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अमर सिंह की भी भूमिका रंग लाइ तो यूपी की सियासत में फिर दिखेगा “अजगर” !
लखनऊ. सपा के कद्दावर नेता शिवपाल सिंह यादव और राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया चौधरी अजीत सिंह की मुलाकात के बाद एक बार फिर पश्चिम यूपी की सियासत में समीकरणों के बदलने के आसार है. सूत्रों का कहना है कि इस बातचीत के बाद सोमवार को चौधरी अजीत सिंह समाजवादी पार्टी के जरिये राज्यसभा का नामांकन कर सकते हैं. ऐसे में समाजवादी पार्टी के किसी एक प्रत्याशी का पत्ता कट सकता है.
राजनितिक पंडितो का मानना है कि यदि यह समझौता हो जाता है तो पश्चिम यूपी में चौधरी चरण सिंह का बनाया “ अजगर” (अहीर, जाट, गुज्जर,राजपूत) फार्मूला फिर से अपना असर दिखायेगा. इन्ही जातीय समीकरणों के जरिये चौधरी चरण सिंह भारतीय राजनीती में अपनी कामयाब जगह बनायीं थी.
मुजफ्फरनगर दंगो के बाद से ही समाजवादी पार्टी पश्चिमी यूपी में बुरी तरह लडखडाई हुयी थी. इसका असर 2014 के लोकसभा चुनावो में साफ़ दिखाई दिया था.सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के बाद इस इलाके में भाजपा ने अपने कदम मजबूती से जमा लिए थे.
मुलायम और अजीत सिंह के बीच चौधरी चरण सिंह की सियासी विरासत को ले कर झगडा था. 1989 के विधान सभा चुनावों के बाद मुख्यमंत्री पद को ले कर लोकदल में संघर्ष हुआ था जिसमे मुलायम और अजीत आमने सामने थे. विधायको की वोटिंग में 2 मतों से मुलायम सिंह को जीत मिली. मुलायम सीएम तो बन गए मगर अजीत और उनके रास्ते अलग हो गए. तब से अजीत सिंह और मुलायम साथ नहीं हो सके और चरण सिंह का अजगर समीकरण भी टूट गया.
जानकारों के अनुसार इस बार की मुलाकात में सियासत के खिलाडी अमर सिंह की भी भूमिका है. सपा से अलग होने के बाद अमर सिंह और जयाप्रदा रालोद में शामिल हुए थे, दोनों ने लोकसभा का चुनाव भी लड़ा मगर हार गए.
राजनितिक पंडितो का मानना है कि यदि यह समझौता हो जाता है तो पश्चिम यूपी में चौधरी चरण सिंह का बनाया “ अजगर” (अहीर, जाट, गुज्जर,राजपूत) फार्मूला फिर से अपना असर दिखायेगा. इन्ही जातीय समीकरणों के जरिये चौधरी चरण सिंह भारतीय राजनीती में अपनी कामयाब जगह बनायीं थी.
मुजफ्फरनगर दंगो के बाद से ही समाजवादी पार्टी पश्चिमी यूपी में बुरी तरह लडखडाई हुयी थी. इसका असर 2014 के लोकसभा चुनावो में साफ़ दिखाई दिया था.सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के बाद इस इलाके में भाजपा ने अपने कदम मजबूती से जमा लिए थे.
मुलायम और अजीत सिंह के बीच चौधरी चरण सिंह की सियासी विरासत को ले कर झगडा था. 1989 के विधान सभा चुनावों के बाद मुख्यमंत्री पद को ले कर लोकदल में संघर्ष हुआ था जिसमे मुलायम और अजीत आमने सामने थे. विधायको की वोटिंग में 2 मतों से मुलायम सिंह को जीत मिली. मुलायम सीएम तो बन गए मगर अजीत और उनके रास्ते अलग हो गए. तब से अजीत सिंह और मुलायम साथ नहीं हो सके और चरण सिंह का अजगर समीकरण भी टूट गया.
जानकारों के अनुसार इस बार की मुलाकात में सियासत के खिलाडी अमर सिंह की भी भूमिका है. सपा से अलग होने के बाद अमर सिंह और जयाप्रदा रालोद में शामिल हुए थे, दोनों ने लोकसभा का चुनाव भी लड़ा मगर हार गए.
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