जारी हैं बीएसपी के 'बुरे दिन'
लखनऊ : यूपी में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में सत्ता का ख्वाब देख रही बीएसपी के लिए यूपी के बाहर बुरे दिन अभी जारी हैं। राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा गंवाने की कगार पर पहुंची बीएसपी के वोट शेयर में गुरुवार को आए नतीजों में भी काफी गिरावट देखने को मिली। पार्टी को नोटा से भी कम वोट मिले हैं। इससे पार्टी के दूसरे राज्यों में विस्तार के अभियान को एक बार फिर झटका लगा है।
बीएसपी ने केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में अपने उम्मीदवार उतारे थे। केरल में पार्टी 74 सीट पर चुनाव लड़ी थी। हालांकि उसका वोट शेयर कम होने की वजह कम सीटों पर हिस्सेदारी भी है। 2011 में यहां बीएसपी ने 122 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। हालांकि तमिलनाडु में 200 उम्मीदवार उतारने के बाद भी पार्टी के कुल वोटों का आंकड़ा एक लाख पार नहीं कर सका। बीएसपी को महज 97,823 वोट नसीब हुए। वहीं, पश्चिम बंगाल ने भी माया की उम्मीदों को झटका दिया है। 294 के मुकाबले 160 सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद पार्टी के खाते में 3,00,294 वोट ही आ सके। यह कुल वोटों का महज 0.6 फीसदी है। चुनाव आयोग पहले ही बीएसपी को राष्ट्रीय दर्जा खत्म करने के लिए नोटिस जारी कर जवाब मांग चुका है। अब आखिरी उम्मीद अगले साल होने वाला यूपी विधानसभा चुनाव से है। यहां के नतीजे यूपी और बाहर दोनों ही जगह बीएसपी की हैसियत तय करने में अहम साबित होंगे।
लोकसभा के बाद भी नहीं बदला वक्त
2014 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी का खाता तक नहीं खुला था। राष्ट्रीय दर्जे पर खतरा मंडराना तब से ही शुरू हुआ। इसके बाद यूपी से बाहर बीएसपी ने जितने चुनाव लड़े, वहां उसकी दुर्गति ही हुई। लोकसभा के बाद हरियाणा और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव हुए थे। बीएसपी की उम्मीदें यहां भी परवान नहीं चढ़ीं। हरियाणा में 2009 में बीएसपी को जहां 6.73 फीसदी वोट मिले, वहीं 2014 में यह घटकर 4.4 फीसदी पर पहुंच गए। पार्टी को महज एक सीट पर जीत मिली। महाराष्ट्र में भी पार्टी के वोट 2.35 फीसदी से घटकर 2.2 फीसदी रह गए। 2015 में हुए दिल्ली के विधानसभा चुनाव में भी बीएसपी ने सभी 70 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए थे। लेकिन हाथी यहां भी नहीं दौड़ा। यहां बीएसपी के हिस्से महज 1.6 फीसदी वोट आए। इसके बाद पार्टी को कुछ उम्मीद बिहार से थी। यहां जातीय गणित भी बीएसपी को सुहा सकती थी, लेकिन दुर्दिन जारी रहे। सभी 243 सीटों पर लड़ने के बाद भी बीएसपी महज दो फीसदी ही वोट बटोर सकी।
बीएसपी ने केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में अपने उम्मीदवार उतारे थे। केरल में पार्टी 74 सीट पर चुनाव लड़ी थी। हालांकि उसका वोट शेयर कम होने की वजह कम सीटों पर हिस्सेदारी भी है। 2011 में यहां बीएसपी ने 122 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। हालांकि तमिलनाडु में 200 उम्मीदवार उतारने के बाद भी पार्टी के कुल वोटों का आंकड़ा एक लाख पार नहीं कर सका। बीएसपी को महज 97,823 वोट नसीब हुए। वहीं, पश्चिम बंगाल ने भी माया की उम्मीदों को झटका दिया है। 294 के मुकाबले 160 सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद पार्टी के खाते में 3,00,294 वोट ही आ सके। यह कुल वोटों का महज 0.6 फीसदी है। चुनाव आयोग पहले ही बीएसपी को राष्ट्रीय दर्जा खत्म करने के लिए नोटिस जारी कर जवाब मांग चुका है। अब आखिरी उम्मीद अगले साल होने वाला यूपी विधानसभा चुनाव से है। यहां के नतीजे यूपी और बाहर दोनों ही जगह बीएसपी की हैसियत तय करने में अहम साबित होंगे।
लोकसभा के बाद भी नहीं बदला वक्त
2014 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी का खाता तक नहीं खुला था। राष्ट्रीय दर्जे पर खतरा मंडराना तब से ही शुरू हुआ। इसके बाद यूपी से बाहर बीएसपी ने जितने चुनाव लड़े, वहां उसकी दुर्गति ही हुई। लोकसभा के बाद हरियाणा और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव हुए थे। बीएसपी की उम्मीदें यहां भी परवान नहीं चढ़ीं। हरियाणा में 2009 में बीएसपी को जहां 6.73 फीसदी वोट मिले, वहीं 2014 में यह घटकर 4.4 फीसदी पर पहुंच गए। पार्टी को महज एक सीट पर जीत मिली। महाराष्ट्र में भी पार्टी के वोट 2.35 फीसदी से घटकर 2.2 फीसदी रह गए। 2015 में हुए दिल्ली के विधानसभा चुनाव में भी बीएसपी ने सभी 70 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए थे। लेकिन हाथी यहां भी नहीं दौड़ा। यहां बीएसपी के हिस्से महज 1.6 फीसदी वोट आए। इसके बाद पार्टी को कुछ उम्मीद बिहार से थी। यहां जातीय गणित भी बीएसपी को सुहा सकती थी, लेकिन दुर्दिन जारी रहे। सभी 243 सीटों पर लड़ने के बाद भी बीएसपी महज दो फीसदी ही वोट बटोर सकी।
बीएसपी का वोट शेयर (प्रतिशत में)
राज्य 2011 2016 नोटा (2016)
केरल 0.6 0.2 0.5
तमिलनाडु 0.54 0.2 1.3
प. बंगाल 0.61 0.5 1.5
Next Story