दादरी हत्याकांड: क्या कहते हैं एक्सपर्ट?, कैसे रिपोर्ट आई सामने?
यूपी के बहुचर्चित दादरी के बीफ कांड का जिन्न बोतल से एक बार फिर से बाहर आ गया है. बीजेपी समेत तमाम राजनैतिक दल मृतक अखलाक के घर से निकले मीट को लेकर एक दूजे पर साम्प्रदायिक होने का आरोप लगाते रहे. बहरहाल, 8 महीनों के लंबे इंतजार के बाद फॉरेंसिक जांच के नतीजे में अखलाक के घर में मिले मांस के गाय अथवा उसके बछड़े के मांस होने की पुष्टि हो गई है. इससे सूबे में राजनीतिक तूफान मच गया है.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
अपराध मामलों के जानकार एडवोकेट रविन्द्र राजौरा ने बताया कि गौ-हत्या कानूनन अपराध है. अखलाक के घर में गौ-वध हुआ और पुलिस ने गौ-मांस की बरामदगी भी की. फोरेंसिक जांच रिपोर्ट से तय हुआ है कि बरामद मीट गौ-मांस था. इसलिए यूपी गौवध निवारण अधिनियम के तहत आरोपियों पर केस दर्ज होना चाहिए. इसके अलावा यह आपराधिक कृत्य गैंगस्टर एक्ट के नये संसोधन के दायरे में भी है. पुलिस केस दर्ज करके निष्पक्षता से इनके खिलाफ कार्रवाई करे.
वहीँ बीजेपी के प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा कि सरकार ने तथ्यों को छुपाया है. यह रिपोर्ट पहले से ही कोर्ट में पेश थी. सरकार को पता था. अब अखिलेश सरकार को जवाब देना चाहिए कि वह क्या कार्रवाई करती है.
उन्होंने कहा इस रिपोर्ट को छुपाने की साजिश रची गई. रिपोर्ट प्रतिबंधित पशु का मांस था. और वह मांस प्रदेश में प्रतिबंधित है सरकार को अब अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए. दादरी के बिसहडा गांव में जो हुआ वह अखिलेश सरकार की नाकामी थी.
पाठक ने कहा कि प्रदेश सरकार अब इस बात से बच नहीं सकती आने वाले दिनों में उसे जवाब देना ही पड़ेगा.
कैसे रिपोर्ट आई सामने?
इस रिपोर्ट से पहले यूपी सरकार ने अपनी रिपोर्ट में सैंपल को बकरी या बकरे का मांस बताया था. कोर्ट के आदेश पर नई रिपोर्ट पब्लिक की गई है. इस मामले में आठ आरोपियों पर फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई चल रही है. एक आरोपी के वकील रामशरण नागर ने कोर्ट से मथुरा लैब की रिपोर्ट मुहैया कराने की गुजारिश की थी. जिसके बाद कोर्ट ने नई रिपोर्ट मुहैया कराने के आदेश दिए थे. मथुरा लैब की ये रिपोर्ट अप्रैल, 2016 में फास्ट ट्रैक कोर्ट में भेजी गई थी. इस रिपोर्ट के आने के बाद सागर ने कहा कि अख़लाक़ के फॅमिली के खिलाफ भी केस दर्ज किया जाना चाहिए. इस पर अभियोजन पक्ष के वकील ने इसका विरोध किया.
इतना तो तय है कि आने वाले समय में यह मामला तूल पकड़ सकता है. यही वजह है कि पुलिस और प्रशासन अपनी तरफ से पूरी सतर्कता बारात रहे हैं.
क्या अखलाक का परिजनों पर हो सकती है कार्रवाई?
अब सवाल कानून का है. उत्तर-प्रदेश गोवध निवारण अधिनियम की धारा 2/3 के मुताबिक अब मृतक अखलाक और उसके घर में निवास करने वाले सभी सदस्य गोवध के आरोपी हैं.
इसके अलावा, गैंगस्टर कानून के नए संसोधन के मुताबिक गोवध निवारण अधिनियम के आरोपियों पर गैंगस्टर एक्ट लगना अनिवार्य है. चाहे गोवध की धाराओं में उनके केस में चार्जशीट अथवा फाइनल रिपोर्ट ही क्यों न लग गई हो.
गोवध निवारण अधिनियम के तहत अधिकतम सजा सात वर्ष है. जबकि गैंगस्टर कानून के नये संसोधन के मुताबिक इसकी अधिकतम सजा 10 वर्ष है. ऐसे में कानून के मुताबिक अखलाक के घर के हर उस व्यक्ति के ऊपर गोवध निवारण अधिनियम और गैंगस्टर एक्ट (संसोधित) की धाराएं लागू होती हैं.
