वेस्ट यूपी में धार्मिक आधार पर पनप रहा शिफ्टिंग का खतरनाक रुझान
कैराना के बाद कांधला। इसी कड़ी में भाजपा पश्चिमी यूपी के कुछ और कस्बों से पलायन का मुद्दा उठा सकती है। पिछले कुछ वर्षों से वेस्ट यूपी में धार्मिक आधार पर हिंदू और मुसलमान दोनों ही समुदाय की आबादी की बसावट का खतरनाक रुझान पनप रहा है।
एनएएस पीजी कॉलेज मेरठ के सेवानिवृत्त प्रोफेसर अशोक शास्त्री कहते हैं कि कैराना से हिंदुओं का पलायन अकेला मामला नहीं है। शहरों, छोटे कस्बों में पलायन का पैटर्न एक ही है। वह मेरठ शहर के जाटान, बनियापाड़ा, पटेलनगर मुहल्लों का उदाहरण देते हैं।
कहते हैं, पहले यहां अच्छी खासी हिंदू आबादी थी लेकिन अब एक भी परिवार नहीं रहा। यह एक-दो साल में नहीं हुआ। आपराधिक और माहौल बिगाड़ने की चुनिंदा घटनाएं इसकी वजह बनीं। कैराना अंग्रेजों के जमाने से तहसील मुख्यालय है। यह कला और संस्कृति का बड़ा केंद्र रहा है। किराना घराने के शास्त्रीय संगीत की देश में पहचान रही है।
सांसद हुकुम सिंह की सूची में पलायन करने वाले कितने नाम सही हैं, कितने गलत, इस पर बहस हो सकती है लेकिन भय और असुरक्षा के चलते धीरे-धीरे वहां से वैश्य समाज और पिछड़े वर्ग के लोगों ने अपना ठिकाना बदला है। इसकी वजह पुलिस की निष्क्रियता या एकपक्षीय कार्रवाई ज्यादा रही है।
सियासी तौर पर न देखें, गंभीरता से लें
डॉ. शास्त्री कहते हैं कि कैराना मुद्दे को कुछ लोग सियासी तौर पर देख रहे हैं, इसकी गंभीरता को नहीं समझ रहे। जब तक 18-20 फीसदी मुस्लिम वोटों के लिए राजनीतिक दल सच्चाई को झुठलाते रहेंगे, समस्या का समाधान नहीं होगा।
राष्ट्रवादी और हिंदुओं का रहनुमा बनने वाले आरएसएस या भाजपा की नजर पलायन की आड़ में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करके वोट हथियाने की है। समस्या सुलझाने में उनकी दिलचस्पी नहीं है। हुकुम सिंह ने चुनाव में सियासी लाभ के लिए इसे उठाया है।
मुस्लिम और हिंदू बहुल इलाकों से एक संप्रदाय के लोगों का दूसरी जगह पलायन आम होता जा रहा है। बड़े शहरों में यही शिफ्टिंग एक मुहल्ले से दूसरे मुहल्ले में हो रही है। इसे सामाजिक सुरक्षा और रोजगार के अवसरों से जोड़कर देखा जा रहा है।
पश्चिमी यूपी में 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों से टूटा सामाजिक ताना-बाना अभी पुराने स्वरूप में लौटा भी नहीं है कि कैराना में धर्म विशेष के लोगों के पलायन को भाजपा ने बड़ा मुद्दा बना दिया है।
सवाल यह नहीं है कि कितने लोगों ने दहशत की वजह से या कितनों ने कारोबार की बेहतरी के लिए कैराना से अपना घर, व्यवसाय कहीं और शिफ्ट कर लिया।
असल बात यह है कि जिस रूप में यह मुद्दा उठाया गया है, वह बेहद गंभीर है। यह पश्चिमी यूपी को ध्रुवीकरण की प्रयोगशाला बनाने के लिए कच्चे माल की तरह काम कर सकता है।
पश्चिमी यूपी में 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों से टूटा सामाजिक ताना-बाना अभी पुराने स्वरूप में लौटा भी नहीं है कि कैराना में धर्म विशेष के लोगों के पलायन को भाजपा ने बड़ा मुद्दा बना दिया है।
सवाल यह नहीं है कि कितने लोगों ने दहशत की वजह से या कितनों ने कारोबार की बेहतरी के लिए कैराना से अपना घर, व्यवसाय कहीं और शिफ्ट कर लिया।
असल बात यह है कि जिस रूप में यह मुद्दा उठाया गया है, वह बेहद गंभीर है। यह पश्चिमी यूपी को ध्रुवीकरण की प्रयोगशाला बनाने के लिए कच्चे माल की तरह काम कर सकता है।
इन शहरों में मुस्लिम आबादी है कमजोर
