इस दाग को धोना नहीं होगा आसान, उत्तराखंड में हुई फजीहत
उत्तराखंड के घटनाक्रम का यूपी के चुनावी समीकरणों पर भले ही बहुत असर न पड़े, लेकिन भाजपा की छवि को इससे काफी नुकसान हुआ है।
कांग्रेस की सरकार ने केरल की ईएमएस नंबूदरीपाद सरकार को बर्खास्त कर धारा 356 के प्रयोग की शुरुआत की थी। अब उत्तराखंड में भाजपा ने जो कुछ किया उससे यह साफ हो गया कि सारी पार्टियों का चरित्र एक ही जैसा है। इस दाग को धोना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा।
भाजपा को अगर लंबी राजनीति करनी है तो पार्टी नेताओं को उत्तराखंड की फजीहत से सबक लेना चाहिए। साथ ही उन लोगों की समीक्षा करनी चाहिए जिनकी सूचना के आधार पर भाजपा नेतृत्व ने उत्तराखंड में इस तरह के फैसले लिए। प्रो पुंडीर की बात सही लगती है। पार्टी रणनीतिकारों पर आपने आप में यह सवाल है कि उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य में जहां कुछ महीनों बाद वैसे भी चुनाव होने वाले हैं, वहां ऐसा कदम उठाने की जरूरत ही क्या थी।
प्रो. पुंडीर की सबक लेने की सलाह इसलिए भी सही लगती है क्योंकि उत्तराखंड की घटना ने यह भी साफ कर दिया है कि संवादहीनता के संकट से पार्टी उबर ही नहीं पाई है और कहीं न कहीं पार्टी के भीतर गलत सूचनाएं देकर गुमराह करने वाला तंत्र भी सक्रिय है। जिसने उत्तराखंड के बारे में ऐसी सूचनाएं दी, जिन्होंने भाजपा की फजीहत करा दी।
चूंकि उत्तराखंड के बारे में सारी रणनीति भाजपा के उन्हीं केंद्रीय रणनीतिकारों ने बनाई थी, जिनके कंधों पर उत्तर प्रदेश के चुनावी समर की तैयारी की भी जिम्मेदारी है।
ऐसे में पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के लिए इन खामियों को ठीक करके यूपी के लिए सटीक रणनीति बनवाना और उन लोगों की तलाश करना जो सही सूचनाएं दे, कम मुश्किलों वाला काम नहीं होगा।
अटल बिहारी वाजपेयी कहा करते थे कि किसी राज्य की निर्वाचित सरकार को बर्खास्त करना वहां के मतदाताओं का अपमान है। यह अनैतिकता से शासन व सत्ता को हथियाने जैसा है।
भाजपा ऐसी ही बातों की दुहाई देकर लंबे अर्से तक खुद को दूसरों से अलग दिखाने और नैतिकता की राजनीति करने का दावा करती आई है। पर, उत्तराखंड में जो कुछ हुआ उसके बाद भाजपा का कोई नेता इस तरह के तर्कों के साथ जनता के बीच नहीं जा पाएगा।
काबिलेगौर है कि उत्तर प्रदेश में भी उत्तराखंड के काफी लोग बसे हुए हैं। यूपी में कांग्र्रेस के कमजोर रहने से आमतौर पर इनका समर्थन भाजपा के साथ ही रहता है। उत्तराखंड के घटनाक्रम के बाद भाजपा के इस वोट बैंक में बिखराव के अंदेशे से इन्कार नहीं किया जा सकता।
कांग्रेस की सरकार ने केरल की ईएमएस नंबूदरीपाद सरकार को बर्खास्त कर धारा 356 के प्रयोग की शुरुआत की थी। अब उत्तराखंड में भाजपा ने जो कुछ किया उससे यह साफ हो गया कि सारी पार्टियों का चरित्र एक ही जैसा है। इस दाग को धोना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा।
भाजपा को अगर लंबी राजनीति करनी है तो पार्टी नेताओं को उत्तराखंड की फजीहत से सबक लेना चाहिए। साथ ही उन लोगों की समीक्षा करनी चाहिए जिनकी सूचना के आधार पर भाजपा नेतृत्व ने उत्तराखंड में इस तरह के फैसले लिए। प्रो पुंडीर की बात सही लगती है। पार्टी रणनीतिकारों पर आपने आप में यह सवाल है कि उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य में जहां कुछ महीनों बाद वैसे भी चुनाव होने वाले हैं, वहां ऐसा कदम उठाने की जरूरत ही क्या थी।
प्रो. पुंडीर की सबक लेने की सलाह इसलिए भी सही लगती है क्योंकि उत्तराखंड की घटना ने यह भी साफ कर दिया है कि संवादहीनता के संकट से पार्टी उबर ही नहीं पाई है और कहीं न कहीं पार्टी के भीतर गलत सूचनाएं देकर गुमराह करने वाला तंत्र भी सक्रिय है। जिसने उत्तराखंड के बारे में ऐसी सूचनाएं दी, जिन्होंने भाजपा की फजीहत करा दी।
चूंकि उत्तराखंड के बारे में सारी रणनीति भाजपा के उन्हीं केंद्रीय रणनीतिकारों ने बनाई थी, जिनके कंधों पर उत्तर प्रदेश के चुनावी समर की तैयारी की भी जिम्मेदारी है।
ऐसे में पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के लिए इन खामियों को ठीक करके यूपी के लिए सटीक रणनीति बनवाना और उन लोगों की तलाश करना जो सही सूचनाएं दे, कम मुश्किलों वाला काम नहीं होगा।
अटल बिहारी वाजपेयी कहा करते थे कि किसी राज्य की निर्वाचित सरकार को बर्खास्त करना वहां के मतदाताओं का अपमान है। यह अनैतिकता से शासन व सत्ता को हथियाने जैसा है।
भाजपा ऐसी ही बातों की दुहाई देकर लंबे अर्से तक खुद को दूसरों से अलग दिखाने और नैतिकता की राजनीति करने का दावा करती आई है। पर, उत्तराखंड में जो कुछ हुआ उसके बाद भाजपा का कोई नेता इस तरह के तर्कों के साथ जनता के बीच नहीं जा पाएगा।
काबिलेगौर है कि उत्तर प्रदेश में भी उत्तराखंड के काफी लोग बसे हुए हैं। यूपी में कांग्र्रेस के कमजोर रहने से आमतौर पर इनका समर्थन भाजपा के साथ ही रहता है। उत्तराखंड के घटनाक्रम के बाद भाजपा के इस वोट बैंक में बिखराव के अंदेशे से इन्कार नहीं किया जा सकता।
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