भारत के लिए क्यों जरूरी है एनएसजी की सदस्यता
भारत में 700 मेगावाट क्षमता से ज्यादा के परमाणु रिएक्टर लगाने के लिए एनएसजी की सदस्यता जरूरी है।
नई दिल्ली। तमाम कोशिशों के बावजूद एनएसजी में इस बार इंट्री नहीं मिलने के बाद केंद्र सरकार पर विपक्षी दलों ने आरोप मढ़ना शुरू कर दिया है कि आखिरकार पीएम नरेंद्र मोदी के स्तर पर एनएसजी को इतना महत्व देने की क्या जरुरत थी। लेकिन अगर भारत ने परमाणु आपूर्तिकर्ताओं देशों के इस समूह एनएसजी में जल्दी से प्रवेश नहीं लिया तो उसके लिए परमाणु संयंत्र लगाने का सपना पूरा करना नामुमकिन होगा। यहां तक कि एनएसजी का सदस्य बने बगैर भारत में अमेरिकी कंपनियां भी परमाणु संयंत्र नहीं लगा सकेंगी। खास तौर पर 700 मेगावाट से ज्यादा क्षमता के परमाणु संयंत्र तो देश में लग ही नहीं सकेंगे।
सूत्रों के मुताबिक भारत ने अपने दम पर परमाणु ऊर्जा में आत्मसंपन्न बनने की पूरी कोशिश की है लेकिन उसका बहुत उत्साहजनक परिणाम अभी तक नहीं निकला है। ऐसे में अब विदेशी तकनीकी ही एकमात्र रास्ता है। अगर विदेशों से यूरेनियम हासिल करने में सफल रहते हैं तब भी घरेलू तकनीकी की मदद से 500 या अधिकतम 700 मेगावाट क्षमता की इकाई ही लगा सकते हैं। जबकि अमेरिका, कनाडा व आस्ट्रेलिया सें हमें 1000 मेगावाट या इससे भी ज्यादा क्षमता के परमाणु प्लांट लगाने के प्रस्ताव मिल रहे हैं।
लेकिन इस तकनीकी को हम एनएसजी की सदस्यता मिलने के बाद ही हासिल कर सकेंगे। यह एक बड़ी वजह है कि सरकार की तरफ से इस बार एनएसजी की सदस्यता के लिए सबसे ज्यादा कोशिश की गई है।
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भी पिछले रविवार को यह बताया था कि भारत वर्ष 2030 तक 35 हजार मेगावाट क्षमता की बिजली परमाणु तकनीकी से पैदा करना चाहता है। जिसके लिए हमें जो तकनीकी चाहिए वह एनएसजी का सदस्य बनने के बाद ही हासिल होगी।
दरअसल, भारत ने पेरिस पर्यावरण समझौते के तहत यह वादा किया है कि वह प्रदूषण फैलाने वाले ईंधनों पर अपनी निर्भरता कम करेगा। ऐसे में वर्ष 2030 तक भारत अपनी कुल ऊर्जा निर्भरता का 40 फीसद पर्यावरण के अनुकूल ऊर्जा स्त्रोतों पर कर लेगा। इसमें सौर, पवन, जैविक और परमाणु ऊर्जा स्त्रोत शामिल हैं। 40 फीसद का एक तिहाई जो लगभग 65 हजार मेगावाट होगा, परमाणु ऊर्जा प्लांट से पैदा किया जाएगा।
परमाणु ऊर्जा आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक अभी देश में 5300 मेगावाट बिजली परमाणु ऊर्जा से पैदा हो रही है और लगभग 38 हजार मेगावाट परमाणु ऊर्जा के लिए या तो बात चल रही है या फिर उनकी योजना बनाई जा रही है।
ये प्लांट अमेरिका, कनाडा, रूस, फ्रांस जैसे देशों के सहयोग से लगाये जाने हैं। यह एक बड़ी वजह है कि ये देश भारत के एनएसजी के प्रवेश दिलाने का समर्थन कर रहे हैं ताकि उनकी कंपनियों की भारत में लगाई जाने वाली परियोजनाओं की राह में ज्यादा दिक्कत न हो। विदेश मंत्री स्वराज ने भी यह कहा है कि एनएसजी का सदस्य बनने से विदेशी निवेशकों को भारत में एक स्थिर माहौल मिलेगा
Next Story