सहारनपुर, बिजनौर, मेरठ, मुरादाबाद, अमरोहा, संभल, रामपुर, बुलंदशहर समेत कई जिलों पर नजर डालें तो अधिकतर शहरी कस्बों में मुस्लिम आबादी अपेक्षाकृत ज्यादा है।
पिछले 10-15 साल से इन कस्बों से एक वर्ग के कुछ लोगों का पलायन हो रहा है। कुछ लोग बेहतर भविष्य के लिए तो कुछ असुरक्षा की आशंका से घर-बार बेचने को मजबूर हुए हैं।
छोटे कस्बे ही क्यों, बड़े शहर भी इससे अछूते नहीं है। एक मुहल्ले से दूसरे मुहल्ले में धार्मिक आधार पर शिफ्टिंग हो रही है। मिश्रित आबादी के जो इलाके पहले मिली-जुली संस्कृति की पहचान होते थे, वे अब असुरक्षा वाली जगह बनते जा रहे हैं। कारोबारी खासतौर पर वहां से दूसरी जगह आशियाना बना रहे हैं।
इस नजरिये से देखें तो पश्चिमी यूपी में एक नहीं कई कैराना है बल्कि हर शहर में कैराना है। आमतौर पर सभी पुराने कस्बों में वैश्य समाज के लोग कारोबारी थे। वे अपने व्यवसाय के लिए अमन और सुकून चाहते हैं। एक वारदात उनमें दहशत पैदा करने के लिए काफी होती है।
शासन, प्रशासन ने अपराधियों पर लगाम लगाने में शिथिलता दिखाई और राजनीतिज्ञों ने वोट बैंक के लिए उन्हें संरक्षण दिया। इसी से हालात बिगड़ते चले गए। सुधार के लिए कदम उठाने के बजाय सियासी लोग इस मुद्दे पर राजनीति कर रहे हैं।
पिछले 10-15 साल से इन कस्बों से एक वर्ग के कुछ लोगों का पलायन हो रहा है। कुछ लोग बेहतर भविष्य के लिए तो कुछ असुरक्षा की आशंका से घर-बार बेचने को मजबूर हुए हैं।
छोटे कस्बे ही क्यों, बड़े शहर भी इससे अछूते नहीं है। एक मुहल्ले से दूसरे मुहल्ले में धार्मिक आधार पर शिफ्टिंग हो रही है। मिश्रित आबादी के जो इलाके पहले मिली-जुली संस्कृति की पहचान होते थे, वे अब असुरक्षा वाली जगह बनते जा रहे हैं। कारोबारी खासतौर पर वहां से दूसरी जगह आशियाना बना रहे हैं।
इस नजरिये से देखें तो पश्चिमी यूपी में एक नहीं कई कैराना है बल्कि हर शहर में कैराना है। आमतौर पर सभी पुराने कस्बों में वैश्य समाज के लोग कारोबारी थे। वे अपने व्यवसाय के लिए अमन और सुकून चाहते हैं। एक वारदात उनमें दहशत पैदा करने के लिए काफी होती है।
शासन, प्रशासन ने अपराधियों पर लगाम लगाने में शिथिलता दिखाई और राजनीतिज्ञों ने वोट बैंक के लिए उन्हें संरक्षण दिया। इसी से हालात बिगड़ते चले गए। सुधार के लिए कदम उठाने के बजाय सियासी लोग इस मुद्दे पर राजनीति कर रहे हैं।
कैराना की समस्या सामाजिक से ज्यादा राजनीतिक
पश्चिमी यूपी के समाजशास्त्री प्रो. जेके पुंडीर कहते हैं कि कैराना की समस्या सामाजिक के बजाय राजनीतिक ज्यादा है। लोकतंत्र में सियासी दलों का लक्ष्य सत्ता पाना होता है। दुर्भाग्य से इसके लिए गलत साधनों का प्रयोग होने लगा। राजनीतिज्ञों को सत्ता के लिए अपराधियों के इस्तेमाल से परहेज नहीं रहा।
परिपक्व होते लोकतंत्र की यही खामी स्थिति में बिगाड़ की वजह बन रही है। चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ के समाजशास्त्र विभाग के अध्यक्ष, डीन और प्रतिकुलपति रह चुके प्रो. पुंडीर कहते हैं कि पश्चिमी यूपी में संपन्नता बढ़ने के साथ अपराध बढ़े हैं, कानून व्यवस्था की समस्या है। ऐसे में जब सुरक्षा की भावना नहीं रहेगी तो पलायन होगा ही।
कुछ लोग बेहतर अवसरों की तलाश में बाहर चले जाते हैं। सपा शासन में एक वर्ग विशेष से जुड़े अपराधियों का हौसला बढ़ने और उन्हें सरकारी संरक्षण के आरोप आम हैं। पुलिस का रुख उनके प्रति नरम रहता है। कई मामलों में एफआईआर तक दर्ज नहीं होती। प्रशासन पर राजनीतिज्ञों का दबाव रहता है।
