जानिए सपा और अखिलेश के बारे में लोगों की राय
इस समय आमजन की कुछ वैसी ही प्रतिक्रिया अखिलेश को लेकर है वह समाजवादी पार्टी और अखिलेश को अलग-अलग खांचो में फिट करके देखने लगे हैं और उनके इसी रुझान के चलते उनके मन में अखिलेश के प्रति वैसी नकारात्मकता कहीं नजर नहीं आ रही जो सत्ता विरोधी रुझान के चलते जनमानस में आसानी से पैठ बना लेती है। इसके अहम कारण हैं-अखिलेश ने 2012 में मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद से ही आरामतलबी की जिंदगी व्यतीत नहीं की। लगातार सक्रियता के साथ लैपटॉप वितरण, कन्या विद्याधन, वूमन पॉवर लाईन, नये मैडिकल कॉलेजों की स्थापना, प्रदेश के पांच शहरों में मैटे का आगाका तथा आगरा-लखनऊ एक्सप्रैस-वे जैसी गेमचेन्जर योजनाओं का सफलता पूर्वक क्रियान्वयन किया। जो लोगों के जेहन पर लगातार दस्तक देता रहता है।
एक सच्चा किस्सा है जिससे जनमानस की सोच का पता चलता है मैं एक डाक्टर के यहां दवाई लेने गया वहां लगभग 60 वर्ष की आयु के सज्जन भी दवाई लेने आये हुए थे। बातों ही बातों में राजनीतिक चर्चा शुरू हो गयी। मैनें पूछा ‘‘2017 में आप किसे वोट देंगे’’? वह बोले- अखिलेश यादव को! मैंने पूछा, क्यों ? तो वह बोले कि वह ईमानदार व्यक्ति है । मैंने फिर पूछा कि- आपको कैसे लगता है कि वह ईमानदार है? तो उनके जवाब ने मुझे लाजवाब कर दिया वह बोले- ‘‘ईमानदारी का कोई सर्टिफिकेट नहीं होता’’ लेकिन वह व्यक्ति के चेहरे पर झलकती है। अखिलेश के चेहरे पर भी ईमानदारी साफ तौर पर दिखाई देती है। लेकिन दूसरी ओर समाजवादी पार्टी को लेकर आमजन की प्रतिक्रिया उत्साहजनक नहीं है। पार्टी के अधिकतर मंत्री और नेता केवल अपने जलवे और रौब-दाब से खुश हैं। जनसामान्य दर्जा प्राप्त राज्मंत्रियों की पोल 2014 के लोकसभा चुनावों में खुल चुकी है। उस समय मोदी के चलते बहुसंख्यक वर्ग ने तो एकतरफा मतदान भाजपा के पक्ष में किया था। परन्तु अल्पसंख्यक तो भाजपा को वोट नहीं करते, फिर अल्पसंख्यक वर्ग से सबन्धित इन दर्जा प्राप्त राज्मंत्रियों ने अपने बूथ से कितनी वोटें समाजवादी पार्टी को दिलायी थी? ये सब जानते हैं। दूसरे वैनर-पोस्टर से ही अगर चुनाव जीते तो फिर किसी पार्टी को कार्यकर्ताओं की जरुरत ही क्या होती? सरकार की उपलब्धियों का बखान या पब्लिसिटी जनता से सीधे बात करने पर ही होती है। परन्तु इस मामले में सपा के नेताओं के अंक जीरो हैं। एक मौके पर तो अखिलेश खुद स्वीकार कर चुके हैं कि-हमारी रबड़ी तो अच्छी है पर उसकी पैकेजिंग बढिय़ा नहीं है।
मुसलमान का पुख्ता वोट बैंक होगा निर्णायक
तीसरे मुसलमान जो सपा का सबसे पुख्ता वोट बैंक माना जाता है। भाजपा के अलावा बाकी सभी दलों की उस पर नजर है। यूं भी मुस्लिम अब पहले के मुकाबले राजनीतिक रूप से कहीं ज्यादा परिपक्व हो चुके हैं। अब न वो खुद को किसी की जागीर समझते हैं और न ही अपने हकों से अंजान हैं। पहले भी उनके द्वारा भाजपा को हराने के लिए रणनीतिक मतदान हो चुका है। हाल फिलहाल में यू.पी. में जिस तरह से सांप्रदायिक सद्भाव बिगाडऩे वाली घटनाएं हुई हैं उनमें पीड़ितों को मुआवजा देना तो ठीक था, परन्तु दोषियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए थी। आज भी अल्पसंख्यक इस मामले में मुलायम सिंह को याद करते हैं। अखिलेश को अभी इसमें अपनी विश्वसनीयता साबित करनी बाकी है। अगर मुस्लिम बेचारगी महसूस करते हैं तो यह सपा के लिए खतरे की घंटी है। क्योंकि विकल्प के रूप में उनके पास बसपा भी है। चौथे समाजवादी पार्टी सुविचारित रणनीति पर कितना अमल कर रही है। यह तो उसका शीर्ष नेतृत्व ही जानते हैं। परन्तु बिहार चुनावों के बाद से सुविचारित रणनीति के महत्व को कोई नकार नहीं सकता। महाराष्ट्र, हरियाणा और बिहार के चुनावो में इसका सफल उपयोग हुआ है। यदि आज की परिस्थितियों में चुनाव होते हैं तो पूर्वी एवं मध्य उत्तर प्रदेश के सहारे सपा 130 से 150 सीटों तक ला सकती है। बाकी की पूर्ति अखिलेश यादव कैसे करेंगे? यही उनके रणनीति एवं राजनैतिक कौशल की परीक्षा होगी।
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