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GST को पास करवाने के बदले मोदी को, अम्मा की 29 पन्नों की मांगे माननी होगी
दिल्ली : तमिलनाडु की सीएम जयललिता मान जाए तो मोदी सरकार अगले संसदीय सत्र में जीएसटी को पास कर सबसे बड़ी उपलब्धि हासिल कर सकते हैं। जीएसटी का पूरा खेल जयललिता के 12 राज्यसभा सांसदों पर टिका है। जीएसटी के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तमिलनाडु की सीएम जयललियता की एक दिन पहले हुई मुलाकात महत्व्पूर्ण मानी जा रही थी। उम्मीद के मुताबिक जयललिता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने अपनी 29 पन्नों की मांगे रखी, जिन्हे देखने से साफ़ है कि इन मांगों से पार पाना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए इन आसान नहीं होगा। क्योंकि मोदी जयललिता की मांगे मान गए तो जीएसटी पास हो जायेगा, वहीँ कर्ज से डूबे तमिलनाडु में अपने चुनावी वादे पूरे करना अम्मा के लिए आसान हो जाएगा।
अम्मा को अपने चुनावी वादों की चिंता
अपने लुभावने चुनावी वादों के आसरे जयललिता सत्ता में तो आ गई लेकिन ये वादे पूरे कैसे होंगे इनके लिए अम्मा की नजरें दिल्ली की ओर हैं। अम्मा के सामने सबसे बड़ी मुश्किल तो यही है कि कर्ज से डूबे तमिलनाडु में उनके चुनावों के दौरान सबकुछ फ्री में देने के वादे कैसे पूरे होंगे। क्योंकि जीएसटी पास हुआ तो राज्यों के टैक्स का ढांचा केंद्र के पास जाना तय है और यह बात भी तय है कि जीएसटी से राज्यों रेवेन्यू पर नकारात्मक असर तो पड़ेगा ही। जयललिता का बड़ा चुनावी वादा था, शराब पर पाबन्दी लगाना और जीत के तुरंत बाद उन्होंने 500 दुकाने बंद करवा दी। सरकारी आंकड़ों की माने तो शराब बिक्री से तमिलनाडु को 30,000 करोड़ रुपये की आय होती है, जो अब चौपट हो जायेगी।
वहीँ चुनावों के दौरान जयललिता ने किसानों की ऋण माफी की घोषणा की थी। जिसका भुगतान अब तमिलनाडु सरकार को सहकारी बैंकों को करना होगा, इससे उनकी सरकार पर 5780 करोड़ रुपए का वित्तीय बोझ पड़ेगा। घरेलू बिजली उपभोक्ताओं को सौ इकाई नि:शुल्क बिजली देने पर तमिलनाडु जेनरेशन एंड डिस्ट्रीब्यूशन कॉर्पोरेशन को 1607 करोड़ रुपए का अतिरिक्त भुगतान करना पड़ेगा। जयललिता ने चुनावों के दौरान कहा था वह 25 हजार से 50 हजार रुपए की आर्थिक सहायता के अलावा आठ ग्राम सोना भी देगी और मुख्यमंत्री ने हैंडलूम बुनकरों को 200 यूनिट तक नि:शुल्क बिजली और पॉवरलूम को 750 यूनिट तक नि:शुल्क बिजली देने का वादा किया था।
मोदी से मुलाकात के दौरान उन्होंने अपनी जो 29 पन्नों की मांगे रखी उनमे आर्थिक ही नहीं बल्किकई कानूनी मांगे भी है, जिन्हे मानना केंद्र सरकार के लिए आसान नहीं है। इन मांगों में राजीव गांधी के हत्यारों को माफ़ किये जाने का मुद्दा, श्रीलंकाई तमिलों का मुद्दा, जल्लीकट्टू के आयोजन पर लगी पाबंदी हटाने और तमिल को एक आधिकारिक भाषा घोषित करने की मांगें शामिल हैं। यही नहीं अम्मा चाहती हैं कि तमिल को मद्रास उच्च न्यायालय की भाषा के तौर इस्तेमाल किया जाए।
अम्मा को अपने चुनावी वादों की चिंता
अपने लुभावने चुनावी वादों के आसरे जयललिता सत्ता में तो आ गई लेकिन ये वादे पूरे कैसे होंगे इनके लिए अम्मा की नजरें दिल्ली की ओर हैं। अम्मा के सामने सबसे बड़ी मुश्किल तो यही है कि कर्ज से डूबे तमिलनाडु में उनके चुनावों के दौरान सबकुछ फ्री में देने के वादे कैसे पूरे होंगे। क्योंकि जीएसटी पास हुआ तो राज्यों के टैक्स का ढांचा केंद्र के पास जाना तय है और यह बात भी तय है कि जीएसटी से राज्यों रेवेन्यू पर नकारात्मक असर तो पड़ेगा ही। जयललिता का बड़ा चुनावी वादा था, शराब पर पाबन्दी लगाना और जीत के तुरंत बाद उन्होंने 500 दुकाने बंद करवा दी। सरकारी आंकड़ों की माने तो शराब बिक्री से तमिलनाडु को 30,000 करोड़ रुपये की आय होती है, जो अब चौपट हो जायेगी।
वहीँ चुनावों के दौरान जयललिता ने किसानों की ऋण माफी की घोषणा की थी। जिसका भुगतान अब तमिलनाडु सरकार को सहकारी बैंकों को करना होगा, इससे उनकी सरकार पर 5780 करोड़ रुपए का वित्तीय बोझ पड़ेगा। घरेलू बिजली उपभोक्ताओं को सौ इकाई नि:शुल्क बिजली देने पर तमिलनाडु जेनरेशन एंड डिस्ट्रीब्यूशन कॉर्पोरेशन को 1607 करोड़ रुपए का अतिरिक्त भुगतान करना पड़ेगा। जयललिता ने चुनावों के दौरान कहा था वह 25 हजार से 50 हजार रुपए की आर्थिक सहायता के अलावा आठ ग्राम सोना भी देगी और मुख्यमंत्री ने हैंडलूम बुनकरों को 200 यूनिट तक नि:शुल्क बिजली और पॉवरलूम को 750 यूनिट तक नि:शुल्क बिजली देने का वादा किया था।
मोदी से मुलाकात के दौरान उन्होंने अपनी जो 29 पन्नों की मांगे रखी उनमे आर्थिक ही नहीं बल्किकई कानूनी मांगे भी है, जिन्हे मानना केंद्र सरकार के लिए आसान नहीं है। इन मांगों में राजीव गांधी के हत्यारों को माफ़ किये जाने का मुद्दा, श्रीलंकाई तमिलों का मुद्दा, जल्लीकट्टू के आयोजन पर लगी पाबंदी हटाने और तमिल को एक आधिकारिक भाषा घोषित करने की मांगें शामिल हैं। यही नहीं अम्मा चाहती हैं कि तमिल को मद्रास उच्च न्यायालय की भाषा के तौर इस्तेमाल किया जाए।
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