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उत्तर प्रदेश

पढिये कैसे यूपी में भाजपा के ध्रुवीकरण के प्लान को फ्लॉप कर रही है सपा

समाजवादी पार्टी 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले फूंक-फूंककर कदम उठा रही है। कोशिश है कि चुनाव के दौरान सांप्रदायिक आधार पर वोटों का ध्रुवीकरण न हो। इसके लिए पार्टी सॉफ्ट लाइन पर चलने की कोशिश कर रही है।

शीर्ष सपा नेता चुनौतीपूर्ण, भड़काऊ और प्रतिक्रियावादी बयानों से बच रहे हैं। विरोधियों, खास तौर से भाजपा के हमलों का जवाब भी गरिमापूर्ण ढंग से देने की तैयारी है। कैराना मामले की जांच के लिए संतों की कमेटी बनाने समेत सपा के हाल के कुछ फैसले उसकी बदली रणनीति के संकेत हैं।

मुजफ्फरनगर दंगों से लेकर 2014 के लोकसभा चुनाव तक सपा ने आक्रामक रणनीति अपनाई थी। बड़ी रैलियों में आजम खां सपा का प्रमुख चेहरा होते थे। मुलायम सिंह उनका संबोधन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के बाद कराते थे। जाहिर है, मुसलमानों को लुभाने के लिए आजम खां का चेहरा सामने किया गया।

लोकसभा चुनावों में बड़े स्तर पर वोटों का सांप्रदायिक आधारपर ध्रुवीकरण हुआ। अधिकतर सीटों पर मुस्लिम वोटों में बिखराव भी रहा। नतीजतन भाजपा को बड़ी जीत हासिल हुई। उस चुनाव ने साबित किया कि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की स्थिति में सर्वाधिक लाभ भाजपा को होता था।




सपा की पहली पंक्ति के नेता बरत रहे हैं पूरी सावधानी




सपा नेताओं को यह बात लोकसभा चुनाव के बाद ही समझ में आ गई थी। तब मुख्य सचिव को बदलकर रणनीति में बदलाव का संकेत दिया गया था। सपा की कोशिश है कि 2012 के विधानसभा चुनाव की तरह 2017 में भी वोटों का ध्रुवीकरण धर्म के आधार पर न होने पाए। इसे रोकने के लिए सपा बड़ी सावधानी से आगे बढ़ रही है।

सपा की अगली पंक्ति के नेता पूरी सावधानी बरत रहे हैं। उन्हें लगता है कि विकास के मुद्दे पर तभी बात हो सकती है जब माहौल सांप्रदायिक न हो। वोटों के ध्रुवीकरण के दौर में तो विकास योजनाओं का राग बेसुरा हो जाता है।

कैराना मुद्दे पर तीखे बयानों से परहेज
मुजफ्फरनगर दंगे के नतीजे देख चुकी सपा कैराना मुद्दे पर कोई चूक नहीं करना चाहती। इस मुद्दे को सांप्रदायिक रंग देने की भाजपा की कोशिशें सपा के नरम रुख के चलते परवान नहीं चढ़ पा रही है। सीएम अखिलेश यादव या सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने इस मुद्दे पर लगभग चुप्पी साधे रखी। आजम खां भी ज्यादा मुखर नहीं हुए।

सपा ने इस मामले की जांच के लिए संतों की कमेटी बनाने का एलान करके भी भाजपा को फ्रंट फुट पर खेलने का मौका नहीं दिया। टीवी चैनलों पर खूब बहसें हुईं, लेकिन पश्चिमी यूपी में इसे लेकर आम लोगों के स्तर पर खास हलचल नहीं हो पाई।





धु्वीकरण रोकने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं अजित ‌सिंह




मथुरा और कैराना मुद्दों की गरमाहट के बीच राष्ट्रीय लोकदल और सपा के बीच नजदीकियां भी बढ़ीं। अजित सिंह और मुलायम सिंह के बीच दो-तीन दौर की बातचीत हुई। ऐसा माना जा रहा है कि पश्चिमी यूपी में विधानसभा चुनाव में वोटों का ध्रुवीकरण रोकने में अजित समर्थक अहम भूमिका निभा सकते हैं।

सपा-रालोद की नजदीकियों का असर है कि मुजफ्फरनगर मुद्दे पर तटस्थ रहने का आरोप झेलने वाले अजित सिंह ने कैराना मुद्दे पर किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में भाजपा को सबसे पहले कठघरे में खड़ा किया। वेस्ट यूपी में इसका असर दिखा। भाजपा ग्रामीण क्षेत्रों में कैराना मुद्दे को ज्यादा गरमा नहीं सकी।

एकपक्षीय कार्रवाई के आरोप का मौका ही न‌हीं मिला

कैराना मुद्दे को लेकर सरधना के विधायक संगीत सोम की निर्भय यात्रा के जवाब में वहां से सपा प्रत्याशी अतुल प्रधान ने सद्भावना यात्रा निकाली।

सोम की यात्रा में जहां हथियारों का प्रदर्शन हुआ, जज्बाती नारे लगे, वहीं सपाई गांधीगीरी करते नजर आए। निषेधाज्ञा का उल्लंघन करने पर सोम के साथ ही अतुल के खिलाफ भी मुकदमा दर्ज कराया गया। इससे भाजपा को एकपक्षीय कार्रवाई का आरोप लगाने का मौका नहीं मिला।





मथुरा मामले पर भी इसी रणनीति के तहत चुप रहे अखिलेश व मुलायम


भाजपा और बसपा ने मथुरा मुद्दे पर सपा सरकार और मंत्री शिवपाल सिंह यादव की घेराबंदी की तो सपा ने जवाबी हमला करने में संयम बरता।

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और गृहमंत्री राजनाथ सिंह के हमलों का जवाब मुलायम, अखिलेश ने नहीं दिया। शिवपाल के अलावा सपा की दूसरी पंक्ति के नेता ही इस मामले में मुखर रहे। इससे भाजपा को सीएम या सपा अध्यक्ष के साथ आरोप-प्रत्यारोप का मौका नहीं मिला।

अमर को राज्यसभा भेजने में आजम की अनदेखी
अमर सिंह को राज्यसभा प्रत्याशी बनाने के मुद्दे पर मुलायम किसी दबाव में नहीं आए। उन्होंने आजम खां के विरोध को नजर अंदाज किया। किसी मुसलमान को राज्यसभा प्रत्याशी न बनाए जाने का मुद्दा मुस्लिम संगठनों ने उठाया, इसके बावजूद सपा ने उम्मीदवारों में बदलाव नहीं किया।






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