बता दें कि बीफ के शक में पीट-पीटकर अखलाक की हत्या करने वाले 15 आरोपी आईपीसी की धारा 302 के तहत जेल में बंद हैं.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
अपराध मामलों के जानकार एडवोकेट रविन्द्र राजौरा ने बताया कि गौ-हत्या कानूनन अपराध है. अखलाक के घर में गौ-वध हुआ और पुलिस ने गौ-मांस की बरामदगी भी की. फोरेंसिक जांच रिपोर्ट से तय हुआ है कि बरामद मीट गौ-मांस था. इसलिए यूपी गौवध निवारण अधिनियम के तहत आरोपियों पर केस दर्ज होना चाहिए. इसके अलावा यह आपराधिक कृत्य गैंगस्टर एक्ट के नये संसोधन के दायरे में भी है. पुलिस केस दर्ज करके निष्पक्षता से इनके खिलाफ कार्रवाई करे.
जिला शासकीय अधिवक्ता मोहम्मद शारिक बताते है कि किसी को गैंगस्टर एक्ट (नये संसोधन) के दायरे में लाये जाने से पहले यह जरूरी है कि पुलिस इस बात की तस्दीक करे कि वह पहले से दो या दो से अधिक अपराधों में इतने ही लोगो के साथ अपराध में लिप्त है अथवा नही. इसके अलावा क्या गौ-मांस का व्यापारिक प्रयोग किया जा रहा था.
वहीँ बीजेपी के प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा कि सरकार ने तथ्यों को छुपाया है. यह रिपोर्ट पहले से ही कोर्ट में पेश थी. सरकार को पता था. अब अखिलेश सरकार को जवाब देना चाहिए कि वह क्या कार्रवाई करती है.
उन्होंने कहा इस रिपोर्ट को छुपाने की साजिश रची गई. रिपोर्ट प्रतिबंधित पशु का मांस था. और वह मांस प्रदेश में प्रतिबंधित है सरकार को अब अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए. दादरी के बिसहडा गांव में जो हुआ वह अखिलेश सरकार की नाकामी थी.
पाठक ने कहा कि प्रदेश सरकार अब इस बात से बच नहीं सकती आने वाले दिनों में उसे जवाब देना ही पड़ेगा.
कैसे रिपोर्ट आई सामने?
इस रिपोर्ट से पहले यूपी सरकार ने अपनी रिपोर्ट में सैंपल को बकरी या बकरे का मांस बताया था. कोर्ट के आदेश पर नई रिपोर्ट पब्लिक की गई है. इस मामले में आठ आरोपियों पर फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई चल रही है. एक आरोपी के वकील रामशरण नागर ने कोर्ट से मथुरा लैब की रिपोर्ट मुहैया कराने की गुजारिश की थी. जिसके बाद कोर्ट ने नई रिपोर्ट मुहैया कराने के आदेश दिए थे. मथुरा लैब की ये रिपोर्ट अप्रैल, 2016 में फास्ट ट्रैक कोर्ट में भेजी गई थी. इस रिपोर्ट के आने के बाद सागर ने कहा कि अख़लाक़ के फॅमिली के खिलाफ भी केस दर्ज किया जाना चाहिए. इस पर अभियोजन पक्ष के वकील ने इसका विरोध किया.
इतना तो तय है कि आने वाले समय में यह मामला तूल पकड़ सकता है. यही वजह है कि पुलिस और प्रशासन अपनी तरफ से पूरी सतर्कता बारात रहे हैं.
क्या अखलाक का परिजनों पर हो सकती है कार्रवाई?
अब सवाल कानून का है. उत्तर-प्रदेश गोवध निवारण अधिनियम की धारा 2/3 के मुताबिक अब मृतक अखलाक और उसके घर में निवास करने वाले सभी सदस्य गोवध के आरोपी हैं.
इसके अलावा, गैंगस्टर कानून के नए संसोधन के मुताबिक गोवध निवारण अधिनियम के आरोपियों पर गैंगस्टर एक्ट लगना अनिवार्य है. चाहे गोवध की धाराओं में उनके केस में चार्जशीट अथवा फाइनल रिपोर्ट ही क्यों न लग गई हो.
गोवध निवारण अधिनियम के तहत अधिकतम सजा सात वर्ष है. जबकि गैंगस्टर कानून के नये संसोधन के मुताबिक इसकी अधिकतम सजा 10 वर्ष है. ऐसे में कानून के मुताबिक अखलाक के घर के हर उस व्यक्ति के ऊपर गोवध निवारण अधिनियम और गैंगस्टर एक्ट (संसोधित) की धाराएं लागू होती हैं.
बता दें कि बीफ के शक में पीट-पीटकर अखलाक की हत्या करने वाले 15 आरोपी आईपीसी की धारा 302 के तहत जेल में बंद हैं.
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