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उत्तर प्रदेश

संस्कृति को संरक्षित करने का माध्यम है संग्रहालय : डॉ0 प्रज्ञा मिश्रा





अयोध्या। (वासुदेव यादव) हमारी संस्कृति को संरक्षित करने का एक मात्र माध्यम है संग्रहालय। संस्कृति को जीवनी देने वाली शक्ति की प्रतिष्ठा मनुष्य के ज्ञान में है। जिसके अभाव में संस्कृति अधूरी रह जाती है। यह विचार डॉ0 प्रज्ञा मिश्रा ने विश्व संग्रहालय दिवस के अवसर पर अन्तर्राष्ट्रीय रामकथा संग्रहालय अयोध्या द्वारा ‘‘संग्रहालय : संस्कृति का संरक्षक’’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किये। डॉ0 मिश्रा ने कहा कि संस्कृति एक युग के बाद दूसरे युग में उसी दशा में जीवित रहती है, जब मुनष्य के ज्ञान को लिपि के माध्यम से धरोहरो के माध्यम से संरक्षित कर हस्तान्तरित किया जाय। इन्हीं को संग्रहीत करने के लिए संग्रहालय की आवश्यकता होती है। संस्कृति का अर्थ है वह कार्य जो भली भांति किया गया हो, विभूषित और अलंकृत हो। इस दृष्टि से संस्कृति किसी के परिष्कृत या सुधरे हुए स्वरूप को द्योतित करती है। भारतीय संस्कृति वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना को लेकर चलती है। भारत में सन् 1861 ई0 में पुरातत्व विभाग की स्थापना हुई। सन् 1814 ई0 में एक भारतीय संग्रहालय की स्थापना कलकत्ता में हुई। 15 अगस्त,1949 ई0 में व्हीलर के प्रयासों के द्वारा एक राष्ट्रीय संग्रहालय की स्थापना दिल्ली में हुई इसके साथ ही देश में अनेको संग्रहालय की स्थापना हुई।
डॉ0 प्रज्ञा मिश्रा ने अपने सम्बोधन में विभिन्न संग्रहालयों की अति विशिष्ट प्रतिमाओं का भी उल्लेख किया। जिसमें मथुरा संग्रहालय की चतुमुर्खी जैन प्रतिमा, सूर्य की प्रतिमा, बलराम की मूर्ति, लाहौर संग्रहालय की कुवेर की प्रतिमा, लखनऊ संग्रहालय में महोबा से प्राप्त वोधिसत्व की मूर्ति, शुंग कालीन मूर्तियां, कोलकाता संग्रहालय की मरीची प्रतिमा तथा देश के अन्य विभिन्न संग्रहालयों के पुरावशेष पर प्रकाश डालते हुए उनकी व्याख्या प्रस्तुत की।
इसके पूर्व कार्यक्रम का शुभारम्भ मुख्य वक्ता के साथ मुख्य अतिथि डॉ0 राजीव रंजन उपाध्याय तथा विशिष्ट अतिथि शक्ति सिंह द्वारा मॉं सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्जवलित कर किया गया। अन्तर्राष्ट्रीय रामकथा संग्रहालय के उपनिदेशक, योगेश कुमार द्वारा अतिथियों का माल्यार्पण कर स्वागत् किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता फैजाबाद जिला कारागार के जेल अधीक्षक, राधा कृष्ण मिश्र द्वारा की गयी। अपने सम्बोधन में राधा कृष्ण मिश्र ने कहा कि किसी न किसी रूप में हमारा इतिहास ही संग्रहालय का विषय है चाहे अपने पिताजी की फोटो ही क्यों न हो। उन्होने यूनानी सभ्यता, यूरोप के मानवीय जीवन, अफ्रीकी संस्कृति पर भी प्रकाश डाला। उन्होने यह भी कहा कि आज के समाज का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि विवेकानन्दों का प्रादुर्भाव नही हो रहा है। 1857 की क्रान्ति को उन्होने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहा जो कि अंग्रेजो के विरूद्ध था बड़े ही संवेदना के साथ अपने विचार व्यक्त करते हुए उन्होने कहा इतिहास के कुछ पहलू हमारी आत्मा से जुडे़ है। आज हमे पुरातात्विक साक्ष्य नही भारतीय दृष्टिकोण अपनाना होगा।

