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उत्तर प्रदेश

मोदी vs नीतीश : गंग-पूजन, काशी का चंदन और संकटमोचन






इस कड़ी में नया नाम बिहार के सीएम नीतीश कुमार का है। 12 मई से ही नीतीश बनारस में जमे हैं। पहले एक जनसभा को संबोधित किया। जहां से संघमुक्त भारत का नारा दिया। फिर, दूसरे दिन दशाश्वमेध घाट पहुंचे। गंगा आरती में भाग लिया। गंगा सप्तमी के मौके पर पूजा भी की और गंगा की अविरलता और निर्मलता की भी बात की। हां, इस संबंध में मोदी सरकार की गंगा से संबंधित योजनाओं पर सवाल भी उठाये।उन्होंने यह भी कहा कि गंगा हमारी सभ्यता और संस्कृति से जुड़ी हुई है। मेरा भी घर गंगा के किनारे ही हुआ है। कॉलेज भी गंगा के पास ही था। लेकिन, काशी में आकर गंगा-दर्शन का अवसर मिला है। गंगा रिवर बेशिन अथॉरिटी का गठन किया गया, लेकिन मैं यह बात पहले से ही उठा रहा हूं। फरक्का ने गंगा की अविरलता को रोक रखा है, जो गलत है। गंगा दर्शन-पूजन के बाद नीतीश कुमार विश्वनाथ मंदिर और संकटमोचन मंदिर गये। पूजा-अर्चना भी की।

मोदी के नारे का मुकाबला नये नारे से
लोकसभा चुनाव के पहले संघ और भाजपा ने अपने पीएम प्रत्याशी को कांग्रेस मुक्त भारत का थमाया था। जिसे मोदी ने खूब भुनाया और लोगों को वह रास भी आया। नीतीश कुमार भी उसी राह पर हैं और मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत की जगह संघमुक्त भारत के नारे को उछाल रहे हैं। उन्हें यह खूब पता है कि अगले लोकसभा चुनाव में संघमुक्त भारत भाजपा विरोधी सभी दलों को लुभाएगा और कांग्रेस उनका समर्थन करने को मजबूर हो जाएगी। बिहार चुनाव में सफलता के बाद नीतीश को यह अहसास है कि वे हिंदी पट्टी में मोदी का मुकाबला करने की हैसियत पा चुके हैं।

गंगा-पूजन, काशी विश्वनाथ और संकटमोटन जाना भी रणनीति
मोदी ने जब यह तय किया कि वे बनारस से संसद का चुनाव लड़ेंगे तो उन्होंने गंगा को बेहद संजीदगी से याद किया। उसके दुखों की चर्चा की। अब वही काम नीतीश भी कर रहे हैं। पटना में गंगा की दुर्दशा पर शायद ही कभी उन्होंने चर्चा की हो, लेकिन काशी में गंगा के दुखों की चर्चा जरूर की, क्योंकि यह बनारस में गंगा तो मोदी की है। दूसरी ओर काशी विश्वनाथ और संकटमोचन जा कर पूजा-अर्चना करना भी मोदी विरोध की रणनीति का ही हिस्सा है।

मुलायम को भी करेंगे परेशान
नीतीश कुमार के बारे में एक राजनीतिक कहावत काफी प्रचलित है कि वे कभी भी वक्त को भूलते नहीं और समय का इंतजार करते हैं। हालांकि, अमूमन यह सभी राजनेता करते हैं, लेकिन नीतीश जैसी महारत कम को ही हासिल है। उन्हें याद है कि बिहार चुनाव के समय किस तरह मुलायम सिंह यादव ने उनके अभियान की हवा निकालनी कोशिश की थी। मोदी-भाजपा विरोध की रणनीति को फेल करने की कोशिश समाजवादी पार्टी ने की थी। अब जबकि बिहार में उनकी जीत हो चुकी है और अगले साल की शुरुआत में ही यूपी में चुनाव होने हैं। ऐसे में नीतीश को वक्त की नजाकत का एहसास है और वे यूपी में मुलायम को परेशान करने और जैसे को तैसा की रणनीति पर काम कर रहे हैं।

पटना में गंगा आरती में अबतक दो बार शामिल हुए थे नीतीश
भाजपा के सहयोग से जब नीतीश कुमार बिहार के सीएम बने तब पर्यटन विभाग ने पटना में भी गंगा आरती शुरू करा दी। कुल मिला कर दो बार ही अबतक नीतीश कुमार इस कार्यक्रम में शामिल हो सके हैं। हालांकि, अब भी गंगा आरती जारी है। तब पर्यटन मंत्री हुआ करते थे भाजपा के कोटे से सुशील कुमार पिंटू। बकौल पिंटू एकबार नरेंद्र मोदी के साथ और एकबार और नीतीश कुमार गंगा आरती में शामिल हुए थे। गौरतलब है कि हाल में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव के बाद जब नीतीश कुमार सीएम बने हैं, उसके बाद से वे गंगा आरती में शामिल नहीं हुए हैं।

संघ ले रहा नीतीश को हल्के में
यह तो सर्वविदित है कि बिहार के चुनाव के समय में ही नीतीश कुमार पर संघ उतना आक्रामक नहीं हो सका था, जितना उसे होना चाहिए था। सूत्रों के मुताबिक कहा गया कि राजनीति के कारण नीतीश कुमार भाजपा का घोर विरोध कर रहे हैं। पुराने साथी रहे हैं। वक्त जब आएगा तो फिर वे साथ आ जाएंगे। दूसरी ओर नीतीश कुमार अब मोदी और भाजपा को छोड़ कर संघ का विरोध ही कर रहे हैं। संघ का विरोध करने पर नीतीश कुमार अधिक समर्थन जुटा सकते हैं।

प्रशांत किशोर की रणनीति पर चल रहे
कभी मोदी के प्रचार की जिम्मेदारी संभाल चुके प्रशांत किशोर अभी नीतीश कुमार की आंखों के तारे हैं। उनको कैबिनेट रैंक हासिल है। लालू के विरोध के बाद भी नीतीश कुमार पीके को खासमखास बनाए हुए हैं। जानकारी के मुताबिक नीतीश के पीएम अभियान की कमान भी पीके ही संभाल रहे हैं। शराबबंदी से लेकर अन्य कामों के लिये भी पीके की मदद ली जा रही है। कहा तो यह जा रहा है कि जिस तरह से गुजरात के विकास को पूरे देश में प्रचारित किया गया था, उसी तरह से पीके भी बिहार की विकास गाथा को नीतीश का ब्रांड बना रहे हैं। बनारस जाना और गंगा-पूजा से लेकर मंदिरों में जाना भी इसी रणनीति का हिस्सा है।



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