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राज्यसभा और विधान परिषद चुनाव के मद्देनजर छोटे दलों की बढ़ी खुशामद, अधिसूचना कल
लखनऊ: उत्तर प्रदेश राज्यसभा की 11 और राज्य विधान परिषद की 13 सीटों के लिए होने वाले चुनाव में छोटे दलों की महत्वपूर्ण भूमिका के मद्देनजर उनकी खुशामद बढ़ गई है। चुनाव की अधिसूचना कल जारी होने के साथ नामांकन प्रक्रिया शुरु हो जाएगी। नामांकन 31 मई तक किए जा सकेंगे। अगले दिन नामांकन पत्रों की जांच होगी। 3 जून को नाम वापस लिए जा सकेंगे। चुनाव के पीठासीन अधिकारी और विधानसभा के प्रमुख सचिव प्रदीप दूबे ने बताया कि राज्यसभा के उम्मीदवारों को जीत के लिए प्रथम वरीयता को 34 और विधान परिषद प्रत्याशियों को 29 मत पाना अनिवार्य होगा। समाजवादी पार्टी ने राज्यसभा के लिए 7 और विधान परिषद के लिए 8 उम्मीदवारों की घोषणा की है। जबकि बहुजन समाज पार्टी ने राज्यसभा के लिए 2 और विधान परिषद के 3 उमीदवार घोषित किए हैं।
इस चुनाव में विधानसभा के सदस्य मतदाता होंगे। विधानसभा के कुल सदस्यों 404 में से 403 वोट दे सकेंगे। मनोनीत एक सदस्य को मतदान का अधिकार नहीं है। इन दोनों सीटों को छोड़ विधानसभा में सपा के 229,बहुजन समाज पार्टी(बसपा) के 80, भारतीय जनता पार्टी(भाजपा)के 41, कांग्रेस के 29, राष्ट्रीय लोकदल(रालोद) के 8, पीस पार्टी 04, कौमी एकता दल 02, नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी 01, अपना दल 01, इत्तेहादे मिल्लत कौंसिल 01, तृणमूल कांग्रेस 01 और 06 निर्दलीय सदस्य हैं। राज्यसभा के लिए 11 जून और विधान परिषद के लिए 10 जून को मतदान होगा। सपा को सभी 8उम्मीदवारों को विधान परिषद के चुनाव में जिताने के लिए 232 मतदाताओं की जरुरत होगी जबकि सपा सदस्यों की संया 229 है। ऐसे में 8वें उम्मीदवार को जिताने के लिए 3 अतिरिक्त वोट की और जरुरत होगी। इन 3 वोटों की आवश्यकता जोड़तोड़ से ही पूरी होगी। दूसरे दलों या निर्दलीय विधायकों की मदद लेनी ही पड़ेगी।
राज्यसभा चुनाव में सपा अपने 6 उम्मीदवारों को आसानी से जिता लेगी लेकिन 7वें उम्मीदवार के लिए उसे 09 अतिरिक्त मतों की जरुरत पड़ेगी। अब देखना है कि सपा अपने 7वें उम्मीदवार को जिताने के लिए 9 मतों की जरुरत कैसे पूरी करती है। इसके लिए उसे छोटे दलों या निर्दलीय विधायकों की शरण में जाना ही पड़ेगा। राज्य विधानसभा में अपने 80 सदस्यों के बलबूते बसपा राज्यसभा और विधान परिषद के लिए 2-2 उम्मीदवार जिताने में सक्षम है। राज्यसभा उम्मीदवार को वोट देने के बाद भी बसपा के 12 मत बच जाएंगे। इनका उपयोग बसपा किस तरह करती है। यह लाख टके का सवाल है। 2 विधान परिषद उम्मीदवारों को मत दिलवाने के बाद उसके 22 विधायकों का मत बचेगा। तीसरे उम्मीदवार की जीत के लिए उसे 7 मतों की और जरूरत होगी। इन्हें अन्य दलों के या निर्दलीय विधायकों से जोड़तोड़ के बाद ही प्राप्त हो सकेगा। कांग्रेस अपने बलबूते विधान परिषद की एक सीट तो जीत सकती है लेकिन राज्यसभा में यदि वह उम्मीदवार उतारती है तो उसे 5 वोटों की अतिरिक्त व्यवस्था करनी पड़ेगी। राज्यसभा के लिए उम्मीदवार नहीं खड़ा किए जानेे की दशा में कांग्रेस के सभी 29 विधायकों का वोट किसी अन्य दल के प्रत्याशी के पक्ष में जाएगा।
इस चुनाव में एक-एक वोट का महत्व होता है, इसलिए छोटे दलों और निर्दलीय विधायकों की पूछ काफी बढ़ जाती है। इस चुनाव में मतों की वरीयता के आधार पर नतीजे घोषित किए जाते हैं। प्रथम वरीयता में जीतने वाले उम्मीदवार को आवश्यकता पर मत नहीं मिलने पर दूसरी वरीयता के मत गिने जाते हैं और उस आधार पर नतीजों का एलान किया जाता है। राजनीतिक दल इस चुनाव में प्रत्येक विधायक का मत उम्मीदवार के लिए निश्चित करती है। किस विधायक (मतदाता) को किस उम्मीदवार को अपना वोट देना है, यह पहले ही बता दिया जाता है। समाजवादी पार्टी ने राज्यसभा के लिए अमर सिंह, बेनी प्रसाद वर्मा, संजय सेठ, सुखराम सिंह यादव, रेवती रमण सिंह, विशम्भर निषाद और अरविंद प्रताप सिंह को उम्मीदवार बनाया है। जबकि विधानपरिषद के सपा प्रत्याशियों में बलराम यादव, बुक्कल नवाब, शतरुद्र प्रकाश, यशवंत सिंह, रामसुन्दर दास निषाद, जगजीवन प्रसाद, कमलेश पाठक और रणविजय सिंह का नाम शामिल है। बहुजन समाज पार्टी ने सतीश मिश्रा और अशोक सिद्धार्थ को राज्यसभा के लिए जबकि अतर सिंह राव, दिनेश चन्द्रा और सुरेश कश्यप को विधानपरिषद का उम्मीदवार घोषित किया है।
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