मुख्य अतिथि डॉ0 राजीव रंजन उपाध्याय ने गोष्ठी में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि ऐतिहासिक माप दण्ड समय के अनुसार परिवर्तित होते रहते है आज हमारा दायित्व है उसे पुनर्जीवित करने का है। उन्होने कहा कि वाल्मीकि के राम मानव है। 1300 से 1400 ई0पू0 तक राम को देवत्व का रूप प्राप्त हो चुका था। उन्होने यह भी कहा प्राचीन ऐतिहासिक सन्दर्भो में राम की मूर्तियां उत्तर भारत से अधिक दक्षिण भारत में मिलती है। डॉ0 राजीव रंजन उपाध्याय ने अपने विचार व्यक्त करते हुए विश्व के विभिन्न देशों के अपने प्रवास के समय के अनेक संग्रहालयों में किये गये भ्रमण के संस्मरण पर भी प्रकाश डाला तथा यह अपेक्षा भी व्यक्त की आज हमे विदेशी संग्रहालयों की आधुनिक तकनीक को अपनाने की आवश्यक्ता है जिसके वगैर अयोध्या में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के संग्रहालय की परिकल्पना नही की जा सकती है। डॉ0 उपाध्याय ने यूनान के देवता अपोलो का वर्णन किया तथा इजराइल के अभिलेखों का भी वर्णन किया।
स्ांगोष्ठी में राजा मोहन गर्ल्स डिग्री कालेज की प्राचीन इतिहास विभाग की छात्रा कु0 मिथलेश ने भी विश्व संग्रहालय दिवस पर अपने पेपर पढ़े। इसके पूर्व वीथिका सहायक मानस प्रसाद तिवारी द्वारा संग्रहालय दिवस के सन्दर्भ में अपने विचार व्यक्त करते हुए अन्तर्राष्ट्रीय रामकथा संग्रहालय की स्थापना, संकलन, प्रदर्शन, वीथिका गठन, शैक्षिक कार्यक्रमों और भावी योजनाओं पर प्रकाश डाला तथा विषय परिवर्तन करते हुए कार्यक्रम का संचालन किया गया। उपनिदेशक, योगेश कुमार द्वारा अन्त में सभी को धन्यवाद ज्ञापित किया गया। लेखाकार मनीराम तथा अन्य संग्रहालय कर्मियों रामदयाल, शिवदर्शन, हरिगोविन्द, मुन्नालाल यादव, शिवकुमार आदि ने सहयोग प्रदान किया। इस अवसर पर डॉ0 जनार्दन उपाध्याय, डॉ0 सत्य प्रकाश त्रिपाठी, आचार्य रामकृष्ण शास्त्री डॉ0 ललित मोहन पाण्डेय, डॉ0 सुधाकर पाण्डेय, डॉ0 राममूर्ति चौधरी, डॉ0 विन्ध्यमणि त्रिपाठी, शक्ति सिंह, उषाकिरण शुक्ला, प्रताप नारायण शुक्ल डॉ0 मीनु दुबे, शिवाकान्त तिवारी, सौमित्र मिश्रा, राजेन्द्र कुमार मिश्र, उत्तम कुमार पाण्डेय, अन्जनी कुमार सिन्हा, वांके विहारी हर्ष,डॉ0 ओम श्रीवास्तव, संजयकृष्ण श्रीवास्तव, एस0एन0बागी, जयप्रकाश तिवारी, सुरेश पाण्डेय आदि अनेक अयोध्या-फैजाबाद के गणमान्य बुद्धजीवी तथा संग्रहालय की शैक्षिक कार्यक्रमों से जुडे़ छात्र छात्राओं की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।
