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उत्तर प्रदेश

बीजेपी में मुख्यमंत्री बनने वालों में अब एक नाम और


उत्तर प्रदेश में बीजेपी को 100 सीट मिलें या 200, इस सवाल को लेकर पार्टी में कोई परेशान नहीं है लेकिन पार्टी के दर्ज़न भर नेता मुख्यमंत्री बनने के लिए अभी से ही परेशान ज़रूर दिख रहे हैं. मुख्यमंत्री बनने के ‘मुंगेरी लाल के हसीन सपने’ देखने वालों में अब एक नाम और जुड़ गया है. यह नाम है यूपी के संगठन मंत्री सुनील बंसल का, जिन पर पार्टी को जिताने का जिम्मा है, पर पार्टी की जगह आजकल वह अपने ही प्रचार में जुटे हुए हैं. राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के करीबी, बंसल भी अब मुख्यमंत्री के पार्टी उम्मीदवार बनने के दावेदार माने जा रहे हैं.



 



मुख्यमंत्री का बीजेपी उम्मीदवार बनने की रेस में अभी तक जो नाम सामने आये हैं, उनमें वरुण गाँधी, योगी आदित्यनाथ, दिनेश शर्मा, महेश शर्मा, स्मृति ईरानी और राजनाथ सिंह प्रमुख हैं लेकिन इस फेहरिस्त में अब यूपी के संगठन मंत्री सुनील बंसल का नाम भी जुड़ गया है. बंसल अपनी फसेबुक के ज़रिये, बैनर पर अपनी अकेली तस्वीर लगाकर बीजेपी की तरफ से उम्मीदवारी के संकेत दे रहे हैं. मोदी की सहारनपुर रैली में भी बंसल ने अपनी तस्वीरों को लोगों के सामने रखा था.



राजस्थान के ABVP नेता से संघ के प्रचारक बने सुनील बंसल उन पूर्णकालिक संघ नेताओं में अपवाद स्वरुप हैं, जो सादगी की जगह चमक-दमक में ज्यादा रूचि रखते हैं. यूपी के जिस प्रदेश कार्यालय में संघ से आये सगठन मंत्री अब तक पंखे और खुली छत में सोते थे वहां बंसल ने लाखों रूपये की लागत से अपना अलग एयर कंडिशंड गेस्ट हाउस बनाया है. अमित शाह के करीबी होने की धौंस जमाकर बंसल ने बीजेपी के दिग्गज नेताओं के कद छांट दिए हैं. पूर्व पार्टी अध्यक्ष लक्ष्मीकान्त वाजपयी को हाशिये पर डालकर बंसल ने विनय कटियार से लेकर लालजी टंडन तक को उनकी हसियत बता दी है. योगी हों या साक्षी, उमा हों या कलराज, बंसल वर्तमान में पार्टी अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्या पर भी भारी हैं.

सूत्रों के मुताबिक, बंसल को यूपी में डेरा डाले अभी दो साल भी नहीं हुए हैं लेकिन उनकी ताकत आज की तारीख में मोदी और अमित शाह के बाद लखनऊ में सबसे ज्यादा आंकी जाती है. अगर बंसल किसी से घबराते हैं तो वो सिर्फ स्मृति ईरानी हैं. बीजेपी और संघ, दोनों के नेतृत्व का आशीर्वाद प्राप्त स्मृति ईरानी भी बंसल की तनिक भी परवाह नहीं करती हैं. लिहाजा बंसल से नाराज़ पार्टी एक बड़ा तबका मजबूरी में स्मृति ईरानी की ओर झुक गया है. सूत्रों के मुताबिक बीजेपी के बंसलीकरण के चलते अब यूपी में पार्टी के कुछ बड़े नेता स्मृति ईरानी को ही तरजीह दे रहे हैं. उनका मानना है कि बीजेपी जिस शिथिलता के दौर से गुजर रही है, उस दौर में स्मृति ईरानी जैसी धाकड़ और हाजिरजवाब नेता ही मायावती को चुनौती दे सकती हैं. बहरहाल, बीजेपी नेतृत्व अगर 15 साल बाद देश का सबसे बड़ा राज्य जीतना चाहता है तो उसे सबसे पहले यूपी में पार्टी को अंतर कलह से बचाना होगा.


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