AYODHYA RIVISTED: न तो थी बाबरी मस्जिद और न बाबर ने तोडा मंदिर
लखनऊ. तीन दशको से देश की सियासत का मुद्दा बने हुए अयोध्या के बाबरी मस्जिद या राम जन्म भूमि विवाद में एक किताब ने नया मोड़ ला दिया है. “Ayodhya Revisited” नाम की इस किताब के लेखक आईपीएस अफसर से पटना के हनुमान मंदिर के पुजारी बने किशोर कुणाल है.
किशोर कुणाल अपने सेवा काल में बतौर आईपीएस अफसर बहुत कि काबिल माने जाते थे और बाद में उन्होंने पटना में एक बड़े हनुमान मंदिर का निर्माण कराया और खुद भक्ति में लग गए.
किशोर कुणाल अयोध्या विवाद में मध्यस्थ की भूमिका भी निभा चुके हैं.
अपनी किताब में किशोर कुणाल ने पुरे सबूतों के साथ बताया है कि अयोध्या में बाबर ने कोई मंदिर तोडा ही नहीं था, और जो अभिलेख दिखाया जाता है वह भी फर्जी ही है. किशोर ने बताया है कि किस तरह से इतिहासकारों ने तथ्यों को तोड़ मरोड़ के एक कहानी बना दी.
हालाकि किशोर भी राम मंदिर के निर्माण के पक्ष में हैं मगर इस वजह से वे बाबर के चरित्र को गलत ठहराने के खिलाफ हैं.
किशोर का कहना है कि ‘लोगों को जानकर हैरानी होगी कि तथाकथित बाबरी मस्जिद का 240 साल तक किसी भी टेक्स्ट यानी किताब में ज़िक्र नहीं आता है.’
किशोर कुणाल ने ऐसे तमाम दस्तावेज जुटाए हैं जिसके अनुसार मस्जिद के भीतर जिस शिलालेख के मिलने का दावा किया जाता है वह फर्ज़ी हैं. उनका कहना है कि इस बात को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस सुधीर अग्रवाल और जस्टिस एस यू ख़ान ने भी स्वीकार किया था.
किताब में बताया गया है कि विश्व हिन्दू परिषद के इतिहासकारों ने बहादुर शाह आलमगीर की अनाम बेटी की लिखित किताब बहादुर शाही को साक्ष्य बनाने का प्रयास किया. जबकि न तो औरंगज़ेब के बेटे बहादुर शाह को कभी आलमगीर का ख़िताब मिला और बहादुर शाह की एक बेटी थी जो बहुत पहले मर चुकी थी.
तथ्यों को भ्रामक बनाने के लिए अपनी किताब में किशोर ने विश्व हिन्दू परिषद और मार्क्सवादी इतिहासकारों की गड़बड़ियों को उजागर किया है.
कुणाल कहते हैं कि कई पाठकों के लिए यह स्वीकार करना मुश्किल होगा कि 1949 में निर्जन मस्जिद में राम लला की मूर्ति रखने वाले बाबा अभिरामदासजी को 1955 में बाराबंकी के एक मुस्लिम ज़मींदार क़य्यूम किदवई ने 50 एकड़ ज़मीन दान दी थी.
बाबर की भूमिका को साफ़ करते हुए किशोर कुनाल का मानना है कि ‘उस तथाकथित बाबरी मस्जिद के निर्माण में बाबर की कोई भूमिका नहीं थी.’ उसके पूरे सल्तनत काल और मुगल काल के बड़े हिस्से में अयोध्या के तीन बड़े हिन्दू धार्मिक स्थल सुरक्षित रहे.
कुणाल के अनुसार 1813 साल में एक शिया धर्म गुरू ने शिलालेख में हेरफेर किया था जिसके अनुसार बाबर के कहने पर मीर बाक़ी ने ये मस्जिद बनाई थी. कुणाल ने इस शिलालेख को भी फर्ज़ी बताया है.
