चीन की चाल के आगे हारे मोदी, नहीं मिल सकी NSG की सदस्यता
नई दिल्ली: NSG में शामिल होने की तमाम कोशिशों पर फिलहाल पानी फिर गया. कल सियोल में न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप की बैठक में कई देशों ने भारत का विरोध किया. इसमें सबसे बड़ी भूमिका रही चीन की, पीएम मोदी से मुलाकात के बावजूद चीन ने एनएसजी में भारत का खेल खराब कर दिया. न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप का सदस्य बनने का भारत का सपना फिलहाल टूट गया है. और इसके पीछे बड़ी वजह है चीन.
एक तरफ पीएम मोदी चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिलकर एनएसजी की सदस्यता के लिए समर्थन मांग रहे थे, दूसरी ओर ताशकंद से 5000 किलोमीटर दूर दक्षिण कोरिया के सियोल में चीन भारत की सदस्यता के विरोध का नेतृत्व कर रहा था. एनएसजी सदस्य देशों की बैठक में चीन बार-बार भारत की सदस्यता का विरोध कर रहा था.
सूत्रों के मुताबिक चीन ने बैठक में मुद्दा उठाया कि बैठक में भारत की सदस्यता का मुद्दा नहीं उठाना चाहिए. इसके बावजूद बाद जब भारत की सदस्यता का मुद्दा उठा तो चीन समेत ऑस्ट्रिया, न्यूज़ीलैंड, आयरलैंड, ब्राज़ील और तुर्की ने इसका विरोध किया.
इन देशों का कहना था कि जिस देश ने परमाणु अप्रसार संधि यानी एनपीटी पर दस्तखत नहीं किया वो एनएसजी का सदस्य कैसे बन सकता है. एनएसजी में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस सहित करीब 20 देश पहले से ही भारत के समर्थन में थे, लेकिन चीन पहले से ही भारत का विरोध कर रहा था.
48 देशों वाले एनएसजी में एक भी देश अगर विरोध करता है, तो सदस्यता नहीं मिल सकती. ऐसे में चीन की वजह से एनएसजी सदस्यता को लेकर भारत की ओर से की गई सभी कूटनीतिक कोशिश फिलहाल फेल हो गई है.
भारत की दावेदारी पर एनएसजी में नहीं बनी सहमति
परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) की सदस्यता के लिए सियोल में गुरुवार रात को हुई विशेष सत्र में चर्चा के दौरान चीन के नेतृत्व में कुछ देशों द्वारा कड़े विरोध के कारण भारत के आवेदन पर पानी फिर गया. जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से भारत के आवेदन का मूल्यांकन ‘योग्यता’ के आधार पर करने का आग्रह किया था.
सियोल के एक उच्च जानकार सूत्र ने आईएएनएस को बताया कि एनएजजी के 48 देशों के इस गुट के प्रतिनिधिमंडल के प्रमुखों की रात्रिभोज के बाद होने वाली बैठक में भारत की सदस्यता पर चर्चा की गई, जिसमें चीन के साथ ब्राजील, ऑस्ट्रिया, न्यूजीलैंड, तुर्की और आयरलैंड ने भारत की सदस्यता का विरोध किया.
चीन का कहना है कि भारत ने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किया है, इसलिए उसे एनएसजी की सदस्यता नहीं मिलनी चाहिए. वहीं, अर्जेटीना और दक्षिण कोरिया के साथ कई प्रमुख सदस्य देश जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, इटली, मैक्सिको, स्विटरलैंड और रूस भारत की एनएसजी सदस्यता का समर्थन कर रहे हैं.
चीन भारत के एनएसजी में प्रवेश का विरोध कर रहा है. यह संस्था ही वैश्विक परमाणु व्यापार और प्रौद्योगिकी को नियंत्रित करती है. चीन ने एनएसजी सदस्यता के लिए पाकिस्तान का समर्थन कर परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर किए बिना भारत के सदस्य बनने की राह में बड़ा रोड़ा लगा दिया है.
चीन ने जोर दिया है कि अगर भारत को कोई छूट दी जाती है, तो वही छूट पाकिस्तान को भी दी जानी चाहिए. जबकि, पाकिस्तान का परमाणु अप्रसार को लेकर कथित रूप से बुरा रिकार्ड रहा है. कहा जाता है कि उसने लीबिया, ईरान और उत्तर कोरिया को परमाणु हथियार प्रौद्योगिकी बेची थी.
उज्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में हुए शंघाई कारपोरेशन ऑर्गनाइजेशन (एससीओ) सम्मेलन से इतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात कर चीन से गुजारिश की कि वह भारत की एनएसजी सदस्यता का मूल्यांकन ‘योग्यता’ के आधार पर करें.
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने यहां संवाददाताओं को यह जानकारी देते हुए कहा, “प्रधानमंत्री मोदी ने चीन से गुजारिश की है कि वह भारत के आवेदन पर एक निष्पक्ष और वस्तुनिष्ठ आकलन करे और योग्यता के आधार पर निर्णय ले.”
यह पूछे जाने पर कि 48 देशों के इस संगठन में भारत को शामिल करने की कितनी संभावना है, उन्होंने कहा, “इस संबंध में जटिल और नाजुक बातचीत की प्रक्रिया चल रही है. मुझे जो कहना था, वह मैं आपसे कह चुका हूं.”