संस्कृति को संरक्षित करने का माध्यम है संग्रहालय : डॉ0 प्रज्ञा मिश्रा
वासुदेव यादव

अयोध्या। हमारी संस्कृति को संरक्षित करने का एक मात्र माध्यम है संग्रहालय। संस्कृति को जीवनी देने वाली शक्ति की प्रतिष्ठा मनुष्य के ज्ञान में है। जिसके अभाव में संस्कृति अधूरी रह जाती है। यह विचार डॉ0 प्रज्ञा मिश्रा ने विश्व संग्रहालय दिवस के अवसर पर अन्तर्राष्ट्रीय रामकथा संग्रहालय अयोध्या द्वारा ‘‘संग्रहालय : संस्कृति का संरक्षक’’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किये। डॉ0 मिश्रा ने कहा कि संस्कृति एक युग के बाद दूसरे युग में उसी दशा में जीवित रहती है, जब मुनष्य के ज्ञान को लिपि के माध्यम से धरोहरो के माध्यम से संरक्षित कर हस्तान्तरित किया जाय। इन्हीं को संग्रहीत करने के लिए संग्रहालय की आवश्यकता होती है। संस्कृति का अर्थ है वह कार्य जो भली भांति किया गया हो, विभूषित और अलंकृत हो। इस दृष्टि से संस्कृति किसी के परिष्कृत या सुधरे हुए स्वरूप को द्योतित करती है। भारतीय संस्कृति वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना को लेकर चलती है। भारत में सन् 1861 ई0 में पुरातत्व विभाग की स्थापना हुई। सन् 1814 ई0 में एक भारतीय संग्रहालय की स्थापना कलकत्ता में हुई। 15 अगस्त,1949 ई0 में व्हीलर के प्रयासों के द्वारा एक राष्ट्रीय संग्रहालय की स्थापना दिल्ली में हुई इसके साथ ही देश में अनेको संग्रहालय की स्थापना हुई।
डॉ0 प्रज्ञा मिश्रा ने अपने सम्बोधन में विभिन्न संग्रहालयों की अति विशिष्ट प्रतिमाओं का भी उल्लेख किया। जिसमें मथुरा संग्रहालय की चतुमुर्खी जैन प्रतिमा, सूर्य की प्रतिमा, बलराम की मूर्ति, लाहौर संग्रहालय की कुवेर की प्रतिमा, लखनऊ संग्रहालय में महोबा से प्राप्त वोधिसत्व की मूर्ति, शुंग कालीन मूर्तियां, कोलकाता संग्रहालय की मरीची प्रतिमा तथा देश के अन्य विभिन्न संग्रहालयों के पुरावशेष पर प्रकाश डालते हुए उनकी व्याख्या प्रस्तुत की।
इसके पूर्व कार्यक्रम का शुभारम्भ मुख्य वक्ता के साथ मुख्य अतिथि डॉ0 राजीव रंजन उपाध्याय तथा विशिष्ट अतिथि शक्ति सिंह द्वारा मॉं सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्जवलित कर किया गया। अन्तर्राष्ट्रीय रामकथा संग्रहालय के उपनिदेशक, योगेश कुमार द्वारा अतिथियों का माल्यार्पण कर स्वागत् किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता फैजाबाद जिला कारागार के जेल अधीक्षक, राधा कृष्ण मिश्र द्वारा की गयी। अपने सम्बोधन में राधा कृष्ण मिश्र ने कहा कि किसी न किसी रूप में हमारा इतिहास ही संग्रहालय का विषय है चाहे अपने पिताजी की फोटो ही क्यों न हो। उन्होने यूनानी सभ्यता, यूरोप के मानवीय जीवन, अफ्रीकी संस्कृति पर भी प्रकाश डाला। उन्होने यह भी कहा कि आज के समाज का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि विवेकानन्दों का प्रादुर्भाव नही हो रहा है। 1857 की क्रान्ति को उन्होने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहा जो कि अंग्रेजो के विरूद्ध था बड़े ही संवेदना के साथ अपने विचार व्यक्त करते हुए उन्होने कहा इतिहास के कुछ पहलू हमारी आत्मा से जुडे़ है। आज हमे पुरातात्विक साक्ष्य नही भारतीय दृष्टिकोण अपनाना होगा।

