आजम की बी-टीम बन चुके थे मौर्या
आजम खान और स्वामी प्रसाद मौर्या के बीच सियासी गठजोड़ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि विधानसभा के अंदर कई मुद्दों पर मायावती के टोकने के बाद भी मौर्या ने सरकार का समर्थन किया था. कई बार सदन के अंदर सरकार को जिस हिसाब से मायावती घेरना चाहती थी, उस हिसाब से मौर्या ने सरकार के खिलाफ मोर्चा नहीं खोला. यही नहीं कई ऐसे विधेयक जिसपर नकेल कसने का आदेश मायावती ने जारी किया, बावजूद इसके मौर्या सदन में सरकार के साथ खड़े दिखे.
बसपा से अलग होने का ऐलान कर जैसे ही स्वामी प्रसाद मौर्य बाहर निकले उन्हें सपा नेता व कैबिनेट मंत्री आजम खां अपने साथ ले गए। हालांकि, कहा यह भी जा रहा है कि स्वामी के सपा नेताओं से बहुत करीबी संबंध रहें हैं। सपा से कैबिनेट मंत्री राजेंद्र चौधरी ने स्वामी को पुराना समाजवादी बताया है।
मायावती के मुख्य सिपाहसालार और बसपा के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य ने बसपा का दामन छोड़ सियासी सरगर्मीयां बढ़ा दी है, मौर्या ने भले ही अधिकारीक तौर पर पार्टी को अब अलविदा कहा हो पर इसके संकेत बहुत पहले से ही मिलने शुरु हो चुके थे. दरअसल जिस स्वामी प्रसाद मौर्या को देश की सबसे बड़ी विधानसभा का नेता प्रतिपक्ष बना कर मायावती अखिलेश सरकार को घेरना चाह रही थी उसी विधानसभा के अंदर स्वामी प्रसाद मौर्या ने अखिलेश सरकार में नंबर 2 और संसदिय कार्य मंत्री आजम खान से सेटिंग कर ली थी. कहने को भले ही मौर्या नेता प्रतिपक्ष थे और मायावती की पार्टी का प्रतिनिधित्व कर रहे थे लेकिन असल में पिछले दो सालों से मौर्या आजम खान के फ्रंटमैन बनकर काम कर रहे थे.
पहले से मिल रहे थे पार्टी छोड़ने के संकेत
मौर्या ने भले ही पार्टी अब छोड़ी हो लेकिन इस बात के संकेत पहले से मिलने शुरु हो चुके थे. कुछ दिन पहले जब मौर्या ने अपने घर को नीले रंग की जगह किसी और रंग से पुतवाया था तब भी राजनीति के गियारों में बगावत की खबरें उड़ी थी. यही नहीं 19 जून को विधानसभा चुनाव को लेकर पार्टी की अहम बैठक में शामिल ना होकर मौर्या ने बगावत का बिगुल फूंक दिया था.
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