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उत्तर प्रदेश

दलित वोट बैंक में सेंधमारी से मायावती मुस्किल में ?

जातीय समीकरणों के सहारे यूपी की सत्ता में वापसी की कोशिश कर रही बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के लिए छोटे-छोटे दल राह का रोड़ा बन सकते हैं. चुनावी समीकरणों को देखते हुए बड़े दलों की निगाह ऐसी छोटी-छोटी पार्टियों पर है जो बीएसपी का खेल बिगाड़ सकते हों. कांग्रेस, भाजपा और समाजवादी पार्टी की कोशिश यही है कि क्षेत्रीय दलों को साथ लेकर मायावती के हाथी की चाल को सुस्त कर दिया जाये.

लोकसभा चुनावो के बाद भाजपा की नजर एक बार फिर बीएसपी के दलित वोटों पर है. बीजेपी अंबेडकर जयंती मना रही है और उनका स्मारक भी बनवा रही है पूर्वी उत्तर प्रदेश में ओबीसी वोटों की खातिर उसका अपना दल से पहले ही गठबंधन है. पश्चिमी यूपी में बीएसपी के पास 50 से ज्यादा विधायक हैं. लेकिन लोकसभा में बीजेपी यहां सभी सीटे जीत चुकी है यहां बीजेपी-रालोद के बीच गठबंधन की भी तैयारी में है.

बीजेपी और अजित सिंह एक साथ आये तो सबसे ज्यादा नुकासन बीएसपी को होगा. पीस पार्टी और महान दल एक साथ मिलकर चुनाव लड़ने की तैयारी में है. कांग्रेस-जेडीयू और कई छोटी पार्टियों को लेकर एक महागठबंधन बनाने के पक्ष में है. कांग्रेस रणनीतिकार प्रशांत किशोर इस पर काम भी कर रहे हैं. यूपी में बीएसपी का आधार दलित वोट बैंक है जो करीब 24 प्रतिशत है. इसमें 15 प्रतिशत जाटव है. विपक्ष की कोशिश यही है कि जाटव को छोड़कर दूसरी दलित जातियों को मायावती के खिलाफ वोट कराया जाये. 55 फीसदी ओबीसी में 33 प्रतिशत अतिपिछड़ा है जिसमें 10 प्रतिशत की सेंधमारी भी बसपा को नुकसान पहुंचायेगी.
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