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उत्तर प्रदेश

राज्यसभा-विधानसभा चुनाव में  पार्टी को जिताकर शिवपाल ने बढ़ाया कद

राज्यसभा-विधानसभा चुनाव शिवपाल यादव के नेतृत्व में लड़ा गया। आधे दर्जन विधायकों की क्रास वोटिंग के बावजूद शिवपाल ने पार्टी के खाते में सभी सात राज्यसभा सीटें और विधानसपरिषद सीटें डाल दीं। जिससे मुलायम सिंह यादव के नजर में एक बार फिर शिवपाल का जहां कद बढ़ा, वहीं इसी के साथ शिवपाल यादव ने यह भी जता दिया कि यूपी विधानसभा चुनाव में  यूपी का प्रभार सौंपने का मुलायम का फैसला कितना सही है।

वैसे पार्टी में माना जाता है कि अखिलेश सरकार तो अच्छा चला लेते हैं मगर संगठन चलाने का हुनर शिवपाल में है। शिवपाल को अक्सर पार्टी कार्यकर्ताओं, विधायकों से कहीं भी घिरा देखा जा सकता है, क्योंकि वे हर पदाधिकारी को उचित-अनुचित ढंग से उपकृत कर उसे भक्त बना लेते हैं।

जबकि अखिलेश गिने-चुने लोगों से ही मिलते हैं,जिनकी छवि ठीक होती है। कहा जाता है कि अखिलेश अगर अपने पास आई किसी सिफारिश पर प्रमुख सचिवों को हुक्म भी देते हैं तो यह जरूर कहते हैं कि नियम-कायदे का कुछ ख्याल रखना। इससे बैकडोर से काम की चाहत रखने वाले अखिलेश से कन्नी काटकर शिवपाल के पास पहुंचते हैं। यही वजह है कि मुलायम संगठन पदाधिकारियों पर मजबूत पकड़ के चलते शिवपाल को प्रदेश प्रभारी बनाने को मजबूर हुए। इससे मुलायम की दो मंशा जुड़ी रही। एक शिवपाल के मन में प्रदेश अध्यक्षी छिनने के बाद पार्टी में अपनी उपेक्षा होने का भाव खत्म करना, दूसरे शिवपाल के संगठन में पकड़ का चुनाव में पार्टी को लाभ दिलाना।

दो महीने पहले अप्रैल में मुलायम ने  प्रदेश प्रभारी का नया ओहदा बनाकर शिवपाल को जिम्मेदारी दी। जबकि अखिलेश यादव प्रदेश अध्यक्ष हैं। इससे अखिलेश का एकछत्र अधिकारों में कटौती हो गई। पार्टी में भी इससे संदेश गया कि नेताजी अखिलेश पर अभी पूरा भरोसा नहीं करते हैं। इसीलिए उनके समानांतर शिवपाल को जिम्मेदारी दी गई।
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