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उत्तर प्रदेश

शुरू हुआ गठबंधन का दौर, भाजपा से मिली भासपा, सपा के साथ जायेंगे मुख्तार

लखनऊ. राज्य सभा और विधान परिषद् के चुनावो के ख़त्म होने के बाद अब यूपी के समर के लिए सियासी गठजोड़ के आकार लेने का सिलसिला शुरू हो गया है. सूबे में इलाकाई प्रभुत्व रखने वाले नेताओं के छोटे छोटे दलों को अपने पाले में रखने और वादों के साथ सीटों के बंटवारे में तेजी आने लगी है.

भारतीय जनता पार्टी इस मामले में अभी आगे दिखाई दे रही है, जबकि सपा बसपा और कांग्रेस ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं.

यूपी के मतदाताओं में करीब 1 प्रतिशत वोटो पर पकड़ रखने वाले अपना दल का गठबंधन पहले ही भाजपा से चल रहा है. अपना दल के 2 सांसद लोकसभा चुनावो में जीते थे, मगर इसके बाद पार्टी में फूट हो गयी.

अपना दल के संस्थापक डा. सोने लाल पटेल की बेटी अनुप्रिया पटेल तो सांसद बन गयी मगर उनकी माँ कृष्णा पटेल और बहन पल्लवी पटेल ने अनुप्रिया को पार्टी से ही निकाल दिया. इसके बाद कृष्णा पटेल उपचुनाव में भी हार गयी. इस हार ने परिवार के बीच की तल्खी को और बढाया.

अब विधान सभा चुनावो में अनुप्रिया तो भाजपा के साथ है ही लेकिन भाजपा की कोशिश कृष्णा पटेल को भी साथ लाने की है.

पूर्वी उत्तर प्रदेश के बलिया से ले कर गाजीपुर तक 3 जिलों में प्रभाव रखने वाली भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने भी कहा है कि उनकी पार्टी भाजपा के साथ गठबंधन कर रही है.

पूर्व सांसद ओमप्रकाश राजभर का अच्छा प्रभाव इस इलाके में राजभर समुदाय के मतदाताओं पर माना जाता है. राजभर समुदाय के वोटर कई सीटों पर हारजीत का फैसला करने की स्थिति में हैं ऐसे में  भाजपा को इन सीटों पर फायदा होने की उम्मीद है.

भासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने कहा है कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के निमंत्रण पर उनकी 17 जून को दिल्ली में उनसे बातचीत हुई थी. भाजपा से उनके दल का गठजोड़ तय हो गया है. भाजपा उनके दल को 20 सीट देने पर सहमत हो गयी है.

9 जुलाई को मऊ में अति दलित और अति पिछड़े वर्ग की पंचायत होगी जिसमे भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी भाग लेंगे. इसी पंचायत में भाजपा और भासपा गठबंधन की औपचारिक घोषणा भी होगी.

दूसरी तरफ भासपा के प्रभाव वाले जिलों में ही प्रभावी कौमी एकता दल का विलय समाजवादी पार्टी में होने की संभावनाए बढ़ गयी हैं. मुख़्तार अंसारी के नेतृत्व वाले कौमी एकता दल के अभी दो विधायक है. मऊ और गाजीपुर के साथ ही बलिया के कुछ विधान सभा सीटों पर अच्छा प्रभाव है. खुद मुख़्तार अंसारी और उनके भाई शिवबगतुल्ला अंसारी विधायक है और इसी परिवार के अफज़ल अंसारी सांसद रह चुके हैं.

इन दो छोटे दलों के अलावा संतकबीर नगर से विधायक डा. अयूब की पीस पार्टी पर भी कांग्रेस और समाजवादी पार्टी की निगाह है. डा. अयूब की पीस पार्टी ने 2012 के विधान सभा चुनावो में 4 सीटे हासिल की थी मगर वे अपने विधायको को एक नहीं रख सके . अब उन्हें 2 विधायक समाजवादी पार्टी के साथ है. पीस पार्टी का असर भी पूर्वांचल की तराई पट्टी में है.

इसी तरह कानपूर से लेकर बदायू तक यमुना पट्टी में महानता दल अपनी मौजूदगी दिखता रहा है. पार्टी ने हांलाकि अब तक कोई चुनावी सफलता नहीं हासिल की है मगर खुद को सम्राट अशोक के सिद्धांतो पर बताने वाली ये पार्टी इलाके के कुशवाहा मतों पर अपना हक़ बताती है.

यूपी की जातीय खांचो में बंटी सियासत में महज चुनावी फायदे के लिए कुकुरमुत्तों की तरह उगे ये दल अब पानी सौदेबाजी को आकार देने में लग गए हैं. आने वाले कुछ दिनों में इसके नतीजे और भी स्पष्ट दिखाई देंगे.
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