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उत्तर प्रदेश

वीर सावरकर के विचारों पर चलकर आने वाली पीढ़ी वसुधैव कुटुम्बकम् को सार्थक कर सकती है

लखनऊ. उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने आज वीर सावरकर मंच एवं अखिल भारतीय अधिकार संगठन द्वारा स्वातंत्रयवीर सावरकर की 133वीं जयंती के अवसर पर उत्तर प्रदेश प्रेस क्लब लखनऊ में आयोजित ‘वीर सावरकर और समरसता‘ विषयक संगोष्ठी में उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने कहा कि वे स्वयं को सौभाग्यशाली समझते हैं कि उन्होंने वीर सावरकर जी को देखा और सुना भी है। 1952 में अपने छात्र जीवन के समय उन्होंने सावरकर जी को पहली बार सुना था। वीर सावरकर प्रतिभा सम्पन्न वक्ता थे तथा शब्दों के प्रभु एवं निर्माणकर्ता थे। उनकी भाषण कला, शब्दों से दूसरों को जोड़ने की विशेषता वास्तव में अद्भुत थी। वीर सावरकर के विचार अमर हैं। उन्होंने कहा कि उनके विचारों पर चलकर आने वाली पीढ़ी वसुधैव कुटुम्बकम् को सार्थक कर सकती है।

श्री नाईक ने कहा कि महापौर एवं दिनांक शब्द वीर सावरकर की देन है। उनका लिखा साहित्य पर प्रकाशित होने से पूर्व ही पाबंदी लगा दी गयी थी। वीर सावरकर ने 1857 के बगावत को देश का पहला स्वातंत्रय समर बताया था तथा उसे सबूत के साथ प्रस्तुत भी किया था। उन्होंने कहा कि वीर सावरकर को देश की आजादी के लिए संघर्ष करते हुए 11 साल अंडमान की सेल्युलर जेल में कड़ी यातनाएं सहनी पड़ी। उन्होंने कहा कि उनके जीवन में वीर सावरकर का विशेष महत्व है।

राज्यपाल ने बताया कि जब वे पेट्रोलियम मंत्री थे तो उन्होंने वीर सावरकर का अंडमान की जेल में एक स्मारक बनवाया था तथा अमर ज्योति की स्थापना भी की थी। वीर सावरकर के नाम की पट्टिका हटाने पर उन्होंने दुःख व्यक्त करते हुए कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिलकर वीर सावरकर के नाम पर एक और स्मृतिका निर्मित कराने की बात की थी जिस पर उन्होंने अपनी सहमति व्यक्त की थी। स्मृतिका का भूमि पूजन पिछले वर्ष स्वयं उन्होंने किया था। उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि अब वह स्मृतिका बनकर तैयार हो गयी तथा आज अंडमान में उसका विधिवत उद्घाटन भी किया गया है।

कार्यक्रम में सांसद सुश्री अंजु बाला, पूर्व सांसद लालजी टण्डन सहित आयोजक आलोक चान्टिया व अजय दत्त शर्मा ने भी अपने विचार रखे।
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