स्वामी कभी रहते थे नतमस्तक अब ऐसी बगावत क्यों ?
सियासत में वफादारी और बेवफाई न तो नई बात है और न ही चौंकाने वाली, पर बात जब बसपा की हो तो जरा जुदा हो जाती है। यहां हाईकमान के किचन कैबिनेट वालों की बेवफाई की लंबी फेहरिस्त है। लेकिन बसपा हाईकमान के दो बेहद करीबी माने जाने वालों की बगावत के जरा अलग मायने हैं।
पहली बाबूसिंह कुशवाहा और अब स्वामी प्रसाद मौर्य। दोनों में बुनियादी फर्क है, जनाधार और सियासी स्कूलिंग का। अभी ज्यादा दिन नहीं हुए जब मौर्य सड़क से लेकर सदन तक ‘बहन कुमारी मायावती’ के नाम की माला जपते नहीं थकते थे। एक नहीं, कई तस्वीरें ऐसी होंगी, जिनमें मौर्य मायावती के सामने नतमस्तक नजर आएंगे।
पहली बाबूसिंह कुशवाहा और अब स्वामी प्रसाद मौर्य। दोनों में बुनियादी फर्क है, जनाधार और सियासी स्कूलिंग का। अभी ज्यादा दिन नहीं हुए जब मौर्य सड़क से लेकर सदन तक ‘बहन कुमारी मायावती’ के नाम की माला जपते नहीं थकते थे। एक नहीं, कई तस्वीरें ऐसी होंगी, जिनमें मौर्य मायावती के सामने नतमस्तक नजर आएंगे।
मायावती के लिए भी सतीशचंद्र मिश्र के अलावा नसीमुद्दीन सिद्दीकी और स्वामी प्रसाद मौर्य एक तरह से छाया जैसे थे। आज वही मौर्य और मायावती एक-दूसरे को गद्दार और महागद्दार बता रहे हैं। पर, राजनीतिक समीक्षकों की मानें तो इनमें किसी ने किसी से न गद्दारी की है और न महागद्दारी।
बात सिर्फ सियासत में स्वार्थों के टकराव की है। बात पैसा और टिकट की भी नहीं है, वजूद और पहचान की है। समीक्षकों के मुताबिक, मायावती पर पैसे लेकर टिकट देने का आरोप न तो नया है और न पहली बार लगा है। मायावती पैसे लेकर टिकट देती हैं या नहीं देती हैं, यह बहस पुरानी पड़ चुकी है।
ये आरोप तब भी लगे जब मौर्य बसपा सुप्रीमो की खास हुआ करते थे लेकिन तब उन्होंने मुंह नहीं खोला। हालांकि, कांशीराम के पर्दे के पीछे जाने के साथ और फिर उनकी मृत्यु के बाद बसपा में जिस तरह दबंगों और थैलीशाहों को सियासी शरण मिलती रही है, उससे दाल में कुछ काला होने की आशंका जरूर खड़ी होती है।
जहां तक मौर्य की बात है तो ऐसा लगता है कि माया व मौर्य दोनों ही आधा-आधा सच बोल रहे हैं। पूरा सच जो नजर आ रहा है वह यह है कि विधायक और नेता विधानमंडल दल होते हुए मौर्य का जब पड़रौना से टिकट कटा तो उन्हें अपने वजूद के खतरे का एहसास हुआ।
बात सिर्फ सियासत में स्वार्थों के टकराव की है। बात पैसा और टिकट की भी नहीं है, वजूद और पहचान की है। समीक्षकों के मुताबिक, मायावती पर पैसे लेकर टिकट देने का आरोप न तो नया है और न पहली बार लगा है। मायावती पैसे लेकर टिकट देती हैं या नहीं देती हैं, यह बहस पुरानी पड़ चुकी है।
ये आरोप तब भी लगे जब मौर्य बसपा सुप्रीमो की खास हुआ करते थे लेकिन तब उन्होंने मुंह नहीं खोला। हालांकि, कांशीराम के पर्दे के पीछे जाने के साथ और फिर उनकी मृत्यु के बाद बसपा में जिस तरह दबंगों और थैलीशाहों को सियासी शरण मिलती रही है, उससे दाल में कुछ काला होने की आशंका जरूर खड़ी होती है।
