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अब उप्र की राजनीति करेंगे रामगोपाल, 17 में करहल सीट से लड़ सकते हैं चुनाव
लखनऊ : प्रदेश की सत्ता पर काबिज समाजवादी पार्टी कुछ माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में वर्ष 2012 की कामयाबी दोहराने के लिए नए दांव मंथन कर रही है।
प्रो.राम गोपाल यादव की करहल विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की संभावना को इसी नजरिये से देखा जा रहा है। लोकसभा चुनाव में भाजपा के हाथों ‘मात’ के कारण की पड़ताल कर चुकी समाजवादी पार्टी विधानसभा चुनाव-2017 में रणनीति के स्तर पर कोई खामी छोड़ने को तैयार नहीं है।
निजी एजेंसी, सरकारी तंत्र और संगठन के प्रतिनिधियों से राज्य के चुनावी परिदृश्य की रिपोर्ट जुटायी जा रही है। पार्टी जनता में सत्ता जनित नाराजगी और विकास कार्यों के प्रभाव के आकलन के आधार पर इस बार महासचिव प्रो.राम गोपाल को भी विधानसभा चुनाव लड़ाने पर गंभीरता से विचार कर रही है।
हालांकि वर्ष 2004 में संभल लोकसभा का चुनाव छोड़ दिया जाए तो पार्टी अपने इस ‘थिंक टैंक’ को राज्यसभा में ही भेजती है। इसकी शुरुआत 1992 से हुई थी।
सूत्रों का कहना है कि सपा के रणनीतिकार को यह अंदेशा है कि भोगांव से विधायक आलोक कुमार शाक्य को वर्ष 2015 में मंत्रिमंडल से बर्खास्त किये जाने से शाक्य-सैनी मतदाता खुश नहीं हैं। हालांकि आलोक को मंत्रिमंडल से बाहर करने के पीछे लोकसभा चुनाव में उनके क्षेत्र में समाजवादी पार्टी का खराब प्रदर्शन माना गया, फिर भी पार्टी ठोस जनाधार में शुमार शाक्य-सैनी मतदाताओं की नाराजगी का जोखिम नहीं उठाना चाहती।
प्रो. यादव के मैनपुरी की करहल विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने से सिर्फ मैनपुरी नहीं बल्कि पश्चिम के अति पिछड़ों, अल्पसंख्यक व सवर्ण मतदाताओं को सपा के पक्ष में गोलबंद करने में आसानी होगी। प्रोफेसर के राज्य की राजनीति में लौटने से मुख्यमंत्री व समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव की रणनीतिक ताकत में भी इजाफा होगा। चुनाव प्रबंधन में भी काफी हद तक आसानी होगी।
हालांकि राम गोपाल के चुनाव लड़ने पर समाजवादी पार्टी का कोई नेता बोलने को तैयार नहीं है, पर वरिष्ठ नेता यह स्वीकारते हैं कि आपसी बातचीत में प्रोफेसर विधानसभा चुनाव लड़ने की बात को खारिज नहीं कर रहे हैं। पार्टी में यह चर्चा तेजी से जोर पकड़ रही है कि मिशन-2017 की कामयाबी के लिए सपा प्रो.यादव को विधानसभा का चुनाव लड़ा सकती है।
प्रो.राम गोपाल यादव की करहल विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की संभावना को इसी नजरिये से देखा जा रहा है। लोकसभा चुनाव में भाजपा के हाथों ‘मात’ के कारण की पड़ताल कर चुकी समाजवादी पार्टी विधानसभा चुनाव-2017 में रणनीति के स्तर पर कोई खामी छोड़ने को तैयार नहीं है।
निजी एजेंसी, सरकारी तंत्र और संगठन के प्रतिनिधियों से राज्य के चुनावी परिदृश्य की रिपोर्ट जुटायी जा रही है। पार्टी जनता में सत्ता जनित नाराजगी और विकास कार्यों के प्रभाव के आकलन के आधार पर इस बार महासचिव प्रो.राम गोपाल को भी विधानसभा चुनाव लड़ाने पर गंभीरता से विचार कर रही है।
हालांकि वर्ष 2004 में संभल लोकसभा का चुनाव छोड़ दिया जाए तो पार्टी अपने इस ‘थिंक टैंक’ को राज्यसभा में ही भेजती है। इसकी शुरुआत 1992 से हुई थी।
सूत्रों का कहना है कि सपा के रणनीतिकार को यह अंदेशा है कि भोगांव से विधायक आलोक कुमार शाक्य को वर्ष 2015 में मंत्रिमंडल से बर्खास्त किये जाने से शाक्य-सैनी मतदाता खुश नहीं हैं। हालांकि आलोक को मंत्रिमंडल से बाहर करने के पीछे लोकसभा चुनाव में उनके क्षेत्र में समाजवादी पार्टी का खराब प्रदर्शन माना गया, फिर भी पार्टी ठोस जनाधार में शुमार शाक्य-सैनी मतदाताओं की नाराजगी का जोखिम नहीं उठाना चाहती।
प्रो. यादव के मैनपुरी की करहल विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने से सिर्फ मैनपुरी नहीं बल्कि पश्चिम के अति पिछड़ों, अल्पसंख्यक व सवर्ण मतदाताओं को सपा के पक्ष में गोलबंद करने में आसानी होगी। प्रोफेसर के राज्य की राजनीति में लौटने से मुख्यमंत्री व समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव की रणनीतिक ताकत में भी इजाफा होगा। चुनाव प्रबंधन में भी काफी हद तक आसानी होगी।
हालांकि राम गोपाल के चुनाव लड़ने पर समाजवादी पार्टी का कोई नेता बोलने को तैयार नहीं है, पर वरिष्ठ नेता यह स्वीकारते हैं कि आपसी बातचीत में प्रोफेसर विधानसभा चुनाव लड़ने की बात को खारिज नहीं कर रहे हैं। पार्टी में यह चर्चा तेजी से जोर पकड़ रही है कि मिशन-2017 की कामयाबी के लिए सपा प्रो.यादव को विधानसभा का चुनाव लड़ा सकती है।
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