भारत इस समूह की सदस्यता प्राप्त करने के लिए प्रचंड कूटनीतिक प्रयास में जुटा है. एनएसजी आम सहमति पर काम करता है और इसमें किसी नए सदस्य को सभी मौजूदा सदस्यों की सहमति के बाद ही शामिल किया जा सकता है. विदेश सचिव एस. जयशंकर फिलहाल भारत की एनएसजी सदस्यता के लिए कूटनीतिक प्रयास बढ़ाने के लिए सियोल में मौजूद हैं.
एक तरफ पीएम मोदी चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिलकर एनएसजी की सदस्यता के लिए समर्थन मांग रहे थे, दूसरी ओर ताशकंद से 5000 किलोमीटर दूर दक्षिण कोरिया के सियोल में चीन भारत की सदस्यता के विरोध का नेतृत्व कर रहा था. एनएसजी सदस्य देशों की बैठक में चीन बार-बार भारत की सदस्यता का विरोध कर रहा था.
सूत्रों के मुताबिक चीन ने बैठक में मुद्दा उठाया कि बैठक में भारत की सदस्यता का मुद्दा नहीं उठाना चाहिए. इसके बावजूद बाद जब भारत की सदस्यता का मुद्दा उठा तो चीन समेत ऑस्ट्रिया, न्यूज़ीलैंड, आयरलैंड, ब्राज़ील और तुर्की ने इसका विरोध किया.
इन देशों का कहना था कि जिस देश ने परमाणु अप्रसार संधि यानी एनपीटी पर दस्तखत नहीं किया वो एनएसजी का सदस्य कैसे बन सकता है. एनएसजी में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस सहित करीब 20 देश पहले से ही भारत के समर्थन में थे, लेकिन चीन पहले से ही भारत का विरोध कर रहा था.
48 देशों वाले एनएसजी में एक भी देश अगर विरोध करता है, तो सदस्यता नहीं मिल सकती. ऐसे में चीन की वजह से एनएसजी सदस्यता को लेकर भारत की ओर से की गई सभी कूटनीतिक कोशिश फिलहाल फेल हो गई है.
भारत की दावेदारी पर एनएसजी में नहीं बनी सहमति
परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) की सदस्यता के लिए सियोल में गुरुवार रात को हुई विशेष सत्र में चर्चा के दौरान चीन के नेतृत्व में कुछ देशों द्वारा कड़े विरोध के कारण भारत के आवेदन पर पानी फिर गया. जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से भारत के आवेदन का मूल्यांकन ‘योग्यता’ के आधार पर करने का आग्रह किया था.
सियोल के एक उच्च जानकार सूत्र ने आईएएनएस को बताया कि एनएजजी के 48 देशों के इस गुट के प्रतिनिधिमंडल के प्रमुखों की रात्रिभोज के बाद होने वाली बैठक में भारत की सदस्यता पर चर्चा की गई, जिसमें चीन के साथ ब्राजील, ऑस्ट्रिया, न्यूजीलैंड, तुर्की और आयरलैंड ने भारत की सदस्यता का विरोध किया.
चीन का कहना है कि भारत ने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किया है, इसलिए उसे एनएसजी की सदस्यता नहीं मिलनी चाहिए. वहीं, अर्जेटीना और दक्षिण कोरिया के साथ कई प्रमुख सदस्य देश जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, इटली, मैक्सिको, स्विटरलैंड और रूस भारत की एनएसजी सदस्यता का समर्थन कर रहे हैं.
चीन भारत के एनएसजी में प्रवेश का विरोध कर रहा है. यह संस्था ही वैश्विक परमाणु व्यापार और प्रौद्योगिकी को नियंत्रित करती है. चीन ने एनएसजी सदस्यता के लिए पाकिस्तान का समर्थन कर परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर किए बिना भारत के सदस्य बनने की राह में बड़ा रोड़ा लगा दिया है.
चीन ने जोर दिया है कि अगर भारत को कोई छूट दी जाती है, तो वही छूट पाकिस्तान को भी दी जानी चाहिए. जबकि, पाकिस्तान का परमाणु अप्रसार को लेकर कथित रूप से बुरा रिकार्ड रहा है. कहा जाता है कि उसने लीबिया, ईरान और उत्तर कोरिया को परमाणु हथियार प्रौद्योगिकी बेची थी.
उज्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में हुए शंघाई कारपोरेशन ऑर्गनाइजेशन (एससीओ) सम्मेलन से इतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात कर चीन से गुजारिश की कि वह भारत की एनएसजी सदस्यता का मूल्यांकन ‘योग्यता’ के आधार पर करें.
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने यहां संवाददाताओं को यह जानकारी देते हुए कहा, “प्रधानमंत्री मोदी ने चीन से गुजारिश की है कि वह भारत के आवेदन पर एक निष्पक्ष और वस्तुनिष्ठ आकलन करे और योग्यता के आधार पर निर्णय ले.”
यह पूछे जाने पर कि 48 देशों के इस संगठन में भारत को शामिल करने की कितनी संभावना है, उन्होंने कहा, “इस संबंध में जटिल और नाजुक बातचीत की प्रक्रिया चल रही है. मुझे जो कहना था, वह मैं आपसे कह चुका हूं.”
भारत इस समूह की सदस्यता प्राप्त करने के लिए प्रचंड कूटनीतिक प्रयास में जुटा है. एनएसजी आम सहमति पर काम करता है और इसमें किसी नए सदस्य को सभी मौजूदा सदस्यों की सहमति के बाद ही शामिल किया जा सकता है. विदेश सचिव एस. जयशंकर फिलहाल भारत की एनएसजी सदस्यता के लिए कूटनीतिक प्रयास बढ़ाने के लिए सियोल में मौजूद हैं.
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