यह त्रासदी है कि सत्ताधारी पार्टी के नेता पुलिस को अपने इशारों पर नचाते हैं, उसे बौना बना देते हैं। कैराना में रंगदारी मांगने वाले के प्रति नरमी, पक्षपातपूर्ण कार्रवाई और प्रशासनिक शिथिलता से पलायन की स्थिति बनी। भाजपा इस मुद्दे को भुनाना चाहती है।
शासन-प्रशासन बने वाचडॉग
प्रो. पुंडीर कहते हैं, कैराना ही नहीं पश्चिमी यूपी में अन्य स्थानों पर पलायन जैसे मुद्दों का एक ही समाधान है। पुलिस की भूमिका निष्पक्ष हो, प्रशासन वाचडॉग की भूमिका में रहे। हो सकता है, कुछ जगहों पर प्रशासन को विरोध का सामना करना पड़े लेकिन समस्या का समाधान हो जाएगा।
परिपक्व होते लोकतंत्र की यही खामी स्थिति में बिगाड़ की वजह बन रही है। चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ के समाजशास्त्र विभाग के अध्यक्ष, डीन और प्रतिकुलपति रह चुके प्रो. पुंडीर कहते हैं कि पश्चिमी यूपी में संपन्नता बढ़ने के साथ अपराध बढ़े हैं, कानून व्यवस्था की समस्या है। ऐसे में जब सुरक्षा की भावना नहीं रहेगी तो पलायन होगा ही।
कुछ लोग बेहतर अवसरों की तलाश में बाहर चले जाते हैं। सपा शासन में एक वर्ग विशेष से जुड़े अपराधियों का हौसला बढ़ने और उन्हें सरकारी संरक्षण के आरोप आम हैं। पुलिस का रुख उनके प्रति नरम रहता है। कई मामलों में एफआईआर तक दर्ज नहीं होती। प्रशासन पर राजनीतिज्ञों का दबाव रहता है।
यह त्रासदी है कि सत्ताधारी पार्टी के नेता पुलिस को अपने इशारों पर नचाते हैं, उसे बौना बना देते हैं। कैराना में रंगदारी मांगने वाले के प्रति नरमी, पक्षपातपूर्ण कार्रवाई और प्रशासनिक शिथिलता से पलायन की स्थिति बनी। भाजपा इस मुद्दे को भुनाना चाहती है।
शासन-प्रशासन बने वाचडॉग
प्रो. पुंडीर कहते हैं, कैराना ही नहीं पश्चिमी यूपी में अन्य स्थानों पर पलायन जैसे मुद्दों का एक ही समाधान है। पुलिस की भूमिका निष्पक्ष हो, प्रशासन वाचडॉग की भूमिका में रहे। हो सकता है, कुछ जगहों पर प्रशासन को विरोध का सामना करना पड़े लेकिन समस्या का समाधान हो जाएगा।
शहरों, कस्बों से पलायन का एक ही पैटर्न
एनएएस पीजी कॉलेज मेरठ के सेवानिवृत्त प्रोफेसर अशोक शास्त्री कहते हैं कि कैराना से हिंदुओं का पलायन अकेला मामला नहीं है। शहरों, छोटे कस्बों में पलायन का पैटर्न एक ही है। वह मेरठ शहर के जाटान, बनियापाड़ा, पटेलनगर मुहल्लों का उदाहरण देते हैं।
कहते हैं, पहले यहां अच्छी खासी हिंदू आबादी थी लेकिन अब एक भी परिवार नहीं रहा। यह एक-दो साल में नहीं हुआ। आपराधिक और माहौल बिगाड़ने की चुनिंदा घटनाएं इसकी वजह बनीं। कैराना अंग्रेजों के जमाने से तहसील मुख्यालय है। यह कला और संस्कृति का बड़ा केंद्र रहा है। किराना घराने के शास्त्रीय संगीत की देश में पहचान रही है।
सांसद हुकुम सिंह की सूची में पलायन करने वाले कितने नाम सही हैं, कितने गलत, इस पर बहस हो सकती है लेकिन भय और असुरक्षा के चलते धीरे-धीरे वहां से वैश्य समाज और पिछड़े वर्ग के लोगों ने अपना ठिकाना बदला है। इसकी वजह पुलिस की निष्क्रियता या एकपक्षीय कार्रवाई ज्यादा रही है।
सियासी तौर पर न देखें, गंभीरता से लें
डॉ. शास्त्री कहते हैं कि कैराना मुद्दे को कुछ लोग सियासी तौर पर देख रहे हैं, इसकी गंभीरता को नहीं समझ रहे। जब तक 18-20 फीसदी मुस्लिम वोटों के लिए राजनीतिक दल सच्चाई को झुठलाते रहेंगे, समस्या का समाधान नहीं होगा।
राष्ट्रवादी और हिंदुओं का रहनुमा बनने वाले आरएसएस या भाजपा की नजर पलायन की आड़ में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करके वोट हथियाने की है। समस्या सुलझाने में उनकी दिलचस्पी नहीं है। हुकुम सिंह ने चुनाव में सियासी लाभ के लिए इसे उठाया है।
Next Story