जहां तक मौर्य की बात है तो ऐसा लगता है कि माया व मौर्य दोनों ही आधा-आधा सच बोल रहे हैं। पूरा सच जो नजर आ रहा है वह यह है कि विधायक और नेता विधानमंडल दल होते हुए मौर्य का जब पड़रौना से टिकट कटा तो उन्हें अपने वजूद के खतरे का एहसास हुआ।
पर, जब उन्हें अपने पुत्र या पुत्री के लिए टिकट के आसार खत्म होते दिखाई देने लगे तो उन्होंने सोचा कि ऐसे में उनकी सियासी पहचान ही खत्म हो जाएगी।
मायावती अपने स्वभाव के अनुसार, स्वामी प्रसाद मौर्य को समझ नहीं पाईं। इसकी वजह यह भी रही कि उनके इर्द-गिर्द कोई ऐसा नेता या राजनीतिक सलाहकार नहीं है, जिसका प्रशिक्षण किसी विशिष्ट राजनीतिक शख्सियत के साये में हुआ हो।
उन्होंने मौर्य को भी बाबूसिंह कुशवाहा और जुगुुल किशोर समझा। उन्होंने शायद सोचा होगा कि मौर्य के पर कतरेंगी तो पार्टी के भीतर उनकी हनक और धमक की गूंज दूर तक सुनाई देगी।
इधर, चौधरी चरण सिंह, राजनारायण, रामनरेश कुशवाहा, मुलायम सिंह यादव और बेनी प्रसाद वर्मा जैसे कई धुरंधर राजनेताओं के सान्निध्य में सियासत सीखे मौर्य को लगा कि उन्होंने बगावत न की तो किसी दिन बाबूसिंह कुशवाहा जैसों की तरह उनका भी वजूद खत्म कर दिया जाएगा।
जुगुल किशोर की तरह पार्टी से निकालने का एलान हो जाएगा। तब वे कहीं के नहीं रहेंगे। इसलिए उन्होंने समाजवादियों के इस मंत्र ‘रक्षा के लिए पहले आक्रमण कर दो’ का सहारा लिया और मायावती कुछ समझ पातीं, उससे पहले ही उन पर अप्रत्याशित तरीके से हमला बोल दिया।
नतीजा सामने है कि पहली बार मायावती पर मौर्य के रूप में बसपा का कोई बागी आरोप लगा रहा है और मायावती जवाब दे रही हैं। अभी तक आरोप भी मायावती लगाती थीं और जवाब भी वही देती थीं।
मायावती अपने स्वभाव के अनुसार, स्वामी प्रसाद मौर्य को समझ नहीं पाईं। इसकी वजह यह भी रही कि उनके इर्द-गिर्द कोई ऐसा नेता या राजनीतिक सलाहकार नहीं है, जिसका प्रशिक्षण किसी विशिष्ट राजनीतिक शख्सियत के साये में हुआ हो।
उन्होंने मौर्य को भी बाबूसिंह कुशवाहा और जुगुुल किशोर समझा। उन्होंने शायद सोचा होगा कि मौर्य के पर कतरेंगी तो पार्टी के भीतर उनकी हनक और धमक की गूंज दूर तक सुनाई देगी।
इधर, चौधरी चरण सिंह, राजनारायण, रामनरेश कुशवाहा, मुलायम सिंह यादव और बेनी प्रसाद वर्मा जैसे कई धुरंधर राजनेताओं के सान्निध्य में सियासत सीखे मौर्य को लगा कि उन्होंने बगावत न की तो किसी दिन बाबूसिंह कुशवाहा जैसों की तरह उनका भी वजूद खत्म कर दिया जाएगा।
जुगुल किशोर की तरह पार्टी से निकालने का एलान हो जाएगा। तब वे कहीं के नहीं रहेंगे। इसलिए उन्होंने समाजवादियों के इस मंत्र ‘रक्षा के लिए पहले आक्रमण कर दो’ का सहारा लिया और मायावती कुछ समझ पातीं, उससे पहले ही उन पर अप्रत्याशित तरीके से हमला बोल दिया।
नतीजा सामने है कि पहली बार मायावती पर मौर्य के रूप में बसपा का कोई बागी आरोप लगा रहा है और मायावती जवाब दे रही हैं। अभी तक आरोप भी मायावती लगाती थीं और जवाब भी वही देती थीं।
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