यह भी पाया कि बड़े पैमाने पर अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा। कमेटी ने प्रोजेक्ट के उत्तरी पोर्ट पर बैन की सिफारिश की थी। इसके अलावा प्रोजेक्ट की कीमत का एक पर्सेंट या 200 करोड़ रुपए (जो भी ज्यादा हो) का जुर्माना भरने के लिए भी कहा था। यह जुर्माना उस अधिकतम 1 लाख रुपए की रकम से ज्यादा थी, जो एनवायरमेंट प्रोटेक्शन एक्ट के तहत लगाई जा सकती है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने इन सिफारिशों को 2013 में मंजूरी दे दी। केंद्र ने अडानी पोर्ट्स एंड एसईजेड के अलावा गुजरात के अफसरों को नोटिस जारी किया था। अफसरों से पूछा गया था कि नियमों को ताेड़ने के लिए प्रोजेक्ट से जुड़ी कंपनी पर जुर्माना क्यों नहीं लगाया जाना चाहिए। अडानी ग्रुप ने किसी भी गलती से इनकार किया था। स्थानीय प्रशासन ने भी कंपनी का खासा समर्थन किया था। कंपनी के जवाबों के मद्देनजर मंत्रालय ने जुर्माने के फैसले को सही ठहराया और उसे कायम रखा था। हालांकि, आखिरी फैसले में देरी इसलिए हो गई क्योंकि जयंती नटराजन की वजह वीरप्पा मोइली पर्यावरण मंत्री बनाई गईं। बाद में एनडीए सरकार में प्रकाश जावड़ेकर ने उनकी जगह ली। दोबारा से मामले की जांच की गई और अधिकारियों ने माना कि इस पर्यावरण को हुए नुकसान के लिए प्रोजक्ट जिम्मेदार है, इसे साबित करने के लिए सबूत नहीं हैं। इन निष्कर्ष को जावड़ेकर ने मंजूरी दी और 200 करोड़ रुपए की पेनल्टी हटा ली गई।
पर्यावरण मंत्रालय ने Adani Ports & SEZ के waterfront development project को दी गई पर्यावरण क्लियरेंस को भी बढ़ा दिया है. कंपनी का ये प्रोजेक्ट गुजरात के मुंदड़ा में स्थित है और ये पर्यावरण क्लियरेंस कंपनी को 2009 में ही दी गई थी. अडानी ग्रुप की कंपनी पर कई सख्त नियम लागू किए गए थे, जिनमें से ज्यादातर को हाल ही में पर्यावरण मंत्रालय ने हटा लिया था. ये फैसले सितंबर 2015 में किए गए थे और पर्यावरण संबंधी क्लियरेंस अक्टूबर 2016 में दी गई.खबर के मुताबिक, ये फैसले सितंबर 2015 में लिए गए। बिजनेस स्टैंडर्ड का यह भी कहना है कि उनकी ओर से भेजे गए मेल का एनवायरमेंटल मिनिस्ट्री या अडानी ने कोई जवाब नहीं दिया है। इस प्रोजेक्ट के खिलाफ मामला गुजरात हाई कोर्ट में था। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने 2012 में सुनीता नारायण कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी का काम मुंद्रा प्रोजेक्ट की वजह से पर्यावरण को पहुंच रहे नुकसान के आरोपो की जांच करना था। कमेटी ने पाया कि कई नियमों का उल्लंघन किया गया। यह भी पाया कि बड़े पैमाने पर अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा। कमेटी ने प्रोजेक्ट के उत्तरी पोर्ट पर बैन की सिफारिश की थी। इसके अलावा प्रोजेक्ट की कीमत का एक पर्सेंट या 200 करोड़ रुपए (जो भी ज्यादा हो) का जुर्माना भरने के लिए भी कहा था। यह जुर्माना उस अधिकतम 1 लाख रुपए की रकम से ज्यादा थी, जो एनवायरमेंट प्रोटेक्शन एक्ट के तहत लगाई जा सकती है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने इन सिफारिशों को 2013 में मंजूरी दे दी। केंद्र ने अडानी पोर्ट्स एंड एसईजेड के अलावा गुजरात के अफसरों को नोटिस जारी किया था। अफसरों से पूछा गया था कि नियमों को ताेड़ने के लिए प्रोजेक्ट से जुड़ी कंपनी पर जुर्माना क्यों नहीं लगाया जाना चाहिए। अडानी ग्रुप ने किसी भी गलती से इनकार किया था। स्थानीय प्रशासन ने भी कंपनी का खासा समर्थन किया था। कंपनी के जवाबों के मद्देनजर मंत्रालय ने जुर्माने के फैसले को सही ठहराया और उसे कायम रखा था। हालांकि, आखिरी फैसले में देरी इसलिए हो गई क्योंकि जयंती नटराजन की वजह वीरप्पा मोइली पर्यावरण मंत्री बनाई गईं। बाद में एनडीए सरकार में प्रकाश जावड़ेकर ने उनकी जगह ली। दोबारा से मामले की जांच की गई और अधिकारियों ने माना कि इस पर्यावरण को हुए नुकसान के लिए प्रोजक्ट जिम्मेदार है, इसे साबित करने के लिए सबूत नहीं हैं। इन निष्कर्ष को जावड़ेकर ने मंजूरी दी और 200 करोड़ रुपए की पेनल्टी हटा ली गई।
Next Story