किशोर कुणाल अपने सेवा काल में बतौर आईपीएस अफसर बहुत कि काबिल माने जाते थे और बाद में उन्होंने पटना में एक बड़े हनुमान मंदिर का निर्माण कराया और खुद भक्ति में लग गए.
किशोर कुणाल अयोध्या विवाद में मध्यस्थ की भूमिका भी निभा चुके हैं.
‘मैं पिछले दो दशकों से ऐतिहासिक तथ्यों की झूठी और भ्रामक व्याख्या के कारण अयोध्या के वास्तविक इतिहास की मौत का मूक दर्शक बना हुआ हूं। नब्बे के दशक के शुरूआती वर्षों में हिन्दू और मुस्लिम समुदायों के बीच एक वार्ताकार के रूप में मैंने अपना कर्तव्य निष्ठा के साथ निभाया लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में चल रही सुनवाई के आख़िरी चरणों में मुझे लगा कि अयोध्या विवाद में हस्तक्षेप करना चाहिए और मैंने इस थीसीस को तैयार किया।’ —- किशोर कुणाल
अपनी किताब में किशोर कुणाल ने पुरे सबूतों के साथ बताया है कि अयोध्या में बाबर ने कोई मंदिर तोडा ही नहीं था, और जो अभिलेख दिखाया जाता है वह भी फर्जी ही है. किशोर ने बताया है कि किस तरह से इतिहासकारों ने तथ्यों को तोड़ मरोड़ के एक कहानी बना दी.
हालाकि किशोर भी राम मंदिर के निर्माण के पक्ष में हैं मगर इस वजह से वे बाबर के चरित्र को गलत ठहराने के खिलाफ हैं.
किशोर का कहना है कि ‘लोगों को जानकर हैरानी होगी कि तथाकथित बाबरी मस्जिद का 240 साल तक किसी भी टेक्स्ट यानी किताब में ज़िक्र नहीं आता है.’
किशोर कुणाल ने ऐसे तमाम दस्तावेज जुटाए हैं जिसके अनुसार मस्जिद के भीतर जिस शिलालेख के मिलने का दावा किया जाता है वह फर्ज़ी हैं. उनका कहना है कि इस बात को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस सुधीर अग्रवाल और जस्टिस एस यू ख़ान ने भी स्वीकार किया था.
किताब में बताया गया है कि विश्व हिन्दू परिषद के इतिहासकारों ने बहादुर शाह आलमगीर की अनाम बेटी की लिखित किताब बहादुर शाही को साक्ष्य बनाने का प्रयास किया. जबकि न तो औरंगज़ेब के बेटे बहादुर शाह को कभी आलमगीर का ख़िताब मिला और बहादुर शाह की एक बेटी थी जो बहुत पहले मर चुकी थी.
तथ्यों को भ्रामक बनाने के लिए अपनी किताब में किशोर ने विश्व हिन्दू परिषद और मार्क्सवादी इतिहासकारों की गड़बड़ियों को उजागर किया है.
कुणाल कहते हैं कि कई पाठकों के लिए यह स्वीकार करना मुश्किल होगा कि 1949 में निर्जन मस्जिद में राम लला की मूर्ति रखने वाले बाबा अभिरामदासजी को 1955 में बाराबंकी के एक मुस्लिम ज़मींदार क़य्यूम किदवई ने 50 एकड़ ज़मीन दान दी थी.
बाबर की भूमिका को साफ़ करते हुए किशोर कुनाल का मानना है कि ‘उस तथाकथित बाबरी मस्जिद के निर्माण में बाबर की कोई भूमिका नहीं थी.’ उसके पूरे सल्तनत काल और मुगल काल के बड़े हिस्से में अयोध्या के तीन बड़े हिन्दू धार्मिक स्थल सुरक्षित रहे.
कुणाल के अनुसार 1813 साल में एक शिया धर्म गुरू ने शिलालेख में हेरफेर किया था जिसके अनुसार बाबर के कहने पर मीर बाक़ी ने ये मस्जिद बनाई थी. कुणाल ने इस शिलालेख को भी फर्ज़ी बताया है.
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