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हाशिमपुरा कांड : 29 साल से चल रही इंसाफ की लड़ाई, दोनों समुदाय के लोग हैं दुखी
1987 में हुए हाशिमपुरा कांड को 22 मई को 29 साल हो जाएंगे। इस कांड से जुड़े शहर के हर व्यक्ति का दर्द हरा है। दर्द इधर है तो गम उधर भी। लोग दुखी हैं अपनों के खोने पर। बस उम्मीद बाकी है। इंसाफ मिलेगा।
‘लम्हों ने खता की, सदियों ने सजा पाई’, हाशिमपुरा कांड को लेकर यह बात सटीक साबित होती है। 29 साल पहले 22 मई 1987 को हुए हाशिमपुरा कांड ने देश की राजनीति को हिलाकर रख दिया था। लोग बताते हैं कि अप्रैल 1987 में दंगा हुआ और उसे काबू भी कर लिया गया। 18 मई को फिर दंगा भड़का। हाशिमपुरा और आसपास के इलाके शांत थे। इसी दौरान एक युवक की हत्या से शहर का माहौल बिगड़ गया। बाद में जो हुआ उसका दर्द अब तक हरा है।
किसी का भाई तो किसी ने पति को खोया। किसी ने अपने मां-बाप को खो दिया। अब मरहम के लिए हाईकोर्ट में लड़ाई लड़ी जा रही है। एक मामला दिल्ली हाईकोर्ट तो एक मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में विचाराधीन है। हालांकि दिल्ली की विशेष अदालत ने हाशिमपुरा कांड के आरोपी पीएसी जवानों, अधिकारियों को बरी कर दिया। अब यह मामला दिल्ली हाईकोर्ट में विचाराधीन है।
ज्ञान प्रकाश समिति की रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग
हाशिमपुरा कांड के प्रभावित लोगों का कहना है कि उन्हें कोर्ट और सरकार पर भरोसा है। बस सरकार ज्ञान प्रकाश समिति की रिपोर्ट को सार्वजनिक कर दे तो बहुत कुछ साफ हो जाएगा। पीड़ित जुल्फिकार नासिर का कहना है कि उन्हें इंसाफ चाहिए। प्रदेश सरकार और दिल्ली हाईकोर्ट से इंसाफ की उम्मीद है। सवा साल पहले विशेष अदालत ने तो साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया। अब तो हाईकोर्ट से ही इंसाफ की उम्मीद है।
मेरा तो सब कुछ चला गया : डा. अलका
1987 के दंगे ने बहुत लोगों को दर्द दिया। एक दर्द मेडिकल कालेज की नेत्र सर्जन डा. अलका गुप्ता का भी है। उनके पति डा. प्रभात गुप्ता को दंगाइयों के क्रूर हाथों ने छीन लिया। ‘हिन्दुस्तान’ ने जब डा. अलका से बात की तो उन्होंने बस इतना ही कहा ‘क्या जानना चाहते हैं। मेरा तो सब कुछ चला गया’। फिर चुप्पी साध ली।
‘लम्हों ने खता की, सदियों ने सजा पाई’, हाशिमपुरा कांड को लेकर यह बात सटीक साबित होती है। 29 साल पहले 22 मई 1987 को हुए हाशिमपुरा कांड ने देश की राजनीति को हिलाकर रख दिया था। लोग बताते हैं कि अप्रैल 1987 में दंगा हुआ और उसे काबू भी कर लिया गया। 18 मई को फिर दंगा भड़का। हाशिमपुरा और आसपास के इलाके शांत थे। इसी दौरान एक युवक की हत्या से शहर का माहौल बिगड़ गया। बाद में जो हुआ उसका दर्द अब तक हरा है।
किसी का भाई तो किसी ने पति को खोया। किसी ने अपने मां-बाप को खो दिया। अब मरहम के लिए हाईकोर्ट में लड़ाई लड़ी जा रही है। एक मामला दिल्ली हाईकोर्ट तो एक मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में विचाराधीन है। हालांकि दिल्ली की विशेष अदालत ने हाशिमपुरा कांड के आरोपी पीएसी जवानों, अधिकारियों को बरी कर दिया। अब यह मामला दिल्ली हाईकोर्ट में विचाराधीन है।
ज्ञान प्रकाश समिति की रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग
हाशिमपुरा कांड के प्रभावित लोगों का कहना है कि उन्हें कोर्ट और सरकार पर भरोसा है। बस सरकार ज्ञान प्रकाश समिति की रिपोर्ट को सार्वजनिक कर दे तो बहुत कुछ साफ हो जाएगा। पीड़ित जुल्फिकार नासिर का कहना है कि उन्हें इंसाफ चाहिए। प्रदेश सरकार और दिल्ली हाईकोर्ट से इंसाफ की उम्मीद है। सवा साल पहले विशेष अदालत ने तो साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया। अब तो हाईकोर्ट से ही इंसाफ की उम्मीद है।
मेरा तो सब कुछ चला गया : डा. अलका
1987 के दंगे ने बहुत लोगों को दर्द दिया। एक दर्द मेडिकल कालेज की नेत्र सर्जन डा. अलका गुप्ता का भी है। उनके पति डा. प्रभात गुप्ता को दंगाइयों के क्रूर हाथों ने छीन लिया। ‘हिन्दुस्तान’ ने जब डा. अलका से बात की तो उन्होंने बस इतना ही कहा ‘क्या जानना चाहते हैं। मेरा तो सब कुछ चला गया’। फिर चुप्पी साध ली।
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