मुख्य अतिथि डॉ0 राजीव रंजन उपाध्याय ने गोष्ठी में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि ऐतिहासिक माप दण्ड समय के अनुसार परिवर्तित होते रहते है आज हमारा दायित्व है उसे पुनर्जीवित करने का है। उन्होने कहा कि वाल्मीकि के राम मानव है। 1300 से 1400 ई0पू0 तक राम को देवत्व का रूप प्राप्त हो चुका था। उन्होने यह भी कहा प्राचीन ऐतिहासिक सन्दर्भो में राम की मूर्तियां उत्तर भारत से अधिक दक्षिण भारत में मिलती है। डॉ0 राजीव रंजन उपाध्याय ने अपने विचार व्यक्त करते हुए विश्व के विभिन्न देशों के अपने प्रवास के समय के अनेक संग्रहालयों में किये गये भ्रमण के संस्मरण पर भी प्रकाश डाला तथा यह अपेक्षा भी व्यक्त की आज हमे विदेशी संग्रहालयों की आधुनिक तकनीक को अपनाने की आवश्यक्ता है जिसके वगैर अयोध्या में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के संग्रहालय की परिकल्पना नही की जा सकती है। डॉ0 उपाध्याय ने यूनान के देवता अपोलो का वर्णन किया तथा इजराइल के अभिलेखों का भी वर्णन किया।
स्ांगोष्ठी में राजा मोहन गर्ल्स डिग्री कालेज की प्राचीन इतिहास विभाग की छात्रा कु0 मिथलेश ने भी विश्व संग्रहालय दिवस पर अपने पेपर पढ़े। इसके पूर्व वीथिका सहायक मानस प्रसाद तिवारी द्वारा संग्रहालय दिवस के सन्दर्भ में अपने विचार व्यक्त करते हुए अन्तर्राष्ट्रीय रामकथा संग्रहालय की स्थापना, संकलन, प्रदर्शन, वीथिका गठन, शैक्षिक कार्यक्रमों और भावी योजनाओं पर प्रकाश डाला तथा विषय परिवर्तन करते हुए कार्यक्रम का संचालन किया गया। उपनिदेशक, योगेश कुमार द्वारा अन्त में सभी को धन्यवाद ज्ञापित किया गया। लेखाकार मनीराम तथा अन्य संग्रहालय कर्मियों रामदयाल, शिवदर्शन, हरिगोविन्द, मुन्नालाल यादव, शिवकुमार आदि ने सहयोग प्रदान किया। इस अवसर पर डॉ0 जनार्दन उपाध्याय, डॉ0 सत्य प्रकाश त्रिपाठी, आचार्य रामकृष्ण शास्त्री डॉ0 ललित मोहन पाण्डेय, डॉ0 सुधाकर पाण्डेय, डॉ0 राममूर्ति चौधरी, डॉ0 विन्ध्यमणि त्रिपाठी, शक्ति सिंह, उषाकिरण शुक्ला, प्रताप नारायण शुक्ल डॉ0 मीनु दुबे, शिवाकान्त तिवारी, सौमित्र मिश्रा, राजेन्द्र कुमार मिश्र, उत्तम कुमार पाण्डेय, अन्जनी कुमार सिन्हा, वांके विहारी हर्ष,डॉ0 ओम श्रीवास्तव, संजयकृष्ण श्रीवास्तव, एस0एन0बागी, जयप्रकाश तिवारी, सुरेश पाण्डेय आदि अनेक अयोध्या-फैजाबाद के गणमान्य बुद्धजीवी तथा संग्रहालय की शैक्षिक कार्यक्रमों से जुडे़ छात्र छात्राओं की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।
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